सवाल लाजमी है कि इतनी हवाई घोषणाओं और ‘मार्मिक अपीलों’ के बाद जीतेंगे कौन से प्रत्याशी और इनके क्रियान्वयन के लिए कौन से जादुई तीर अपने खामोश तरकश से निकालेंगे...
संजय रावत की रिपोर्ट
जनज्वार, हल्द्वानी। हल्द्वानी शहर की मूल जरूरतों को अमलीजामा पहनाने का दावा करने वाले प्रत्याशियों का दृष्टिकोण कितना उन्नत है यह तो उनके वादे, घोषणाओं और प्रचार से पता चल रहा है। घोषणापत्रों और अपील पर नजर दौड़ाएं तो लगता है कि राष्ट्रीय स्तर की समस्याएं जो केंद्रीय नीतियों से तय होती हैं उनका नगर स्तर पर ही सुलझाकर कार्यांवित कर लेंगे।
मेयर पद के लिए भागदौड़, तोड़फोड़, हटा बचा, खरीद फरोख्त, प्यार-दुत्कार, लपक- झपट पर दिनरात एक करने वाले प्रत्याशियों की मेहनत देख लग रहा है कि हल्द्वानी शहर अब यूरोप जैसा विकसित हो जाने वाला है। जहां सारी सुविधा समपन्नता के बाद कोई चुनौती होगी, तो वो होगी सिर्फ प्राकृतिक आपदा के खिलाफ जंग।
प्रत्याशियों में इंटरनेट यात्रा, विदेशी सफर, उच्च शिक्षा आदि का हैंगओवर इतना ज्यादा है कि भाषणों, विज्ञापन माध्यमों से गुमराह करने की मंशा साफ नजर आ रही है। जिन वादों पर चुनाव लड़ा जा रहा है उनका धरातल पर क्रियान्यन कैसे होगा, इसका जवाब किसी प्रत्याशी के पास नहीं है। जबकि जनता इनकी हर अपील की हर लाइन पर सवाल लिये बैठी है, कैसे!
ये चुनावी मौसम एक हसीन माहौल पैदा किये हुए हैं, जहां एक ओर जनता दबी जुबान ढेरों सवाल लिये बैठी है और दूसरी तरफ प्रत्याशियों के लंपट प्रचारक उन्हें ईमानदार, कर्मठ, मिलनसार, योग्य और जाने किन-किन अल्फाजों से नवाज भ्रम पैदा करने में मशगूल हैं। हों भी क्यों न, चुनाव के बाद बतौर रिवाज अपने जरूरी-गैरजरूरी, जायज-नाजायज कार्यों की फेहरिस्त उन्होंने अपने जीते प्रत्याशी को जो पकड़ानी होती है।
अब ऐसे माहौल में सवाल लाजमी है कि इतनी हवाई घोषणाओं और ‘मार्मिक अपीलों’ के बाद जीतेंगे कौन से प्रत्याशी और इनके क्रियान्वयन के लिए कौन से जादुई तीर अपने खामोश तरकश से निकालेंगे। क्योंकि राज्य सरकारें तो बजट की कमी के चलते अपने मुलाजिमों को तनख्वाह नहीं दे पा रही है और निगम/पालिकाओं के बजट का किसी को कुछ पता नहीं कि कहां से आता है और कब खत्म हो जाता है।
चंदे और आय के संशाधन गोद देने से तो बजट जुटने से रहा। बची कसर मेयर के हाथ मरोड़ने की परम्परा शुरू कर कांग्रेस ने कोढ़ में खाज जैसा काम शुरू किया है, जिसके परिणाम स्वरूप किसी भी नगर निगम का भला नहीं होने वाला।
कुमाऊं के हल्द्वानी में मेयर के हाथ मरोड़ने वाली परम्परा के वाहक अब प्रदेशभर में विराजमान भाजपा के नीति नियंता भी बन चुके हैं। अब यह परिस्थितियों पर निर्भर होगा कि कौन मेयर बनेगा और क्या कर पाएगा। यानी राज्यभर में जहां कांग्रेस का मेयर और भाजपा का विधायक होगा, वहां कांग्रेसी मेयर के हाथ मरोड़कर काम लायक नहीं छोड़ा जाएगा और जहां भाजपा का मेयर और विधायक कांग्रेसी हुआ तो भाजपा मेयर के हाथ मरोड़ दिये जाएंगे। यानी दोनों पार्टियों में जो भी मेयर होंगे उनकी जीत का कोई मतलब नहीं होगा।
यह हार दरअसल हर उस नगर की होगी, जहां उपरोक्त परिस्थितियां मौजूद होंगी। हां, इतना जरूर होगा कि हर जीते हुए मेयर का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।