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राजनीति

दो महीने में सुलझ जायेगा अयोध्या का रामजन्मभूमि विवाद!

Prema Negi
19 Sep 2019 8:02 AM GMT
दो महीने में सुलझ जायेगा अयोध्या का रामजन्मभूमि विवाद!
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कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों से कहा कि रोजाना चल रही सुनवाई को 18 अक्टूबर तक करना चाहते हैं पूरा, ताकि न्यायाधीशों को फैसला लिखने के लिये मिल सके करीब चार सप्ताह का वक्त...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

च्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के 26वें दिन बुधवार 18 सितंबर को कहा कि अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के पक्षकार चाहें तो मध्यस्थता के माध्यम से इसका सर्वमान्य समाधान कर सकते हैं। साथ ही न्यायालय ने कहा कि वह इस विवाद की रोजाना हो रही सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी करना चाहता है।

चीफ जस्टिस जन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि उसे उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला से एक पत्र मिला है। इसमें कहा गया है कि कुछ पक्षकारों ने मध्यस्थता प्रक्रिया फिर से शुरू करने के बारे में उन्हें पत्र लिखा है।

न्यायमूर्ति कलीफुल्ला शीर्ष अदालत द्वारा गठित तीन मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष थे। यह मध्यस्थता समिति इस विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने में विफल रही थी। इससे उम्मीद जगी है कि अगले दो महीने में अयोध्या भूमि विवाद का फैसला आ जायेगा।

संविधान पीठ ने 18 अक्टूबर को सुनवाई शुरू होते ही कहा कि इससे संबंधित एक मुद्दा है। हमें एक पत्र मिला है कि कुछ पक्षकार इस मामले को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाना चाहते हैं। पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि पक्षकार ऐसा कर सकते हैं और मध्यस्थता समिति के समक्ष होने वाली कार्यवाही गोपनीय रह सकती है।

पीठ ने कहा कि भूमि विवाद मामले की छह अगस्त से रोजाना हो रही सुनवाई काफी आगे बढ़ चुकी है और यह जारी रहेगी, लेकिन पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायमूर्ति कलीफुल्ला की अध्यक्षता में समिति के समक्ष मध्यस्थता प्रक्रिया जारी रखी जा सकती है और यह गोपनीय ही रहेगी।

पीठ ने हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों से कहा कि वह इस मामले की रोजाना चल रही सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरा करना चाहते हैं, ताकि न्यायाधीशों को फैसला लिखने के लिये करीब चार सप्ताह का वक्त मिल सके। संविधान पीठ की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीफ जस्टिस 17 नवंबर को अवकाश ग्रहण कर रहे हैं।

च्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट का संज्ञान लिया था। समिति ने करीब चार महीने फैजाबाद में विभिन्न पक्षों से बातचीत की, लेकिन इसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। इसके बाद ही न्यायालय ने 6 अगस्त से इस मामले की रोजाना सुनवाई करने का निश्चय किया।उच्चतम न्यायालय ने इस विवाद को सर्वमान्य समाधान के उद्देश्य से आठ मार्च को मध्यस्थता के लिये भेजा था और इसे आठ सप्ताह में अपनी कार्यवाही पूरी करनी थी। समिति को आशा थी कि इस विवाद का समाधान निकल आयेगा, इसलिए न्यायालय ने इसका कार्यकाल 15 अगस्त तक के लिये बढ़ा दिया था।

च्चतम न्यायालय ने समिति की 18 जुलाई तक की कार्यवाही की प्रगति के बारे में रिपोर्ट का अवलोकन किया और इसके बाद ही नियमित सुनवाई करने का निश्चय किया। उच्चतम न्यायालय इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले में दिये गये आदेश के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दलील देते हुए कहा कि रामचरित मानस में भी भगवान राम के जन्मस्थान के बारे में सही जगह नहीं बताई गई है। बस यही कहा गया है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे। धवन ने कहा कि प्राचीन काल में भारत में मंदिरों पर हमला किसी धर्म से नफरत की वजह से नहीं किया गया, बल्कि संपत्ति लूटने के लिए किया गया। सुनवाई के दौरान सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कई ऐतिहासिक किताबों का भी ज़िक्र किया।

वन ने कहा कि वर्ष 1855 में हिंदू और मुस्लिम दोनों विवादित जगह पर पूजा करते थे। मुस्लिम अंदर नमाज़ पढ़ते थे और हिंदू बाहर पूजा करते थे। धवन ने कहा कि हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया कि विलियम फिंच ने अयोध्या में विवादित जगह पर किसी मस्जिद के बारे में नहीं लिखा है, लेकिन एक विदेशी यात्री विलियम फॉर्स्टर ने विवादित स्थल पर मस्जिद की बात कही है। धवन ने कहा कि यह भी साफ नहीं है कि मंदिर को मुस्लिम शासक बाबर ने तोड़ा या औरंगजेब ने तोड़ा। धवन ने एक गज़ेटियर का हवाला देते हुए कहा कि गज़ेटियर में भी चबूतरे के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

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