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चुनावी पड़ताल 2019

चुनाव आयोग के ईमानदार दिखने की कोशिश विपक्ष पर न पड़ जाए भारी

Prema Negi
18 March 2019 6:15 AM GMT
चुनाव आयोग के ईमानदार दिखने की कोशिश विपक्ष पर न पड़ जाए भारी
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ईवीएम मशीनों की ट्रैकिंग के लिए जीपीएस प्रणाली लगाने में छिपा है पूरा खेल

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। चुनाव आयोग ने रविवार 10 मार्च को बहुप्रतीक्षित 17वीं लोकसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। विपक्ष की मांग के बावजूद चुनाव आयोग अभी तक 50 फीसद बूथों पर वीवीपैट की पर्चियों की गिनती करने पर सहमत नहीं है, लेकिन बिना किसी राजनीतिक दल की मांग के अपने को ईमानदार साबित करने के लिए ईवीएम मशीनों को ट्रैक करने के लिए इन्हें लाने-ले जाने वाले सभी वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाया जाएगा।

ईमानदार होना नहीं ईमानदार दिखना चाहिए, के लिए आयोग के इस कदम में ही ईवीएम का खेल छिपा है। लाख टके का सवाल है कि जो आयोग 50 फीसद वीवीपैट पर्चियों की गिनती पर सहमत नहीं है वह स्वत: जीपीएस सिस्टम लगाने के लिए क्यों तैयार हो गया है? यदि मतदान केन्द्रों से मतगणना केन्द्रों के बीच 10 से 15 फीसद ईवीएम को बदल दिया जाये तो हार—जीत का फासला एक फीसद रह जायेगा। लगेगा कि नेक टू नेक फाइट है यानी कांटे की लड़ाई है। फिर इस देश में जहाँ नेट की बुरी गत है, वहाँ जीपीएस सिस्टम कितना कारगर होगा इस पर भी गम्भीर प्रश्नचिन्ह है।

इस बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू की अगुआई में 21 विपक्षी दलों की ओर से ईवीएम को लेकर दाखिल याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने दोनों से 25 मार्च तक अपना जवाब देने को कहा है। याचिका में उच्चतम न्यायालय से मांग की गई है कि वह चुनाव आयोग को निर्देश दे कि काउटिंग के दौरान कम से कम 50 फीसद वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाए।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा है कि 25 मार्च को होने वाली सुनवाई के दौरान अदालत की मदद के लिए चुनाव आयोग के कोई जिम्मेदार अधिकारी कोर्ट में मौजूद रहें।

ईमानदार दिखने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में कई नियम और प्रावधान पहली बार किये गये हैं। राजनीतिक दलों की ओर से लगातार ईवीएम मशीन पर उठ रहे सवालों के मद्देनजर यह पहला मौका है, जब देशभर में सभी बूथों पर वीवीपैट का इस्तेमाल होगा। साथ ही वोटिंग मशीन पर पार्टी के नाम और चिन्ह के साथ ही उम्मीदवारों की फोटो भी होगी, वहीं इस बार उम्मीदवारों को विज्ञापन देकर अपना आपराधिक रिकॉर्ड बताना होगा।

उन्हें सोशल मीडिया अकांउट की जानकारी भी देनी होगी। ईवीएम पर कड़ी नजर रखने के लिए मशीनों को ट्रैक करने के लिए इन्हें लाने-ले जाने वाले सभी वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाया जाएगा। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में इसको लेकर शिकायतें मिली थीं और चुनाव आयोग की भारी किरकिरी हुई थी। यह तो परिणाम विपक्ष के पाले में रहा, वरना इस पर भरी बवाल मचना तय था।

देशभर में सभी बूथों पर होगा वीवीपैट का इस्तेमाल

इस आम चुनाव में पहली बार पूरे देश भर में वीवीपैट का इस्तेमाल होगा। ईवीएम से प्रिंटर की तरह एक मशीन अटैच की जाती है। वोट डालने के 10 सेकेंड बाद इसमें से एक पर्ची बनती है, इस पर जिस प्रत्याशी को वोट दिया है उसका नाम और चुनाव चिन्ह होता है। यह पर्ची सात सेकंड तक दिखती है, इसके बाद मशीन में लगे बॉक्स में चली जाती है। इस मशीन को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड डिजाइन किया है।

लोकसभा चुनाव के लिए आयोग का हेल्पलाइन नंबर-1950 होगा। मोबाइल पर ऐप के जरिए भी आयोग को आचार संहिता के उल्लंघन की जानकारी दी जा सकती है और 100 मिनट के भीतर आयोग के अधिकारी को इस पर कार्रवाई करेंगे। साथ ही शिकायतकर्ता की निजता का ख्याल रखा जाएगा।

सुप्रीमकोर्ट में याचिका

दरअसल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और 20 अन्य विपक्षी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में लोकसभा चुनावों के दौरान ईवीएम में सुरक्षा उपायों की मांग की है और चुनाव आयोग को निर्देश देने की गुहार लगाई है कि वो हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 50 फीसद मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल वीवीपैट पर्चियों की औचक गिनती करें।

चंद्रबाबू नायडू के अलावा याचिका दायर करने वाले अन्य लोगों में शरद पवार, के. सी. वेणुगोपाल, डेरेक ओ'ब्रायन, शरद यादव, अखिलेश यादव, सतीश चंद्र मिश्रा, एम. के. स्टालिन, टी. के. रंगराजन और अरविंद केजरीवाल आदि ने ये याचिका दाखिल की है।

उन्होंने यह दलील प्रस्तुत की कि देशभर के 7 (राष्ट्रीय दलों और 15 क्षेत्रीय दलों में से 6) दल चुनावी रूप से लगभग 70 भारत के 75 फीसद लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वो इस याचिका को चुनाव आयोग की गाइडलाइन को खत्म करने के लिए दिशा निर्देश देने के लिए दायर कर रहे हैं, जो कि वीवीपीएटी के साथ मिलान को प्रदान करता है।

इसके तहत किसी निर्वाचन क्षेत्र के बेतरतीब ढंग से चयनित केवल एक मतदान केंद्र के लिए ये औचक निरीक्षण आयोजित किया जाता है। उन्होंने प्रति विधानसभा सेगमेंट में वीवीपैट का उपयोग करके कम से कम 50 फीसद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग को दिशा-निर्देश देने की मांग की है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना था कि वीवीपीएटी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अनिवार्य आवश्यकता है। याचिकाकर्ता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के माध्यम से संविधान की बुनियादी संरचना को सुरक्षित रखने के कारण की तलाश करना चाहते हैं, ताकि वो संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत नागरिकों के मौलिक अधिकारों से वंचित न हों। उन्होंने कहा कि ईवीएम और मतगणना संदेह से मुक्त नहीं हुई है, ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जो आम जनता के मन में मतगणना/चुनाव प्रक्रिया के समग्र आचरण के प्रति अविश्वास पैदा करती हैं।

याचिका में कहा गया है कि वीवीपैट उन आशंकाओं को दूर करने के लिए एक उपयुक्त तरीका है और यह सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव, जो इस न्यायालय द्वारा भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा बताए गए हैं, की रक्षा की जाए।

कहा गया है कि वीवीपैट द्वारा सुनिश्चित की गई चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता एक ऐसा स्तंभ है, जिस पर लोगों का विश्वास और भरोसा कायम है, इसलिए वर्तमान याचिका में ईवीएम के उपयोग में अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई है। हालांकि, वीवीपैट के संचालन के लिए वर्तमान में चुनाव आयोग की गाइडलाइन का पालन किया जा रहा है, जो वीवीपैट को शुरू करने के सम्पूर्ण उद्देश्य को पराजित करता है और बिना किसी वास्तविक पदार्थ के इसे सिर्फ सजावटी व्यवस्था बनाता है।

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