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समाज

1992 में बाबरी पर पहली कुदाल चलाने वाला कारसेवक मुस्लिम बनकर अबतक बनवा चुका है 100 मस्जिदें

Janjwar Team
12 Nov 2019 5:04 PM IST
1992 में बाबरी पर पहली कुदाल चलाने वाला कारसेवक मुस्लिम बनकर अबतक बनवा चुका है 100 मस्जिदें
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जब मस्जिद ढहाकर घर आया और घरवालों ने अहसास दिलाया कि मैं कितना गलत काम करके लौटा हूं तो गहरा सदमा लगा। बाबरी ढहाने के जुर्म का प्राश्चयित करने के लिए मैंने और मेरे साथी ने इस्लाम कबूल कर लिया और प्रण लिया कि देशभर में कम से कम 100 मस्जिदें बनवायेंगे...

जनज्वार। क्या आप जानते हैं बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए पहली कुदाल चलाने वाला शख्स आज कहां है, और किन हालातों में है, आखिर वह कर क्या रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बलबीर सिंह की जिन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए पहली कुदाल उठायी थी और उसके बाद पूरी मस्जिद ढहा दी गयी थी। अब उसी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर बनेगा और 40 दिन तक चली लंबी सुनवाई के बाद मस्जिद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को 5 एकड़ जमीन अयोध्या में देने का आदेश दिया है।

खैर हम बात कर रहे थे बलबीर सिंह की, जोकि शिवसेना से जुड़े थे और आरएसएस से गहरे प्रभावित। बलबीर सिंह को अब लोग इस नाम से नहीं जानते। बाबरी मस्जिद की गुंबद पर कुदाल लेकर चढ़ने वाले बलबीर सिंह को दुनिया अब मोहम्मद आमिर के नाम से जानती है, जिन्होंने बाबरी विध्वंस के बाद इस्लाम कबूल कर लिया था। वे अब एक स्कूल चलाते हैं और इस्लाम का संदेश लोगों तक पहुंचाते हैं।

फिलहाल बलबीर सिंह उर्फ मोहम्मद आमिर की चर्चा मीडिया में इसलिए भी सामने आयी है कि एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अयोध्या की विवादित जमीन पर हुए फैसले यानी मस्जिद निर्माण के लिए मिली 5 एकड़ जमीन को खैरात बताते हुए कहा कि मुस्लिमों को किसी के रहम की जरूरत नहीं है। मुस्लिम समाज अपने कानूनी हक की लड़ाई लड़ रहा है और उसे कतई किसी खैरात की जरूरत नहीं है। मेरे खयाल से हमें 5 एकड़ जमीन का प्रस्ताव ठुकरा देना चाहिए। हमें किसी सरपरस्ती की जरूरत नहीं है।'

वैसी के बयान पर मोहम्मद आमिर कहते हैं, सुन्नी वक्फ बोर्ड को जो जमीन मस्जिद बनाने के लिए मिली है, वह कोई खैरात नहीं बल्कि कोर्ट की तरफ से मिला मुआवजा है।

कौल मोहम्मद आमिर 1 दिसंबर 1992 को उन कारसेवकों में शामिल थे, जो पूरे देशभर से अयोध्या पहुंचे थे। उसी साल 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए कुदाल लेकर गुंबद पर चढ़ने वाले पहले शख्स थे।

मिर कहते हैं, बाद में जब बाबरी मस्जिद ढहने के बाद मैं अपने गांव पहुंचा तो मेरा स्वागत किसी नायक की तरह किया गया, मगर अपने घर वालों का रिएक्शन देखा तो मुझे गहरा सदमा लगा। गांधीवादी विचारों के प्रेरक मेरे पिता और घरवालों ने एहसास दिलाया कि मैंने बहुत गलत काम किया है। उनके रिएक्शन और बाबरी के बाद हुए खूनखराबे, हिंसक माहौल, मौतों ने मेरे मन में वितृष्णा भर दी। लगा हमने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया है। मोहम्मद आमिर के साथ चढ़ने वाले दूसरे शख्स जिनका नाम योगेंद्र पाल था, उन्होंने भी बाद में इस्लाम कबूल कर लिया और अब वो मोहम्मद उमर के नाम से जाने जाते हैं।

मोहम्मद आमिर ने मीडिया को बताया, 'मैं एक राजपूत घराने से ताल्लुक रखता था, और राजपूत हमेशा अपनी शान के लिए लड़ता है और गलत का साथ नहीं देता। बाबरी विध्वंस मामले में कानून हाथ लेने के बाद मुझे और योगेंद्र जो अब मोहम्मद उमर हैं, दोनों को एहसास हुआ कि हमने बहुत गलत किया, इसी के प्राश्चयित के बतौर हमने मुस्लिम धर्म स्वीकारा।'

गौरतलब है कि कारसेवक से मुस्लिम धर्म के सफर में अब तक मोहम्मद उमर और मोहम्मद आमिर 100 मस्जिदों का निर्माण करवा चुके हैं।

मुंबई मिरर के साथ हुए 2017 के एक इंटरव्‍यू में बलबीर उर्फ मोहम्‍मद आमिर ने अपनी जिंदगी के बारे में बताते हुए कहा, 'मैं ​हरियाणा के पानीपत के एक गांव में जन्मा। जब मैं 10 साल का था तो हमारा पूरा परिवार गांव छोड़कर पानीपत शहर आ गया था। गांव वालों के लिए पानीपत में अलग ही माहौल था, एकदम दुश्मनी वाला। बच्चे तक साथ में नहीं खेलते, यूं कहें कि मारपीट रोज का किस्सा बन गया था। इसी बीच एक दिन मैं RSS की एक शाखा में गया, तो वहां मुझे आप कहकर पुकारा गया। इतना सम्मान इस शहर में मुझे कभी मिला नहीं था, इसलिए वहां से एक अलग ही लगाव हो गया। जब मैं 20 साल का था, तब मैंने शिवसेना जॉइन कर ली और भाइयों के साथ मिलकर घर का बिजनेस संभालने लगा। पढ़ाई—लिखाई भी चलती रही, रोहतक महर्षि यूनिवर्सिटी से ट्रिपल एमए किया। सबकुछ ठीक चल रहा था कि इसी बीच बाबरी मस्जिद वाला प्रकरण आया। हमें भी कहा गया कि मंदिर की जगह पर जबरन मस्जिद बनायी गयी थी, तो हम भी उत्साह में बाबरी ढहाने के लिए पहली पंक्ति में शामिल हो गये।'

मोहम्मद आमिर कहते हैं, 'जब मस्जिद ढहाकर घर आया और घरवालों ने अहसास दिलाया कि मैं कितना गलत काम करके लौटा हूं तो गहरा सदमा लगा। बाबरी ढहाने के जुर्म का प्राश्चयित करने के लिए मैंने और मेरे साथी ने इस्लाम कबूल कर लिया और प्रण लिया कि देशभर में कम से कम 100 मस्जिदें बनवायेंगे।'

बाबरी पर पहली कुदाल चलाने वाले मोहम्मद आमिर उर्फ बलबीर सिंह और मोहम्मद उमर उर्फ योगेंद्र पाल अब तक देशभर में लगभग 100 मस्जिदें बना चुके हैं। दोनों लोगों के बीच इस्लाम की अच्छी शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए अनवरत लगे हुए हैं।

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