कोरोना : लॉकडाउन से कंबाइन हार्वेस्टर चालक न घर के रहे, न बाहर के
14 दिन से कंबाइल चालक और उनके सहयोगी गांव की सीमा के पास बैठे हुए लॉकडाउन खुलने की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में यदि अब लॉकडाउन न खुला तो इनके सामने भारी संकट आ सकता है...
चंडीगढ़ से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। हरियाणा के करनाल जिले का श्यामगढ़ गांव, जो बाहर से आये अपने ही गांव के निवासियों को घुसने नहीं दे रहा है। उनका एक ही जवाब है, लॉकडाउन खत्म होगा तभी अंदर आने दिया जाएगा। 14 दिन से कंबाइल चालक और उनके सहयोगी गांव की सीमा के पास बैठे हुए लॉकडाउन खुलने की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में यदि अब लॉकडाउन न खुला तो इनके सामने भारी संकट आ सकता है।
घर से निकले थे इस उम्मीद में की कुछ कमा कर लायेंगे। हालात यह हो गये कि कमाई तो हुई नहीं, घर में घुसने को भी तरस गये हैं। यह स्थिति करनाल के श्यामगढ़ निवासियों की है। वह गांव की सीमा में बैठे है। गांव में उन्हें घुसने नहीं दिया जा रहा है। यहां तक की खाने पीने का सामान तक लेने के लिए वह अपने घर नहीं आ सकते। यह कंबाइल चालक महाराष्ट्र गये हुए थे।
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अचानक कोरोना वायरस फैलने की वजह से उन्हें वहां से भगा दिया। रास्ते में भी कहीं काम नहीं मिला। इसी बीच वह हिम्मत कर घर लौट आये। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि गांव में भी उन्हें दुत्कार दिया जायेगा। गांव ने सर्वसम्मति से साफ कर दिया कि जब तक लॉकडाउन है। बाहर से आने वाला कोई व्यक्ति गांव में नहीं आ सकता। न ही गांव का कोई व्यक्ति बाहर जा सकता है। अब यदि लॉकडाउन की अवधि बढ़ जाती है तो कंबाइन चालकों व इनके सहयोगियों का क्या होगा?
नेशनल हाइवे पर करनाल से मात्र सात किलाेमीटर दूर स्थित इस गांव के 70 से ज्यादा कंबाइन चालक और उनका सहयोगी इस वक्त एक छोटे से मैदान में दिन रात लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि यदि लॉकडाउन खुल जाता है तो कम से कम वह अपने घर तो पहुंच जाएंगे।
कंबाइन चालक संजू ने बताया कि महाराष्ट्र से वापस जैसे ही वह आये तो उन्हें ग्रामीणों ने घुसने ही नहीं दिया। इस वजह से उसे मजबूरी में अपनी मशीन गांव के बाहर खड़ी करनी पड़ रही है। उसने बताया कि उसके पास जो राशन था, वह भी अब खत्म होने को आ गया है। न पीने का पानी मिल रहा है, रात को यहां नींद भी नहीं आती। लेकिन क्या कर सकते हैं।
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उनके साथ ही एक अन्य कंबाइन चालक हरपाल न बताया कि वह बीमार नहीं है। यदि प्रशासन के पास जाते हैं कि उनकी जांच की जाए, तो कोई जांच भी नहीं कर रहा है। गांव के लोगों के साथ वह लड़ नहीं सकते हैं। क्योंकि यदि ऐसा किया तो उनका सामाजिक बहिष्कार हो जाएगा। ऐसे में अब लॉकडाउन खुलने का इंतजार करने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं रह गया है।