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राजनीति

यूपी के मिर्जापुर में राजस्व और प्रकृति दोनों को सेंध लगा रहे खनन माफिया, संबंधित अधिकारी कर रहे सुनवाई के नाम पर खानापूर्ति

Prema Negi
23 Nov 2019 6:33 PM IST
यूपी के मिर्जापुर में राजस्व और प्रकृति दोनों को सेंध लगा रहे खनन माफिया, संबंधित अधिकारी कर रहे सुनवाई के नाम पर खानापूर्ति
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चुनार तहसील सभागार में हुई मीटिंग में खाली कुर्सियां भी बता रही थीं कि सबकुछ पहले से था तय, लोगों को बुलाया गया था सिर्फ खानापूर्ति के लिए...

जनज्वार, मिर्जापुर। मिर्ज़ापुर में इन दिनों अवैध खनन जोरों पर चल रहा है, इसी को लेकर चुनार खनन पट्टा प्रस्ताव की 21 सुनवाई पर चर्चा रखी गयी थी। सुनवाई के दौरान आपत्तिकर्ताओं ने इसे मात्र खानापूर्ति बताया है। आपत्तिकर्ताओं ने बताया कि मीटिंग की जानकारी किसी भी ग्रामीण को नहीं थी, कुछ लोगों को खानापूर्ति के लिए खननकर्ताओं द्वारा मीटिंग में लाकर बैठा दिया गया था, जिन्हें जानकारी भी नहीं थी कि आखिर चर्चा किस बारे होनी है। अवैध खनन करते हुए मानकों के विपरीत गढ्ढे बना दिये गये हैं।

ही नहीं मीटिंग में आये लोग खनन प्रभावित क्षेत्र से ताल्लुक भी नहीं रखते थे। बैठक में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने को लेकर चिंता जताई जा रही थी, किन्तु आपत्तिकर्ताओं का कहीं अता-पता ही नहीं था। मीटिंग में मौजूद लोगों ने बताया कि कम समय में छह पट्टाधारकों की लोक सुनवाई और पर्यावरणविद की बातों की वीडियो रिकॉर्डिंग न कराने से मौजूदा अधिकारियों की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है। वहीं चुनार तहसील सभागार में हुई मीटिंग में खाली कुर्सियां भी बता रही थीं कि सबकुछ पहले से तय था। हम लोगों को तो सिर्फ खानापूर्ति के लिए बुलाया गया था।

र्यावरण प्रेमी लोक सुनवाई की कार्रवाई को स्थगित करने की मांग करते हुए बाहर निकले। लोक सुनवाई की अध्यक्षता अपर जिलाधिकारी मिर्ज़ापुर यूपीसिंह कर रहे थे। साथ में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सोनभद्र के सहायक वैज्ञानिक एसी शुक्ला भी वहां मौजूद रहे।

स मसले पर सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद शुक्ला कहते हैं, मिर्ज़ापुर में पिछले कुछ सालों से धड़ाधड़ खुल रहे क्रेशर और कटर प्लांट प्रकृति और विभाग के नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से बिना एनओसी के खनन कर रहे हैं, जिसके चलते प्लिंथ लेबल से सैकड़ों फिट नीचे ब्लास्टिंग करके गढ्ढा बना दिया गया है।

मीटिंग में उपस्थित ग्रामीण और समाजसेवियों ने आरोप लगाया कि सत्ता बदलते ही ये खनन माफिया मौजूदा पार्टी का झंडा अपनी लग्जरी वाहनों पर लगाकर पार्टी प्रतिनिधियों के हिमायती बन जाते हैं और इनके संरक्षण का हवाला देकर मानक के विपरीत अवैध खनन करके राजस्व और प्रकृति दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसका असर स्थानीय ग्रामीणों पर पड़ रहा है।

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