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शिक्षा

इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और बीएड कॉलेजों को नहीं मिल रहे एडमिशन के लिए छात्र

Prema Negi
3 Aug 2018 7:41 PM IST
इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और बीएड कॉलेजों को नहीं मिल रहे एडमिशन के लिए छात्र
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बेरोजगार युवा हमारी फेसबुक और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बन रहे हैं प्रोफेसर, नेताओं के हिन्दू— मुस्लिम बहस को श्रोता, कार्यकर्ता और दर्शक सब मिल रहे फ्री में, बेरोजगारी से उपजी कुंठा हिंसा, नशे और अपराध में देख रही है रास्ता

विधान परिषद सदस्य शशांक यादव का विश्लेषण

उत्तर प्रदेश में एक लाख इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की सीट खाली रह गई हैं। वोट राजनीति के चलते बीएड वालों को बीटीसी के लिए मान्यता देकर शिक्षा जगत में भी लाखों युवाओं में परेशानी बैचेनी बढ़ गई है। ये तब है जब यूपी के 39 कॉलेज पिछले साल बंद हो चुके हैं।

देश के पैमाने पर देखें तो तस्वीर बहुत भयावह है। बेरोजगारी की दर बढ़ रही है। 4 करोड़ से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं। 2018 में कुल 6 लाख नये रोजगार सृजन होने का अनुमान है, महिलाओं की स्थिति और भी बुरी है। वहां 50 प्रतिशत से अधिक बेरोजगारी है। ये बात दीगर बात है हमारे नव अर्थशास्त्री कह दें कि गृहकार्य भी पकौड़े की तरह रोजगार है।

बात इतनी ही नहीं है कि इंजीनियरिंग मैनेजमेंट की देश की प्रतिष्ठित उद्यम संस्थायें मानती हैं कि हमारे तकनीकी स्नातकों में 60 प्रतिशत से अधिक रोजगार देने लायक ही नही हैं। नेता नगरी और पूँजीपतियों के गठजोड़ ने सरकारी नियमों की धता बताकर पैसों के दम पर अंधाधुंध काॅलेज खोल दिए, जिनमें न तो अध्यापक ही ठीक हैं और न ही कोर्स आधुनिक रूप में है।

यही बेरोजगार हमारी फेसबुक और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बन रहे हैं। नेताओं के हिन्दू— मुस्लिम बहस को श्रोता, कार्यकर्ता और दर्शक सब फ्री में मिल रहे हैं। बेरोजगारी से उपजी कुंठा हिंसा, नशे और अपराध में रास्ता देख रही है।

नई पीढ़ी को लग रहा है कि आरक्षण उनका हक मार रहा है, अल्पसंख्यक संसाधनों पर कब्जा जमाए हुए हैं और इस शरारत में पाकिस्तान का हाथ है। ऐसे लोग मजबूत पर नहीं, कमजोर पर अपनी ताकत दिखाते हैं। हमारा बेरोजगार युवा स्पष्ट दिशा के अभाव में कलुषित राजनीति का सबसे मुलायम चारा बन गया है।

हमने कभी भी श्रम की महत्ता को इज्जत नहीं दी है। एक माइंडसेट बना है कि अकलमंद आदमी बैठकर खाते हैं और बेवकूफ काम करते हैं। किसान का पढ़ा—लिखा लड़का भी खेती को हेय दृष्टि से देखता है और पूरी पढ़ाई का फोकस टीचर के लेक्चर की बमबारी पर निर्भर है।

हमारे यहां शिक्षा या किसी भी विषय में नयी जानकारी या प्रयोग को परास्नातक के बाद शोध छात्रों के लिये छोड़ दिया गया है। इंटर के बाद से ही छात्रों में खुद को संवारने की चाहत पैदा ही नही होने दी जाती है।

प्रोजेक्ट आधारित पढ़ाई छात्र को सोचने समझने और विश्लेषण के लिए मजबूर करती है, लेकिन सवाल उठाना हमारे यहां गुस्ताखी समझी जाती है क्योंकि सवाल उठाते ही छात्र के अन्दर पैदा होने वाला आत्मविश्वास कल को सिस्टम के लिए बड़े सवाल खड़े कर सकता है इसलिए छात्र राजनीति को खलनायक का दर्जा दे दिया गया।

सवाल न उठे इसलिये बड़े आराम से देश का बडे से बड़ा नेता भी माता सीता को टेस्ट ट्यूब बेबी, गणेश को सर्जरी का और कौरवों को स्टेमसेल सेल का उत्पाद मानने की सार्वजनिक घोषण करके तार्किकता की भ्रूण हत्या आराम से कर देता है। ये एक शानदार साजिश है।

मन की बात सुनते बेरोजगार युवा

शिक्षा के क्षेत्र में शानदार काम कर रहे प्रतिष्ठित संस्थानों का निजीकरण करके फीस इतनी महंगी कर दी जाती है कि गुणवत्ता परक शिक्षा केवल अमीरों की बपौती बने और पैसों के दम पर नीट के माध्यम से जीरो या निगेटिव 4 से 5 नम्बर पाने वाले भी डॉक्टर बन रहे हैं।

रोजगार की गारण्टी हमारे यहाँ अधिकार नही बन सका है। पूरे तंत्र को मौजूदा समय में सिर्फ भीड़ की जरूरत है। भीड़ का न सिर होता है, न चेहरा। भीड़ आराम से रिमोट से नियंत्रित होती है। इस भीड़ में अगर कथाकथित पढ़े-लिखे शामिल हो जायें तो अपराधों को तार्किक बनाने के बहाने मिल जाते हैं।

हमारा युवा निश्चित सोच, लक्ष्य और संवेदनाओं के अभाव में सिर्फ भीड़ का हिस्सा बन रहा है। सार्थक नागरिक बनने के लिये सार्थक गुणवत्तापरक शिक्षा इस धर्म व राजनीति के मिश्रण वाले पूँजीपरस्त तन्त्र की न कभी प्राथमिकता थी, न कभी रहेगी। बल्कि फासिस्ट सोच यही चाहेगी कि इन्सान को रोबोट में तब्दील करने के लिये सबसे आसान हिन्दू—मुस्लिम की चाशनी चटा कर नशे में रखना है। बेरोजगारी के सवाल खुद ही दब जायेंगे।

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