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पुलिस सुधार के लिए भारत इंग्लैण्ड से सीखे

Janjwar Team
21 July 2017 3:16 PM GMT
पुलिस सुधार के लिए भारत इंग्लैण्ड से सीखे
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दिल्ली पुलिस के खिलाफ हुई शिकायतों के मामलों में सामने आया है कि पुलिस के विरूद्ध एक वर्ष में प्राप्त 12872 शिकायतों में से मात्र 35 मामलों में ही प्रथम सूचना रिपोर्टें दर्ज हुईं और शायद ही किसी मामले में कोई दोषसिद्धि हुई हो...

मनीराम शर्मा

पुलिस दुराचरण के विरूद्ध लगातार शिकायतें मिलती रहती हैं। वर्ष 2007 में बनाए गए विभिन्न राज्यों के विकलांग पुलिस कानून में प्रावधान की गयी कमेटियों का आज तक गठन नहीं हुआ है। राजस्थान उनमें से एक राज्य है।

हालांकि इन कमेटियों के गठन से भी धरातल स्तर पर कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि जांच के लिए पुलिस का ही सहारा लिया जाता है। आखिर कोई भी पेड़ अपनी शाखा को किस प्रकार काट सकता है? देश में मानवाधिकार आयोगों का भी यही हाल है, क्योंकि वहां पर भी ज्यादातर शिकायतें पुलिस के विरूद्ध हो होती हैं और पुलिस ही इनकी जांच करती है और कई बार तो आरोपित से ही जांच रिपोर्ट मांगी जाती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय प्रेम हजारा के मामले में कहा है कि जब शिकायत खुद किसी पुलिस अधिकारी के विरूद्ध हो तो जांच पुलिस द्वारा नहीं की जानी चाहिए। इस दृष्टिकोण से भारतीय पुलिस के विरूद्ध पुलिस जोकि पहले से ही बदनाम है, द्वारा जांचों का कोई अभिप्राय: नहीं है, मात्र समय और सार्वजनिक धन बर्बाद करने की कोरी औपचारिकताएं ही हैं।

दिल्ली पुलिस के खिलाफ हुई शिकायतों के मामलों में यह तथ्य सामने आया है कि पुलिस के विरूद्ध एक वर्ष में प्राप्त 12872 शिकायतों में मात्र 35 मामलों में ही प्रथम सूचना रिपोर्टें दर्ज हुई और शायद ही किसी मामले में कोई दोषसिद्धि हुई होगी।

सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का... जबकि यहाँ तो पदोन्नति व वाही वाही लूटने के लिए पुलिस फर्जी मामले बनाकर फर्जी आतंकी तैयार करती है और अत्याधुनिक हथियारों का जुगाड़ करके उनकी बनावटी बरामदगी दिखाती है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि सारे बड़े अपराध पुलिस के सहयोग के बिना संभव ही नहीं है। यह सहयोग सक्रिय और निष्क्रिय दोनों प्रकार का हो सकता है।

ब्रिटेन में पुलिस के विरुद्ध शिकायतों का समाधान अपने आप में एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है, जोकि पुलिस की साख और विश्वसनीयता की ओर एक बड़ा कदम है। वहां वर्ष 1984 में पुलिस शिकायत प्राधिकरण का गठन किया गया है।

औपचारिक तौर पर भारत के कई राज्यों में ऐसे पंगु और औपचारिक प्राधिकरण अस्तित्व में हैं। ब्रिटेन का यह अधिकरण पुलिस के विरूद्ध शिकायतों की गहन जांच करता है। ब्रिटेन का यह प्राधिकरण स्वतंत्र है और जांच के उच्च मानक अपनाता है। स्वतंत्र पुलिस शिकायत प्राधिकरण को अप्रैल 2004 में पुलिस सुधार अधिनियम 2002 से पुलिस शिकायत प्राधिकरण से प्रतिस्थापित कर दिया गया है।

इस नई प्रणाली से समुदाय को काफी लाभ हुआ और कई जटिल मामलों में नए खुलासे हुए हैं, जोकि पुलिस द्वारा दबा दिए गए थे। ब्रिटेन के पुलिस शिकायत प्राधिकारण की स्वतंत्रता व स्वायतता के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं—

— यह किसी सरकारी विभाग का अंग नहीं है।
— यह पूर्णतया अलग सार्वजनिक निकाय है।
— यह पुलिस सेवा से स्वतंत्र है।
— न्यायालय के अतिरिक्त कोई भी इसके निर्णयों को बदल नहीं सकता। भारत में ऐसा क्षेत्राधिकार उच्च न्यायालयों को दिया जा सकता है।
— इसमें नियुक्त 18 आयुक्त ऐसे व्यक्ति होते हैं जोकि पूर्व में कभी भी पुलिस सेवा में नहीं रहे हों। भारत में इसके अतिरिक्त यह भी शर्त होनी चाहिए कि ऐसे आयुक्त पिछले 10 वर्षों में कभी भी किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं रहे हों व किसी राजनैतिक दल से सम्बद्धता नहीं रखते हों, ताकि राजनीतिक सड़ांध से आयोग दूर रहे।
— प्राधिकरण के पास अपनी स्वयं का अनुसन्धान दल होना चाहिए जोकि आरोपित दुराचरण की जांच कर सके।
— यह संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित निकाय होना चाहिए।

देश में संस्थापित पुलिस शिकायत प्राधिकरणों और मानवाधिकार आयोगों को इस पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और संगठन में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए।

(पेशे से वकील मनीराम शर्मा प्रशासनिक और कानूनी मामलों के जानकार।)

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