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प्रेस रिलीज

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्रॉफ्ट के कई प्रावधान हैं बेहद चिंताजनक

Prema Negi
31 July 2019 6:23 PM IST
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्रॉफ्ट के कई प्रावधान हैं बेहद चिंताजनक
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्रॉफ्ट में कहा गया है कि लर्निंग के सुधार के लिए पीआर टीचर्स और वालंटियर्स को लाया जाएगा, लेकिन प्रशिक्षित और योग्य टीचरों के बिना कुछ नहीं हो सकता...

दिल्ली। 30 जुलाई 2019 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 (ड्रॉफ्ट) विषय पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में ‘राइट टू एजुकेशन फोरम’ की प्रेस कान्प्रेंस हुई। प्रेस काफ्रेंस में अम्बरीष राय आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक, प्रोफेसर मुचकुन्द दुबे अध्यक्ष, कौंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट, शत्रुघ्न प्रसाद सिंह पूर्व सांसद एवं महासचिव,बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ व अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ, रामपाल सिंह अध्यक्ष, आल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन और सुमित्रा मिश्रा अलायन्स फॉर राइट टू ईसीडी मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल रहे।

प्रेस वार्ता की शुरुआत करते हुए आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने कहा, आरटीई फोरम नयी शिक्षा नीति के कुछ प्रावधानों का स्वागत करता है, जैसे कि प्री प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन को शिक्षा अधिकार कानून के दायरे में लाना, अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन को शिक्षा अधिकार कानून का हिस्सा बनाना आदि, लेकिन इस दस्तावेज़ के कई प्रावधान बेहद चिंताजनक हैं।

अम्बरीष राय ने कहा कि शिक्षा मौलिक अधिकार है, इस मौलिक अधिकार के लिए शिक्षा का कानून बना। 2015 से नयी शिक्षा नीति की बात हो रही है, लेकिन शिक्षा अधिकार कानून शिक्षा नीति से बड़ा है। 10 साल हो गए हैं और शिक्षा अधिकार कानून पूरी तरह से ज़मीन पर लागू नहीं हो पाया है। देश के सिर्फ 12% स्कूल शिक्षा के अधिकार के कानून का पालन करते हैं. कानून के लागू न होने का सबसे बाद कारन यह सरकार शिक्षा में पैसे नहीं लगाती। हम धीरे धीरे शिक्षा के बाज़ारीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। इस नीति में शिक्षा के लिए जितने भी ढाँचो का परिचय दिया गया जय वे सब केन्द्रीयकरण की ओर इशारा कर रहे हैं।”

कौंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के अध्यक्ष प्रोफेसर मुचकुन्द दुबे ने कहा – “3-6 साल तक के बच्चों की शिक्षा को और सेकेंडरी एजुकेशन को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाना नीति के सकारात्मक प्रावधान हैं, लेकिन नीति में कई खामियां भी हैं। लेकिन 3-6 साल तक के बच्चों की शिक्षा आर टी ई कानून में 2030 तक लाये जाने का प्रावधान है जो कि बहुत लम्बा समय है।

10+2 सिस्टम के बजाए 5+3+3+4 सिस्टम को लागू करने की बात है। अब तक 10+2 सिस्टम हे लागू नहीं हो पाया है तो 5+3+3+4 सिस्टम कैसे लागू होगा। दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि लर्निंग के सुधार के लिए पीआर टीचर्स और वालंटियर्स को लाया जाएगा, लेकिन प्रशिक्षित और योग्य टीचरों के बिना कुछ नहीं हो सकता।”

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ व अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ के महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा, दस्तावेज़ में एक महत्वपूर्ण बात जो कही गयी है वह यह है कि शिक्षकों को गैर शैक्षिक कार्यों में नहीं लगाया जाएगा। यह बात सराहनीय है। हमारी मांग यह है की तेकहरस एजुकेशन कमीशन बनाया जाए और शिक्षक वेतन आयोग की स्थापना हो। हम राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का विरोध करते हैं जो की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के खिलाफ है और केन्द्रीयकरण की ओर प्रयास है. शिक्षा नीति की खामियों के खिलाफ राष्ट्रीय स्टार पर आंदोलन करेंगे।

आल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन के अध्यक्ष रामपाल सिंह ने कहा कि हम इस प्रावधान का स्वागत करते हैं कि नो डिटेंशन पॉलिसी पर जो रोक लगायी गयी थी उस पर पुनर्विचार होगा। लेकिन इस शिक्षा नीति में प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने की बात है जो की देश के लिए और देश के गरीब बच्चों के लिए हानिकारक है। नीति में आर टी ई कानून को डायलूट करने की बात की गयी है जिसका हम विरोध करते हैं। साथ ही हम शिकस्त शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया का विरोध करते हैं। पालिसी में कॉमन स्कूल सिस्टम की बात नहीं की गयी है। हम इसकी मांग करते हैं। पैरा टीचर्स को हटाने की बात की गयी है, तो जो पैरा टीचर्स पहले से नियुक्त हैं उनका क्या होगा? और नए वालंटियर्स को लाने की बात की गयी है तो क्या ये नए तरीके के पारा टीचर्स बनाने की बात है?

अलायन्स फॉर राइट टू ई सी डी सुमित्रा मिश्रा ने कहा, “3-6 साल तक के बच्चों को ई में लाने की बात है जिसका हम स्वागत करते हैं लेकिन लर्निंग जन्म से शुरू हो जाती है तो हमें 0-3 साल तक की उम्र के बच्चों के बारे में भी सोचने की ज़रूरत है। 3-6 साल तक के बच्चों की पढाई के लिए पालिसी में किसी भी प्रकार के करिकुलम, पेडागोगी या फ्रेमवर्क का ज़िक्र नहीं है। इसका विवरण पालिसी को देना होगा। प्री प्राइमरी एजुकेशन एक प्रशिक्षित शिक्षक द्वारा दी जानी चाहिए और स्कूलों में प्रे प्राइमरी सेक्शन होना चाहिए। फॉउण्डेशनल लर्निंग के लिए नॉर्म्स और गाइडलाइन्स बनाने की ज़रूरत है उसके बाद किसी भी प्रकार के रेगुलेशन की बात होनी चाहिए।

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