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भयंकर स्तर पर पहुंचा बिहार में पलायन, सिर्फ एक रेलवे स्टेशन से बिके 5 दिन में 2 करोड़ के टिकट
हम फिर से उसी जगह पहुंच गये हैं, जहां 2005 मे पहले थे. यह अच्छी नहीं दुखदायक खबर है. जब इस जंक्शन से टिकटों की बिक्री कम होगी, तभी समझियेगा कि कोसी का इलाका समृद्ध हो रहा है...
पुष्य मित्र, युवा पत्रकार
खबर आयी है कि पिछले पांच दिनों में देश के सबसे पिछड़े इलाके कोसी में स्थित एक छोटे से स्टेशन सहरसा जंक्शन ने टिकट बिक्री से दो करोड़ का राजस्व कमाया है.
यह इस अवधि में पटना, मुगलसराय, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर जैसे बड़े स्टेशनों से भी अधिक है. इसे पूरे जोन में सबसे अव्वल माना जा रहा है. सहरसा के कई मित्र इस खबर पर खुशी जाहिर कर रहे हैं. मैं सोच रहा हूं, इस खबर पर हंसूं या रोऊं.
दरअसल, सहरसा में टिकटों की यह रिकार्डतोड़ बिक्री इस वजह से हो रही है, क्योंकि इस पूरे इलाके के मजदूर धान रोपणी के लिए पंजाब और हरियाणा और दूसरे किस्म के मजदूरी की तलाश में दिल्ली जा रहे हैं.
स्थानीय रेलवे स्टेशन को यह मोटी आय बेरोजगार मजदूरों की उस भीड़ से हो रही है, जो पलायन के लिए मजबूर हैं. उनके लिए हमारे इलाके में कोई ढंग का काम नहीं है. हम धान रोपणी के सीजन में भी उन्हें इतनी मजदूरी नहीं दे पाते कि वे यहां रुक जायें. यह खुशी का मौका नहीं हमारी गरीबी और बदहाली का तमाशा है.
पिछले साल भी बाढ़ के बाद सहरसा जंक्शन पर ऐसी ही भीड़ उमड़ी थी. मजदूर टिकट कटाकर स्टेशन में पांच-पांच दिन पड़े रहते और उन्हें ट्रेनों में जगह तक नहीं मिलती. इस साल भी वही हो रहा है.
पलायन इस इलाके का ऐसा रोग है जिसका इलाज सरकारें ढूंढना भी नहीं चाहती. कुछ साल पहले तक सीएम नीतीश कुमार ने यह कह कर अपनी ब्रांडिंग की थी कि मनरेगा के कारण अब बिहार से मजदूर बाहर नहीं जाते. मगर यह दावा बहुत जल्द हवा हवाई हो गया.
हम फिर से उसी जगह पहुंच गये हैं, जहां 2005 मे पहले थे. यह अच्छी नहीं दुखदायक खबर है. जब इस जंक्शन से टिकटों की बिक्री कम होगी, तभी समझियेगा कि कोसी का इलाका समृद्ध हो रहा है.
(पुष्य मित्र प्रभात खबर के साथ जुड़े युवा पत्रकार हैं और उनकी किताब 'रेडिया कोसी' चर्चित है। पोस्ट एफबी से।)