शिमला में भीषण जल संकट, लोगों ने किया सीएम हाउस के बाहर धरना-प्रदर्शन
एक पत्रकार ने सोशल मीडिया पर कर दिया था 2 महीने पहले ही संभावित जल संकट से आगाह, अब पानी की किल्लतों के बीच शहरवासी कर रहे पर्यटकों से अपील न करें शिमला का रुख...
शिमला। गर्मी के मौसम में अकसर शिमला जल संकट से जूझता है, मगर इस बार और ज्यादा अति हो गई है। भीषण जल संकट की मार झेल रहे शहरवासियों ने विरोधस्वरूप मुख्यमंत्री आवास का घेराव कर धरना प्रदर्शन किया और पर्यटकों से अपील की कि वे शिमला का रुख न करें।
शिमला नगर निगम क्षेत्र की आबादी लगभग 2 लाख है, मगर गर्मियों में पर्यटन का प्रमुख मौसम होने के चलते में 90 हजार से लेकर 1 लाख तक आबादी और ज्यादा बढ़ जाती है। हिमाचल सरकार को पर्यटकों के आने से आमदनी तो होती है, मगर बढ़े हुए पर्यटकों के लिए पर्याप्त जल की आपूर्ति कैसे हो, इसकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता, नतीजतन शिमलावासियों को जल संकट का सामना करना पड़ता है।
बजाय समस्या निपटाने के राजनीतिक दलों ने एक दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर दिया है। कांग्रेस सत्तासीन भाजपा को दोषी ठहरा रही है तो भाजपा का कहना है कि पिछले 15 सालों में कांग्रेस क्या कर रही थी।
सोशल मीडिया पर लोग इसके लिए वर्तमान भाजपा सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। कह रहे हैं कि राज्य में बीजेपी को चुनने का फल भुगत रहे हैं शिमलावासी, और चुनो बीजेपी सरकार।
भयंकर जल संकट को देखते हुए होटलों ने पर्यटकों को नई बुकिंग देना बंद कर दिया है, जिन लोगों ने पहले से बुकिंग ली हुई है उसे कैंसिल कर पैसे लौटाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। पर्यटन और इससे जुड़े कारोबारों को जल संकट ने तबाह कर दिया है, क्योंकि पर्यटकों ने भी शिमला छोड़ दूसरे पर्यटक स्थलों की तरफ रुख कर लिया है।
सोशल मीडिया फेसबुक पर शिमला में रहने वाले हिमाचल आजकल के मैनेजिंग एडिटर कृष्ण भानु ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान 8 मार्च को हमने शिमला में सम्भावित जल संकट से सरकार को आगाह कर दिया था, मगर किसी ने उनकी बात पर कान नहीं दिया।
कृष्ण भानु ने अपनी पोस्ट में लिखा था, क्या वह दिन सन्निकट है जब शिमला में प्रतिव्यक्ति नहाने-धोने-पीने के लिए हर दिन सिर्फ 25 लीटर पानी मुहैया हो पायेगा? केपटाउन में ठीक ऐसा ही हो रहा है। वहां इस 25 लीटर का वितरण भी पुलिस और सेना की मौजूदगी में हो रहा है, ताकि दंगे न भड़कें। फिर कोई मित्र कहेगा कि ज्यादा ही लिख दिया, लेकिन शिमला में खतरे की घण्टी बज चुकी है। बहरों को नहीं सुनाई देती तो क्या करें। कहते हैं कि नक्कारखाने में तूती की आवाज नहीं सुनी जाती। बेशक न सुनी जाए, लेकिन हम कहते रहेंगे।
दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में ठीक यही हालात हैं। शहर प्यास से मर रहा है। पुलिस और सेना की मौजूदगी में 24 घंटे में एक व्यक्ति को सिर्फ 25 लीटर पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। वहां तीन वर्ष से बारिश नहीं हुई है और यहां शिमला में कई सालों से सलीके से बर्फबारी नहीं! लगातार चार वर्षों से, खासकर गर्मियों में शहर में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मचती रही है। फिर भी लोग खामोश हैं और नेता लोग मस्त… क्योंकि किल्लत आम लोगों को पेश आ रही है, नेताओं की टंकियां उनके पेट की तरह सदा भरी रहती हैं।
अतः इस बजट सैशन में यह भी विचार हो कि शिमला क्यों मर रहा है? खुद मर रहा है कि आपकी नीतियां इस शहर को मार रही हैं। वीरभद्र सिंह प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे। शिमला से ताल्लुक रखते हुए भी प्यासे शिमला के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनी। शांता कुमार बने तो उन्हें "पानी वाला मुख्यमंत्री" का खिताब दिया गया। पूरे प्रदेश के लिए पेयजल योजनाएं बनीं, लेकिन शिमला तब भी प्यासा रहा। प्रेम कुमार धूमल सड़कों के मुख्यमंत्री कहलाये गए। अपने दो बार के दस वर्ष के सत्ताकाल में उन्होंने भी शिमला की पुकार नहीं सुनी।
जय राम ठाकुर जी, आप ही इस अभागे शहर की सुन लीजिए। यह प्रदेश की राजधानी है और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी! शिक्षामंत्री सुरेश भारद्वाज जी, आप इस शहर के एमएलए भी हैं। आप ही शहर की पुकार सुन लें। और यदि कोई नहीं सुनता तो विपक्षी दल कांग्रेस और इस दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री से निवेदन है कि आप ही कुछ करिए, वर्ना यह शहर एक दिन सचमुच बिन पानी मर जायेगा और इसकी हत्या का आरोप पक्ष-विपक्ष दोनों के सर जाएगा।'
अब जब शिमलावासी पानी का भयानक संकट झेल रहे हैं तो कृष्ण भानु की की इस पोस्ट का एक एक शब्द सही साबित हो रहा है। जल संकट के कारण पर्यटन पर निर्भर लोग खून के आंसू रोने को मजबूर हैं क्योंकि उनका कारोबार ठप्प हो गया है।
गौरतलब है कि शिमला में फिहलान 45 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) पानी की जरूरत है, जबकि शहर को इन दिनों 20 एमएलडी के लगभग ही पानी नसीब हो रहा है जो जलसंकट का मुख्य कारण है। दूसरा जब अंग्रेजों ने इस शहर को बसाया था तो सिर्फ 25000 लोगों की क्षमता तय की थी, जबकि आज यहां की जनसंख्या सिर्फ 2 लाख पहुंच चुकी है और पर्यटन सीजन मे भी लाखों लोग यहां पहुंचते हैं। ऐसे में इतने सारे लोगों का लोड शहर कैसे सहन कर पाएगा, जबकि शासन—प्रशासन की तरफ से अतिरिक्त व्यवस्थाएं नहीं की जाती हैं।
शहर में हो रहा अंधाधुंध निर्माण, नगर निगम की लचर प्रणाली और पानी की लीकेज भी इस समस्या को और बढ़ा रही है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पानी की इस समस्या पर संज्ञान लेते हुए सभी जजों सहित वीआईपी लोगों के लिए पानी के टैंकरों की सप्लाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। न्यायालय ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल को इस दायरे से बाहर रखा है।
गौरतलब है कि शिमला में जलसंकट के कारण स्थानीय प्रशासन ने अंतरराष्ट्रीय ग्रीष्मोत्सव का आयोजन स्थगित करने का फ़ैसला किया है, जो 1 से 5 जून तक यहां आयोजित होना था।