आम भारतीयों के बहुतायत को लगता है कि पाकिस्तान में सिर्फ कट्टरपंथ है, पर इस बार इमरान खान की पार्टी की जीत और वामपंथी नेता का संसद पहुंचना बताता है कि बदलाव की व्यापक बयार वहां बह चली है...
जनज्वार। पाकिस्तान के हालिया हुए आम चुनावों में वामपंथी पार्टी पस्तून तहाफुज मूवमेंट के प्रत्याशी और नेता अली वजीर भी जीतकर पाकिस्तान की संसद पहुंचे हैं। चुनाव लड़ने से पहले तक उनको भारी जान का खतरा था। कट्टरपंथियों के निशाने पर थे, लेकिन हजारों आम लोगों के भरोसे और सुरक्षा के बीच उन्होंने चुनाव जीता है।
दक्षिणी वजिरिस्तान की सीट से जीते वामपंथी पार्टी पस्तून तहाफुज मूवमेंट के प्रत्याशी अली वजीर को इन आम चुनावों में 20209 वोट मिले, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी रहे पाकिस्तान मुस्लिम लीग 'नवाज' के प्रत्याशी को मात्र 4776 वोट मिले।
गौरतलब है कि सरकार बनाने जा रही इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक—ए—इंसाफ ने अली वजीर के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था। चुनाव से पहले अली वजीर के संघर्षों को इमरान खान ने समर्थन भी दिया था।
पिछली बार 2013 में पस्तून तहाफुज मूवमेंट अली वजीर बहुत मामूली वोटों से पाकिस्तान मुस्लिम लीग 'नवाज' की पार्टी के प्रत्याशी से हार गए थे।
एक पड़ोसी मुल्क होने के नाते भारत के लिए पाकिस्तान की राजनीति में कट्टरपंथियों का कमजोर होना बेहतर संकेत है। इस बार के 2018 पाकिस्तान आम चुनावों में किसी भी मुस्लिम कट्टरपंथी पार्टी का एक भी सदस्य लोकसभा में चुनकर नहीं गया है और सभी के सभी बुरी तरह हारे हैं।
वामपंथी कार्यकर्ता और संगीतकार तैमूर रहमान के अनुसार, 'चुनावों में धार्मिक अतिवादी पार्टियों जैसे तहरीक—ए—लबाइक, अल्लाह—हो—अकबर पार्टी, पाकिस्तान राहे हक पार्टी ने पाकिस्तान की बहुतायत सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन किसी एक सीट पर भी जीतना तो दूर टक्कर में भी नहीं आ सके हैं।'
हालांकि चुनाव से ठीक पहले पस्तून तहाफुज मूवमेंट ने चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे 6 कोर कमिटी सदस्यों को संगठन से यह कहते हुए बाहर कर दिया वह आंदोलन हैं, उनके संगठन में चुनाव लड़ने की कोई जगह नहीं है। निकाले गए लोगों में अली वजीर भी शामिल थे।