विरोध-प्रदर्शनों के आगे झुकी उत्तराखंड पुलिस, आंख निकालने की धमकी देने वाले मुनस्यारी थाने के थानेदार का हुआ ट्रांसफर
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी थाने के एसएचओ की गुंडागर्दी भरी भाषा और धमकी को गलत तो सभी अधिकारी मान रहे हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर किया क्या, सिर्फ ट्रांसफर, ऐसे में सवाल है कि उत्तराखंड की ये मित्र पुलिस आम लोगों के मन में कानून का भरोसा कैसे जगा पाएगी...
उत्तराखण्ड से विमला की रिपोर्ट
जनज्वार। अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले उत्तराखंड में भी मॉब लिंचिंग जैसी जघन्य वारदातें सामने आने लगी हैं। यहां के सीमांत इलाके मुनस्यारी में मॉब लिंचिंग जैसा एक मामला सामने आया है, जिसे भीड़ ने नहीं बल्कि उत्तराखण्ड की मित्र पुलिस द्वारा अंजाम दिया गया है।
29 साल का नौजवान विक्रम जंगपांगी, जो मुनस्यारी में एक छोटा सा कैफे चलाता है, को 14 अक्टूबर की शाम को पुलिस अचानक बिना कारण बताये उठाकर ले गयी और उसके साथ वीभत्स तरीके से मारपीट की। उसके बाद जब वह रिपोर्ट लिखवाने थाने गया तो न सिर्फ उसे दोबारा पीटा गया, बल्कि उस पर फर्जी धाराओं में उल्टा मुकदमा जड़ दिया गया। पुलिसिया ज्यादती से विक्रम जंगपांगी की हालत बहुत बिगड़ गयी तो उसकी मां ने तमाम प्रशासनिक अधिकारियों राजनेताओं से गुहार लगायी, मगर सरकार ने भी इस मामले में चुप्पी साधी हुई है।
जब स्थानीय स्तर पर कोई भी विक्रम के साथ पुलिस द्वारा अंजाम दी गयी इस लिंचिंग पर कुछ कहने-करने को तैयार नहीं है तो उसकी मां बसंती जंगपांगी ने उत्तराखण्ड सरकार से गुहार लगायी है। बसंती जंगपांगी कहती हैं, 'ये कैसा जंगलराज है सरकार का कि मेरे बेटे को पुलिस ने बिना कारण बताये और बिना कुछ जाने ही जानवरों की तरह पीट दिया। पहले उसके साथ गाली-गलौज की गयी, फिर बुरी तरह पीटकर लहुलूहान कर दिया गया।'
गौरतलब है कि पुलिस आईपीसी की धारा 504, 506 के तहत पुलिस अधिकारी द्वारा मारपीट करने पर या गाली-गलौच करने और धारा 323 के तहत शिकायत दर्ज करा सकते हैं। कोई भी पुलिस अधिकारी किसी नागरिक से गाली गलौच नहीं कर सकता, अगर पुलिस ऐसा करती है तो यह हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है। पुलिस कानून के दायरे में रहकर ही काम कर सकती है। पुलिसकर्मियों द्वारा अभ्रद व्यवहार किये जाने पर संबंधित थाने के न्यायालय में शिकायत दर्ज कर सकते हैं या वरिष्ठ अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
जनज्वार ने जब पिथौरागढ़ के एसपी रामचंद्र गुरु से इस संदर्भ में बात की तो उन्होंने कहा, 'पुलिस वालों का किसी से भी गाली—गलौज करना बहुत शर्म की बात है। इस तरह की हरकतों से पुलिस खुद को ही छोटा दिखाती। एसएचओ प्रदीप कुमार ने तो कोतवाली प्रभारी के तौर पर गाली दी, और खुद को लोगों के सामने छोटा दिखाकर पुलिस की छवि को बदनाम किया है। उनके खिलाफ जिन सारे सबूत को पुलिस को भेज दिये गये हैं। कानून के प्रावधान के हिसाब से जो भी सजा होगी वो अवश्य दी जायेगी और जल्द ही दी जायेगी।'
एसपी रामचंद्र गुरु आगे कहते हैं, 'प्रदीप चौहान ने एक कैफे चलाने वाले युवक के साथ जो ज्यादती और मारपीट, गाली-गलौच की, उससे उसकी व्यक्तित्व का पता चल गया था। जो पुलिस एसएचओ वहां के स्थानीय लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करेगा, उसे कतई हक नहीं उस जगह पर रहने का, इसलिए कार्रवाई करते हुए प्रदीप चौहान का उसी दिन तबादला कर दिया गया है।'
विक्रम की मां बसंती जंगपांगी कहती हैं, 'पुलिस ने मेरे बेटे को इतना ज्यादा पीटा गया कि 8—9 दिन बीत जाने के बावजूद वह न बोल पा रहा है और न ढंग से बैठ पा रहा है। यहां के स्थानीय अस्पताल में इलाज नहीं मिला तो उसे पहले पिथौरागढ़ रेफर किया गया और उसके बाद वहाँ से हल्द्वानी रेफर कर दिया गया।'
पुलिसिया लिंचिंग के शिकार हुए विक्रम की मां कहती हैं कोई भी नहीं सुन रहा हमारी
घटनाक्रम के बारे में बताते हुए बसंती कहती हैं, '14 अक्टूबर की सुबह पुलिस वाले मेरे बेटे के कैफे में आये, जिसमें पुलिस एसएचओ चौहान भी शामिल था। उसने बैठने के लिए कुर्सी मांगी। पहले से ही कैफे में ग्राहक थे तो कोई कुर्सी खाली नहीं थी तो मेरे बेटे ने पुलिस एसएचओ को बाहर बने बेंच पर बैठने को कहा। जब चौहान को कुर्सी नहीं मिली तो 'देख लेंगे तुझे' कहते हुए चला गया।'
बसंती जंगपांगी कहती हैं, 'उसी दिन 14 अक्टूबर की शाम को जब मेरा बेटा विक्रम घर को निकलने वाला था, तभी पुलिस की एक गाड़ी आयी। सामने वाले ढाबे वाले से बोलने लगे, 'ऐ मनमोहन तुने फोन किया था।' विक्रम ताला लगा रहा था कि तभी पुलिस वाले आये और बिना कुछ पूछे उसे पीटना शुरू कर दिया। फिर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करने लगे, 'ऐ भोटिया साले तूने कुर्सी नहीं दी...' उसे अभद्र गालियां देने लगे। उसकी पीठ—कमर में इतना मारा कि वह वहीं पछाड़ खाकर वहीं गिर गया। नृशंस तरीके से मेरे बेटे को पीटने के बाद पुलिस उसे वहीं उसी हाल में छोड़कर चली गयी। जब उसे होश आया तो थाने गया रिपोर्ट लिखवाने, मगर पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया।'
बसंती कहते हुए फफक पड़ती हैं, कहती हैं, 'रिपोर्ट लिखवाना तो दूर पुलिस द्वारा थाने में फिर से उसकी पिटाई की गयी। बैटरी से उसके सर पर माया गया। आंख में भी बुरी तरह माया। शिकायत दर्ज कराने गये मेरे बेटे का उलटा ये कहकर चालान काट दिया कि उसने शराब पी है। उसकी झूठी रिपोर्ट बनवायी, वह पूछता रहा मेरी गलती क्या है और पुलिस उसे निर्दयता से मारती रही।
बसंती अपने बेटे और परिवार के लिए सुरक्षा की गुहार सरकार से लगा रही हैं। कहतीं हैं, मुझे इस पुलिस अधिकारी को ट्रांसफर नहीं, बर्खास्तगी चाहिए। अनूसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1) में जातिसूचक शब्द प्रयोग करने पर तुरन्त गिरफ्तारी का प्रावधान है।
इस मामले में भाकपा माले से जुड़े सुरेन्द्र सिंह बृजलाल कहते हैं, 'पुलिस प्रशासन पर सुरक्षा बलों का बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है। ये अपनी वर्दी और घमंड से आम जनता का शोषण कर रहे हैं। अपनी उच्चवर्गीय जाति मानसिकता के चलते जानवरों की तरह युवा को बेरहमी से पीटा गया है। मुनस्यारी थाना सबसे सीमान्त और शान्त है, पुलिस और प्रशासन ने इसे भी शराब पीकर नहीं छोड़ा। यहाँ के युवाओं को पीटा जा रहा है और अपनी वर्दी के दम पर विक्रम जैसे युवाओं पर मुकदमा दर्ज करने के लिए शराब पीने जैसा झूठा आरोप मढ़ दिया जाता है। झूठे मुकदमे लगाकर युवाओं तथाकथित मित्र पुलिस फंसा रही है।'
पुलिस एसएचओ द्वारा विक्रम के साथ की गयी इस ज्यादती पर पिथौरागढ़ के डीएसपी विमल कुमार आचार्य कहते हैं, इस मामले में जांच की प्रकिया चल रही है। जैसे ही जांच पूरी हो जायेगी कार्यवाही की जायेगी, जांच में विक्रम को आरोपी पाया गया है, और हमारा विभाग उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगा।'
मुनस्यारी में सैकड़ों लोगों विक्रम जंगपांगी वाली घटना के खिलाफ शिशु मन्दिर से थाने तक जुलूस निकालकर पुलिस के विरोध में इस तरह की नारेबाजी
आज 22 अक्टूबर को मुनस्यारी में सैकड़ों लोगों ने इस घटना के खिलाफ शिशु मन्दिर से थाने तक जुलूस निकालकर पुलिस के विरोध में नारे लगाये और जगत मर्तोलिया के नेतृत्व में व्यापार मण्डल और विभिन्न संगठनों ने पूरे बाज़ार को बन्द कराया गया। थाने के बाहर बने बैरिकेट से पुलिस को जनदबाव के कारण खोलना पड़ा। इस मामले को लेकर थाने के बाहर स्थानीय विधायक हरीश धामी सहित अनेक लोगों ने धरना दिया। धरने के बाद पुलिस के सीओ और एसडीएम के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों के डेलिगेशन की बातचीत हुई। विधायक समेत सभी लोगों ने पुलिस एसएचओ प्रदीप चौहान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने और उसके साथ विक्रम को पीटने में शामिल रहे सभी पुलिसकर्मियो पर कार्यवाही की मांग की।