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राजनीति

भारत में महिला आयोग और महिला विकास मंत्रालय है या उठ चुकी है अर्थी

Janjwar Team
12 April 2018 6:59 PM GMT
भारत में महिला आयोग और महिला विकास मंत्रालय है या उठ चुकी है अर्थी
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बेटी बचाओ—बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली मोदी सरकार ने अगर किसी आयोग और मंत्रालय का पूरी तौर पर गला घोंट दिया है तो वह महिला आयोग और महिला विकास मंत्रालय, जो जघन्य से जघन्य महिला अपराधों पर मुंह तो नहीं ही खोल पाते हैं, एक प्रेस रिलीज तक जारी नहीं कर पाते...

जनज्वार, दिल्ली। देश में चाहे महिलाओं पर जितना बड़ा अपराध—अत्याचार हो जाए, आप न महिला आयोग को कुछ बोलते पाएंगे, न ही महिला विकास मंत्रालय की मेनका गांधी का कोई बयान देखेंगे। दोनों जिम्मेदार विभागों का ऐसा बेअसर रोल देख यही लगता है कि भारत में कभी ये विभाग थे ही नहीं।

जम्मू के कठुआ के मंदिर में 4 दिन तक 7 लोगों द्वारा आसिफा नाम की 8 बरस की बच्ची का बलात्कार के बाद पत्थर से कूंच कर हत्या मामले ने जिस तरह देश को झकझोर दिया है, उस पर महिला आयोग का एक शब्द न बोलना बताता है कि मोदी सरकार में आयोग की अर्थी उठ चुकी है। सवाल है कि आखिर किस काम आता है देश का महिला आयोग, क्या वह सिर्फ जनता की कमाई खाने के लिए बैठा और शाम को ताला बंद कर घर जाने के लिए।

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उन्नाव के बांगरमऊ से बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उसके भाई के खिलाफ सालभर पहले के सामूहिक बलात्कार और पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में जैसा 'मौन उपवास', केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की मुखिया मेनका गांधी ने साधा है, वैसा मौन इतिहास में किसी मंत्री ने पहले नहीं साधा होगा।

बड़ी मुश्किल से आज भाजपा द्वारा घोषित उपवास के लिए दिल्ली के हनुमान मंदिर पहुंची मेनका गांधी को चारों ओर से मीडिया ने घेर लिया तो उन्होंने कह दिया कि कानून अपना काम कर रहा है, जो उचित कार्यवाही होगी, एजेंसियां करेंगी। बस हो गया मेनका गांधी का काम, आ गया बयान।

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अगर महिला मंत्रालय की मुखिया ऐसा असंवेदनशील बयान देंगी फिर जरूरत क्या है ऐसे किसी मंत्रालय की जिसका सलाना बजट करोड़ों का होता है। इस तरह का बेपरवाह बयान तो पुलिस का अधिकारी और भाजपा के नेता दे ही रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि यह वही मेनका गांधी हैं जो कुत्ता—बिल्ली पर होने वाले अपराधों पर खूब बोलती हैं, उनको सजा दिलाने के अदालत से सड़क तक एक कर देती हैं, लेकिन उनकी इंसानों के मामलों में बोलती बंद हो जाती है।

हालांकि उनसे ऐसा करने का आदेश खुद मोदी जी ने दिया है या उन्होंने दूसरे मंत्रियों की हालत देखते हुए स्वत: संज्ञान से अपना लिया है, यह तो पता नहीं पर इतना तो तय है कि महिलाओं पर सबसे ज्यादा चिंता बिखेरने वाले मोदी की सरकार में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के मामले में महिला मंत्रालय मृतप्राय पड़ा है।

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उधर मोदी मंत्रिमंडल की सबसे ताकतवर मंत्रियों में शामिल स्मृति ईरानी ने तो इस मसले पर मुंह ही खोलने से मना कर दिया। कहा कि कठुआ और उन्नाव पर वह सड़क पर यूं ही चलते—चलते बात नहीं करेंगी। ऐसे में ये माना जाना चाहिए कि वह शाम को दावत पर बुलाकर और बैठाकर अपना बयान मीडिया को दर्ज कराएंगी कि वह उन्नाव और कठुआ की घटनाओं के बाद इन दिनों कैसा महसूस कर रही हैं।

इस पूरे मामले में ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि उन्नाव और जम्मू की वारदातों के मामले में स्मृति ईरानी और मेनका गांधी के दर्शन होने पर मीडिया के दो सवाल हो गये, लेकिन क्या मजाल की आप महिला आयोग की कार्यकारी अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहीं कोई जिक्र सुने हों, उन्होंने पीड़ितों के इलाके में दौरा किया हो, पुलिस को नोटिस किया हो या कुछ भी एक्स—वाई—जेड किया हो।

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कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि फिर देश को महिला आयोग जैसे मंत्रालयों और महिला आयोग जैसे विभागों को क्यों झेलना चाहिए, जो बिना काम के हैं। वह उनके लिए भी कुछ नहीं करते या बोलते जिनके कल्याण के नाम पर इनका गठन हुआ है, जिनके नाम की ये रोटी खाते हैं।

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पुलिस का हाल तो यह है कि बलात्कार के आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के लिए माननीय विधायक जी प्रेस कांफ्रेंस में संबोधित करते हैं। ऐसे में उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करने की हिम्मत करेंगे इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। हो सकता है कि हमारी महिला मंत्रियों और मोदी जी के दिल में भी कुलदीप सिंह सेंगर के लिए माननीय जैसी ही इज्जत हो, तभी तो उसके खिलाफ एफआईआर तक तब दर्ज हुई जबकि पीड़िता के पिता को साजिशन मौत के घाट उतार दिया गया।

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