देश में मचा पीने के पानी का हाहाकार, कोयम्बतूर में पानी के संघर्ष में 550 लोग गिरफ्तार
हमारे देश में 60 करोड़ आबादी पेय जल की आपूर्ति की सुविधा से वंचित है और 10 करोड़ आबादी को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता...
जल संकट पर महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
इन दिनों पूरा देश पानी की कमी से जूझ रहा है. पिछले वर्ष नीति आयोग ने देश में पानी की कमी से सम्बंधित एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी पर “सबका विकास” का नारा लगाने वाली सरकार के लिए पानी कोई मुद्दा नहीं बना. जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं किया गया और अब हालत यह है कि पानी की कमी से पूरा देश त्रस्त है.
चेन्नई में पानी का संकट तो मीडिया दिखा रहा है, पर कोयम्बतूर में पानी के संकट के विरोध में आन्दोलन करते 550 से अधिक लोग पुलिस हिरासत में भेजे जा चुके हैं. महाराष्ट्र में अनेक गाँव में पानी के संकट के कारण लोग कहीं और चले गए हैं. राजस्थान में भी लोग पलायन के लिए मजबूर हैं. दिल्ली के भी अनेक क्षेत्रों में हफ्ते में एक बार पानी की आपूर्ति की जा रही है.
गुरुग्राम में लोग हजारों रुपये प्रतिमाह पानी के प्राइवेट टैंकर के लिए खर्च कर रहे हैं. तंजावूर में पानी के मुद्दे पर लड़ाई में एक 33 वर्षीय व्यक्ति की ह्त्या कर दी गयी. मध्य प्रदेश में पानी के टैंकर की लूट के मामले इतने बढे कि अब टैंकर के साथ पुलिस तैनात रहती है. उत्तर भारत में पानी की कमी के कारण लाखों लोग पलायन के लिए मजबूर हैं. इन सबके बीच सरकार सो रही है.
मध्यप्रदेश के पंजापुर में बड़ी संख्या में बन्दर हैं. वहां पानी के संसाधन कम हैं. भीषण गर्मी में जब ये संसाधन भी सिकुड़ने लगे तब बन्दर भी पानी के उपयोग के लिए प्रतिस्पर्धी हो गए. वहां के वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार हालत यहाँ तक पहुँच गयी कि बड़े झुंडों के बंदरों ने अपेक्षाकृत छोटे झुंडों पर पानी के उपयोग के इलाकों पर हमला शुरू कर दिया. इन हमलों में 15 से अधिक बन्दर अपनी जान गवां बैठे.
हमारे देश में 60 करोड़ आबादी पेय जल की आपूर्ति की सुविधा से वंचित है और 10 करोड़ आबादी को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता. 2018 के आरम्भ में जब दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में “डे जीरो” घोषित किया गया था, तब हमारे देश में भी पानी की कमी पर बहुत चर्चा की गयी थी. डे जीरो वह अवस्था है, जब किसी क्षेत्र या शहर के पानी के सभी संसाधन पूरी तरह से पानी-विहीन हो जाएँ.
हमारे देश में किसी भी समस्या को हम कभी मुद्दा नहीं बनाते. आज पानी की कमी पर चर्चा हो रही है पर मानसून के आते ही सब कुछ शांत हो जाएगा. सरकारें भी सो जायेंगीं और जनता भी अपनी समस्या अगली गर्मियों तक भूल जायेगी. पर, समस्या ख़त्म नहीं होती और अनदेखी के कारण लगातार विकराल होती जाती है, पानी के साथ यही हो रहा है. जिस डे जीरो की बात केप टाउन में की गयी, वह उसके बाद शिमला भुगत चुका है और बंगलुरु भी.
हालात तो यह हैं कि देश की 10 करोड़ से अधिक आबादी पिछले कुछ वर्षों से डे जीरो वाली स्थिति में ही है. सरकारों को इससे कोई मतलब नहीं है और अब वर्ष 2020 तक देश के 21 शहर, जिनमें दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहर शामिल हैं, अपना पूरा भूजल समाप्त कर चुके होंगे और इससे 10 करोड़ से अधिक आबादी पानी की कमी से जूझेगी.
हमारे देश का हास्यास्पद तथ्य तो यह है कि पानी की कमी का कारण जल संसाधनों की कमी नहीं है, बल्कि इसके लिए पानी की बर्बादी और इसका कुप्रबंधन जिम्मेदार है. जहां जल आपूर्ति की जाती हैं वहां लगभग एक-तिहाई पानी आपूर्ति के दौरान ही व्यर्थ हो जाता है. वाटरऐड नामक संस्था की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार हमारी 12 प्रतिशत आबादी वर्त्तमान में डे जीरो वाली स्थिति में ही है और यह स्थिति दुनिया के किसी भी देश से बदतर है.
पूरे उत्तर भारत में प्रतिवर्ष जितना पानी भूजल में पहुंचता है, उसकी तुलना में 20 से 30 गुना पानी प्रतिवर्ष निकाल लिया जाता है. भूजल का स्तर 2 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से गिरता जा रहा है.
हमारा देश एक कमजोर लोकतंत्र तो साबित हो ही चुका है, पर सामाजिक तौर पर भी यह निहायत ही कमजोर है. किसी सामाजिक मुद्दे पर हमारा लगातार ध्यान जाता ही नहीं. समस्याएं आती हैं, हाय तौबा मचाती है और फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है. यह स्थिति जब तक नहीं बदलेगी, समस्याएं ऐसे ही विकराल होंगीं, लोग मर रहे होंगे और सरकारें सबका विकास कर रही होंगी.