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Pune news : महाराष्ट्र की गौशाला में गायों को चारा-पानी न मिलने से मर रहीं गायें
पुणे से रामदास तांबे की रिपोर्ट
भले ही महाराष्ट्र सरकार ने गौहत्या पर पाबंदी लगाई है, लेकिन दूसरी तरफ गायों के लिए दाना—पानी की पर्याप्त व्यवस्था न होने से गायें तड़प—तड़प कर मर रही हैं। ऐसे में गौहत्या पर पाबंदी की अपनी घोषणा को जमीनी स्तर पर लागू करने में महाराष्ट्र सरकार पूरी तरह से असफल हुई है।
महाराष्ट्र के पुणे जनपद के पुरन्दर तहसील में सरसेनापति हंबीरराव मोहिते गौशाला में समुचित खाद्य और पानी न मिलने की वजह से कई गायें, बैल, भैंसें अकाल मौत के मुंह में समा रहे हैं। दाना—पानी और इलाज के अभाव में ये जानवर मौत के मुंह में समा रहे हैं। गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस गौशाला में सभी जानवरों को जिस तरह से रखा है, वह काफी दयनीय है। न तो उनके खाद्य—पानी की समुचित व्यवस्था है, न रहने की।
गौशाला से लौटकर वहां हो रही गायों की मौतों के बारे में बताने वाले आनंद कोकरे जो कि मेशपालकपुत्र आर्मी संगठन के अध्यक्ष की हैं, कहते हैं जब महाराष्ट्र सरकार ने गौहत्या पर पाबंदी लगाने की घोषणा करते हुए उन्हें बजाय कसाइयों के हाथों में सौंपने के गौशालाओं में रखने की घोषणा की तो हम लोग बहुत खुश थे कि चलो इससे गौवध रुकेगा, मगर कल 16 मई को गौशाला में दम तोड़ती गायों, बीमार गायों जिन पर बीमारियों के चलते कीड़े तक पड़े हुए थे मगर उनके साफ—सफाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, पानी-चारे के लिए तरसते पशुओं को देखा तो लगा कि इससे तो बेहतर उन्हें कसाई के हाथ में ही सौंपना था, इस तरह तिल—तिलकर तो जान नहीं दे रहे होते ये बेजुबान।
गर्मियां चरम पर हैं। इतनी गर्मी होने पर भी सभी जानवरों को न समय पर पानी मिलता और न ही खाने के लिए चारा। इन परिस्थितियों में सभी जानवरों की हालत काफी गंभीर बनी हुई है। इन्हीं स्थितियों से दो-चार होते हुए कई गाएं तो अकाल काल के गाल में समा गयी हैं। बावजूद इसके गौशाला व्यवस्थापक यह मानने को तैयार नहीं कि उनकी खामियों के चलते ये बेजुबान जानवर मौत के मुंह में समा रहे हैं।
अमानवीयता और क्रूरता की हद पार करके इन जानवरों के साथ जो व्यवहार हो रहा है, उससे गाय को गौमाता कह राजनीति करने वालों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। मगर इस सबसे बेखबर और लापरवाह गौशाला व्यवस्थापक जानवरों की जिंदगी के साथ जिस तरीके से खिलवाड़ कर रहे हैं वह कई सवाल खड़े करता है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या ऐसी गौशालाओं पर महाराष्ट्र सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहा, जो एक के बाद एक पशु दम तोड़ रहे हैं।
सवाल यह भी कि आखिर गौशाला व्यवस्थापक पशुओं की सही तरीके से देखभाल क्यों नहीं कर रहे हैं। क्या महाराष्ट्र सरकार से गौशालाओं को मिलने वाली अनुदान राशि कम पड़ रही है, या फिर पेंच कहीं और फंसा है। यानी कि चारा घोटाला मामले में सिर्फ देश में लालू प्रसाद यादव ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र में भी ऐसे कई नेता—नौकरशाह होंगे जो मनुष्य के हिस्से का खाना तो छोड़िए पशुओं का खाद्य खाने में भी कुछ शर्म महसूस नहीं करते। महाराष्ट्र मामले में जिस तरह के खुलासे हो रहे हैं, उससे तो यह लगता है कि कई जगह गौशालाओं को खोलने का मकसद सिर्फ जगह हड़पना है। जानवरों को इस तरह मौत की नींद सुलाकर ये लोग जगह हड़पने की फिराक में हैं।
ऐसे गौशाला संचालकों पर महाराष्ट्र सरकार क्या कड़ी कार्रवाई करेगी, यह भी बड़ा सवाल है। जिस तरह से बेजुबान जानवर मौत के मुंह में खराब व्यवस्था और चारे—पानी की कमी के चलते जा रहे हैं, उससे महाराष्ट्र सरकार का गौहत्या रोकने का वादा सिर्फ फौरी नजर आता है।
(सभी फोटो सरसेनापति हंबीरराव मोहिते गौशाला की)