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विमर्श

चाहता हूं कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्यारों तक पहुंचे यह पत्र : रवीश कुमार

Prema Negi
7 Dec 2018 4:27 AM GMT
चाहता हूं कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्यारों तक पहुंचे यह पत्र : रवीश कुमार
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हिन्दू मुस्लिम नफ़रत की राजनीति ने उनका सबकुछ लूट लिया है। मैं अक्सर अपने भाषणों में कहता हूं। एक पहलू ख़ान की हत्या के लिए हिन्दू घरों में पचास हत्यारे पैदा किए जा रहे हैं...

वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने बुलंदशहर में कथित गौहत्या के बाद हुई हिंसा में कत्ल कर दिए गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के नाम लिखा है यह पत्र

सुबोध कुमार सिंह जी,

मैं आपको एक पत्र लिख रहा हूं। मुझे मालूम है कि यह पत्र आप तक कभी नहीं पहुंचे सकेगा। लेकिन मैं चाहता हूं कि आपकी हत्या करने वाली भीड़ में शामिल लड़कों तक पहुंच जाए। उनमें से किसी एक लड़के के पास भी यह पत्र पहुंच गया तो समझूंगा कि यह पत्र आप तक पहुंच गया। जो आपके हत्यारे हैं, उन तक आपके नाम लिखा पत्र क्यों पहुंचना चाहिए? इसलिए कि उन लड़कों को सुबोध कुमार सिंह के जैसा पिता नहीं मिला। अगर आपके जैसा पिता मिला होता तो वे लड़के अभिषेक सिंह की तरह होते। वे नफ़रत को उकसाने वाली भावनाओं के तैश में आकर हत्या करने नहीं जाते। इसलिए आपके नाम पत्र लिख रहा हूं।

इस वक्त नयाबास और चिंगरावठी गांव के पिता असहाय और अकेला महसूस कर रहे होंगे। कोई पिता नहीं चाहता है कि उसके बेटे का नाम हत्या के आरोप में आए। रातोंरात हत्या के आरोपी बन चुके अपने बच्चों को लेकर उन्हें कैसे-कैसे सपने आते होंगे। मैं यह सोच कर कांप जा रहा हूं। हिन्दू मुस्लिम नफ़रत की राजनीति ने उनका सबकुछ लूट लिया है। मैं अक्सर अपने भाषणों में कहता हूं।

एक पहलू ख़ान की हत्या के लिए हिन्दू घरों में पचास हत्यारे पैदा किए जा रहे हैं। इसलिए पहलू ख़ान की हत्या से सहानुभूति नहीं है तो भी आप सहानुभूति रखें क्योंकि यह पचास हिन्दू बेटों के हत्यारा बनने से बचाने के लिए बहुत ज़रूरी है। अख़लाक की हत्या में शामिल भीड़ भले ही कोर्ट से बच जाएगी मगर कभी भी अपने गांव में पुलिस को आते देखेगी तो उनमें शामिल लोगों का दिल एक बार ज़रूर धड़केगा कि कहीं किसी ने बता तो नहीं दिया।

नयाबांस और चिंगरागाठी के नौजवान और उनके माता-पिता इस अपराध-बोध को नहीं संभाल पाएंगे। उन्हें तो अब हर ईंट पर अपने बेटों की उंगलियों के निशान दिखती होगी, लगता होगा कि कहीं इस ईंट के सहारे पुलिस उनके बेटे तक न पहुंच जाए। रिश्तेदारों को फोन करते होंगे कि कुछ दिन के लिए बेटे को रख लो। वकीलों से गिड़गिड़ाते होंगे। पंडितों को दान देते होंगे कि कोई मंत्र पढ़कर बचा लो। उनकी दुनिया बर्बाद हो गई है। अगर राजनीति उन्हें बचा भी लेगी तो उसकी कीमत वसूलेगी। उनसे और हत्याएं करवाएगी। इन गावों के लड़के सांप्रदायिक झोंके में आकर लंबे समय के लिए मुश्किलों में फंस गए हैं। इसलिए आपके नाम पत्र लिख रहा हूं ताकि ये पढ़ सकें।

अभिषेक से बात करते हुए मुझे साफ-साफ दिख रहा था कि वो आपसे कितना प्यार करता है। इतना कि आपको खो देने के बाद भी आपकी दी हुई तालीम को सीने से लगाए हुए हैं। मैं आपसे नहीं मिला लेकिन अब आपसे मिल रहा हूं। अभिषेक की बातों के ज़रिए मैं ही नहीं, लाखों लोग आपको देख रहे हैं। उस अच्छे पुलिस अफसर की तरह जो दिनभर सख़्त दिखने की नौकरी के बाद घर आता है तो अपने बच्चों के लिए टॉफियां लाता है। खिलौने लाता है। वर्दी उतारकर अपने बच्चों को सीने से लगा लेता है। उनके साथ खेलता है। बातें करता है। अच्छी बातें सिखाता है। उन्हें नागरिक बनना सीखा रहा है।

'मेरे पिता का एक ही सपना था, आप कुछ बनें या न बनें एक अच्छा नागरिक ज़रूर बनें।' यह आपके बेटे अभिषेक ने कहा है। सुनने वालों को यकीन नहीं हुआ कि अपने प्यारे पिता को खोकर भी एक बेटा इतनी तार्किक बात कह रहा है। ऐसा लगता है कि आख़िरी बार के लिए आप उस भीड़ से यही कहने गए थे, जिसने आपकी बात नहीं सुनी। वो बात आपके सीने में अटकी रही और अभिषेक के ज़रिए बाहर आ गई।

भिषेक ने कहा कि "मॉब लिंचिंग की संस्कृति से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। कहीं ऐसा दिन न आ जाए कि हम भारत में एक दूसरे को मार रहे हैं। कहां पाकिस्तान, कहां चीन कहां कोई और, किसी की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी कुछ करने के लिए। आज मेरे पिताजी की मौत हुई है, कल पता चला कोई आईजी (इंस्पेक्टर जनरल) को ये लोग मार दिया फिर किसी मंत्री को मार दिया। क्या मॉब लिंचिंग कल्चर ऐसे चलना चाहिए?"

सुबोध कुमार सिंह जी, आप जिस पुलिस विभाग के हैं, उसके बारे में आप भी जानते ही होंगे। उस पुलिस के बड़े अफ़सर की बुज़दिली नज़र आ रही थी, जब वे किसी संगठन का नाम लेने से बच रहे थे। उनकी वर्दी किसी कमज़ोर को फंसा देने या दो लाठी मार कर कुछ भी उगलवा लेने के ही काम आती रही है। ऐसी पुलिस के पास सिर्फ वर्दी ही बची होती है। ईमान और ग़ैरत नहीं होती। जो धौंस होती है वो पुलिस की अपनी नहीं होती, उनके आका की दी हुई होती है। आपकी हत्या के तीन दिन हो गए और वो पुलिस 27 नामज़द आरोपियों में से मात्र तीन को ही पकड़ पाई है। यूपी पुलिस को अपने थानों के बाहर एक नोटिस टांग देना चाहिए। वर्दी से तो हम पुलिस हैं, ईमान से हम पुलिस नहीं हैं।

हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था ने इस पुलिस की रचना की है। वह कहां निर्दोष है। उसने पुलिस की हर ख़राबी को स्वीकार किया है। उसमें वह शामिल रही है। अच्छे अफ़सरों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अपने विभाग में विस्थापित की तरह जीते हैं। इस पुलिस व्यवस्था में रहते हुए आप परिवार में बिल्कुल अलग दिखते हैं। अब मैं समझ रहा हूं कि उसी पुलिस के कुछ लोग घरों में लौट कर सुबोध कुमार सिंह की तरह भी होते हैं।

फिर भी मुझे आपकी पुलिस से कोई उम्मीद नहीं है। आपके अफ़सरों से कोई उम्मीद नहीं है। अफसरों का ईमान भले न बचा रहे, ईश्वर उनकी शान बचाए रखे। वर्ना उनके पास जीने के लिए कोई मकसद नहीं होगा। आपके साथी दारोगा जल्दी भूल जाएंगे। कोई बहाना ढूंढ कर तीर्थ यात्रा पर निकल जाएंगे ताकि उनका सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहे। ड्यूटी पर भी रहेंगे तो वे लोग आपके हत्यारों को पकड़ना छोड़ उस प्रेस रिलीज़ के अमल में लग गए होंगे जिसमें लिखा था कि गोकशी में शामिल लोगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाए। मुख्यमंत्री के यहां से जारी बयान में यह तो लिखा नहीं था कि सुबोध कुमार सिंह के हत्यारों को 24 घंटों में पकड़ कर हाज़िर किया जाए। वे भी समझा लेंगे कि ये तो होता ही है पुलिस की नौकरी में।

जाने दीजिए। आपका विभाग अपनी सोच लेगा। मगर हम आपके बारे में सोच रहे हैं। अफसोस कि हम एक अच्छे पिता को उसकी हत्या के बाद जान सके हैं। आप भारत के पिताओं में अपवाद हैं। भारत के ज़्यादातर पिता विचारों की जड़ताओं और संकीर्णताओं के पोषक हैं। वे सिर्फ अपने नियंत्रण में रहने वाला बेटा बनाते हैं। आप अभिषेक को नागरिक बनाना चाहते थे। वह नागरिक ही बना है। अपने प्यारे पिता को खोकर भी वह संविधान के दायरे में बात कर रहा है। पुलिस की नौकरी ने जितना सम्मान नहीं दिया होगा उससे कहीं ज़्यादा अभिषेक ने आपका मान बढ़ाया है। अभिषेक की बातों ने आपको घर-घर में ज़िंदा कर दिया है।

मैं दुआ करता हूं कि अभिषेक कानून की पढ़ाई पूरी करे। अपने संघर्षों से वकालत की दुनिया में ऊंचा मकाम हासिल करे। तमाम तरह की संकीर्णताओं और जड़ताओं से बचा रहे। जिस तरह का संतुलित और तार्कित नौजवान है, मैं चाहूंगा कि एक दिन वह जज भी बने। आपने भारत को एक अच्छा नागरिक दिया है। सुबोध कुमार सिंह आपको मैं सलाम करता हूं।

(रवीश कुमार का यह पत्र पहले एनडीटीवी में प्रकाशित)

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