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बड़ी खबर: CAA के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, भारत ने जताया ऐतराज

Ragib Asim
3 March 2020 8:21 AM GMT
बड़ी खबर: CAA के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, भारत ने जताया ऐतराज
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जनज्वार। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के उच्चायुक्त ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भारत के सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर की है। वहीं विदेश मंत्रालय का कहना है कि यह हमारा 'आंतरिक मामला' है।

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि हम दृढ़ता से मानते हैं कि किसी भी विदेशी पार्टी के पास भारत की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों पर कोई नियंत्रण नहीं है। पिछले साल दिसंबर में संसद द्वारा अधिनियम पारित किए जाने के तुरंत बाद UNHRC ने एक बयान जारी किया था और कहा था कि इस कानून की प्रकृति मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण है।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम स्पष्ट हैं कि सीएए संवैधानिक रूप से मान्य है और हमारे संवैधानिक मूल्यों की सभी आवश्यकताओं का अनुपालन करता है। भारत के विभाजन की त्रासदी से उत्पन्न यह मानवाधिकारों के मुद्दों के संबंध में हमारी लंबे समय से चली आ रही राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

मंत्रालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जो कानून के शासन द्वारा शासित है। हम सभी को अपनी स्वतंत्र न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। हमें विश्वास है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हमारी ध्वनि और कानूनी रूप से स्थायी स्थिति को स्पष्ट किया जाएगा।

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि हम चिंतित हैं कि भारत का नया नागरिकता संशोधन अधिनियम मौलिक रुप से प्रकृति में भेदभावपूर्ण है। सताए गए समूहों की रक्षा करने का लक्ष्य स्वागत योग्य है लेकिन नया कानून मुस्लिमों को संरक्षण नहीं देता है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने कहा कि संशोधित कानून धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता में तेजी लाने का प्रयास करता है, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेष रूप से केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने की बात करता है। जो 2014 से पहले से रह रहे हैं। लेकिन यह मुसलमानों के लिए समान सुरक्षा का विस्तार नहीं करता है।

योग ने कहा कि इस स्थिति की परवाह किए बिना सभी शरणार्थी अपने मानवाधिकारों के सम्मान संरक्षण के हकदार हैं। महज 12 महीने पहले भारत ने सुरक्षित, नियमित और क्रमबद्ध प्रवासन के लिए उस ग्लोबल कॉम्पैक्ट का समर्थन किया था जो राज्यों को भेद्यता की स्थितियों में प्रवासियों की जरूरतों का जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध करता है और मनमाने ढंग से हिरासत और सामूहिक निष्कासन से बचाता है।

राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने कहा कि हम समझते हैं कि नए कानून की भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा की जाएगी और आशा है कि यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों के साथ कानून की अनुकूलता पर ध्यानपूर्वक विचार करेगा।

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योग ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान असम और त्रिपुरा में दो लगों की मौत हुई है, पुलिस अधिकारियों की मौत हुई है। हम उन रिपोर्टों पर भी चिंतिंत हैं। हम शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार का सम्मान करने के लिए और विरोध प्रदर्शनों के लिए बल के उपयोग पर अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और मानकों का पालन करने के लिए अधिकारियों को बुलाते हैं। सभी पक्षों को हिंसा का सहारा लेने से बचना चाहिए।

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