Begin typing your search above and press return to search.
संस्कृति

इरफान ने अपने चाहने वालों को लंदन से लिखा यह भावपूर्ण पत्र

Janjwar Team
19 Jun 2018 5:43 PM IST
इरफान ने अपने चाहने वालों को लंदन से लिखा यह भावपूर्ण पत्र
x

ख्यात फिल्म अभिनेता इरफान खान गंभीर रूप से बीमार हैं और इन दिनों वह एक दुर्लभ बीमारी के इलाज के लिए लंदन में हैं। यह पत्र उन्होंने वहीं से अपने मित्र फ़िल्म पत्रकार-समीक्षक और न्यूज़ लॉन्ड्री के स्तंभकार अजय ब्रह्मात्मज को अपने चाहने वालों और चिंता करने वालों के लिए लिखा है...

कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला था कि मैं न्यूरोएन्डोक्रिन कैंसर से ग्रस्त हूँ, मैंने पहली बार यह शब्द सुना था. खोजने पर मैंने पाया कि मेरे इस शब्द पर बहुत ज्यादा शोध नहीं हुए हैं, क्योंकि यह एक दुर्लभ शारीरिक अवसथा का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है.

अभी तक अपने सफ़र में मैं तेज़-मंद गति से चलता चला जा रहा था... मेरे साथ मेरी योजनायें, आकांक्षाएं, सपने और मंजिलें थीं. मैं इनमें लीन बढ़ा जा रहा था कि अचानक टीसी ने पीठ पर टैप किया, 'आप का स्टेशन आ रहा है, प्लीज उतर जाएं.’ मेरी समझ में नहीं आया, ना ना मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है...’

जवाब मिला, ‘अगले किसी भी स्टाप पर उतरना होगा, आपका गन्तव्य आ गया...'

अचानक एहसास हुआ कि आप किसी ढक्कन (कॉर्क) की तरह अनजान सागर में अप्रत्याशित लहरों पर बह रहे हैं... लहरों को क़ाबू करने की ग़लतफ़हमी लिए.

इस हड़बोंग, सहम और डर में घबराकर मैं अपने बेटे से कहता हूँ, 'आज की इस हालत में मैं केवल इतना ही चाहता हूँ... मैं इस मानसिक स्थिति को हडबडाहट, डर, बदहवासी की हालत में नहीं जीना चाहता. मुझे किसी भी सूरत में मेरे पैर चाहिए, जिन पर खड़ा होकर अपनी हालत को तटस्थ हो कर जी पाऊं. मैं खड़ा होना चाहता हूँ.

ऐसी मेरी मंशा थी, मेरा इरादा था...

कुछ हफ़्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया. बेइंतहा दर्द हो रहा है. यह तो मालूम था कि दर्द होगा, लेकिन ऐसा दर्द... अब दर्द की तीव्रता समझ में आ रही है... कुछ भी काम नहीं कर रहा है. ना कोई सांत्वना और ना कोई दिलासा. पूरी कायनात उस दर्द के पल में सिमट आई थी... दर्द खुदा से भी बड़ा और विशाल महसूस हुआ.

मैं जिस अस्पताल में भर्ती हूँ, उसमें बालकनी भी है... बाहर का नज़ारा दिखता है. कोमा वार्ड ठीक मेरे ऊपर है. सड़क की एक तरफ मेरा अस्पताल है और दूसरी तरफ लॉर्ड्स स्टेडियम है... वहां विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता पोस्टर है. मेरे बचपन के ख्वाबों का मक्का, उसे देखने पर पहली नज़र में मुझे कोई एहसास ही नहीं हुआ... मानो वह दुनिया कभी मेरी थी ही नहीं.

मैं दर्द की गिरफ्त में हूँ.

और फिर एक दिन यह अहसास हुआ... जैसे मैं किसी ऐसी चीज का हिस्सा नहीं हूँ,जो निश्चित होने का दावा करे... ना अस्पताल और ना स्टेडियम. मेरे अंदर जो शेष था, वह वास्तव में कायनात की असीम शक्ति और बुद्धि का प्रभाव था... मेरे अस्पताल का वहां होना था. मन ने कहा...केवल अनिश्चितता ही निश्चित है.

इस अहसास ने मुझे समर्पण और भरोसे के लिए तैयार किया... अब चाहे जो भी नतीजा हो, यह चाहे जहाँ ले जाये, आज से आठ महीनों के बाद या आज से चार महीनों के बाद...या फिर दो साल... चिंता दरकिनार हुई और फिर विलीन होने लगी और फिर मेरे दिमाग से जीने- मरने का हिसाब निकल गया।

'

पहली बार मुझे शब्द ‘आज़ादी का एहसास हुआ सही अर्थ में! एक उपलब्धि का अहसास.

इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया. उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया. वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं... फ़िलहाल मैं यही महसूस कर रहा हूँ.

इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग... सभी मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं, मैं जिन्हें जानता हूँ और जिन्हें नहीं जानता, वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम जोन से मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं. मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थनाएं मिलकर एक हो गयी हैं, एक बड़ी शक्ति... तीव्र जीवनधारा बनकर मेरे स्पाइन से मुझ में प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही हैं.

अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती है... मैं खुश होकर इन्हें देखता हूँ. लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नई दुनिया दिखाती हैं।

अहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन (कॉर्क) का नियंत्रण हो. जैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों!

(इरफान का यह पत्र न्यूज लॉन्ड्री वेबसाइट से साभार)

Next Story

विविध