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संस्कृति

आदिवासियों की सशक्त आवाज रमणिका गुप्ता का निधन

Prema Negi
26 March 2019 12:37 PM GMT
आदिवासियों की सशक्त आवाज रमणिका गुप्ता का निधन
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साहित्य, सियासत और समाज सेवा तीनों ही क्षेत्रों में रमणिका गुप्ता समान रूप से सक्रिय रहती थीं। उनका कर्मक्षेत्र बिहार और झारखंड रहा। रमणिका जी की लेखनी में आदिवासी और दलित महिलाओं, बच्चों की चिंता उभरकर सामने आती है

जनज्वार। साहित्य में आदिवासियों की सशक्त आवाज उठाने वाली रमणिका गुप्ता ​का आज दिल्ली में निधन हो गया है। वह बिहार की पूर्व विधायक एवं विधान परिषद् की पूर्व सदस्य भी रही हैं। कई गैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक कार्यक्रमों में उनकी महत्वपूर्ण सहभागिता रहती थी। उनके निधन की खबर उनके फेसबुक प्रोफाइल से साझा की गई है।

आदिवासी और दलित महिलाओं-बच्चों के लिए उनके द्वारा किया गया काम बहुत महत्वपूर्ण रहा है। बतौर क्रांतिकारी लेखिका जानी जाने वाली रमणिका गुप्ता 'युद्धरत आम आदमी' पत्रिका की संपादक थीं।

उनके निधन के बाद सोशल मीडिया पर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, साहित्यकारों, पत्रकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।

वरिष्ठ साहित्यकार विवेक मिश्र लिखते हैं, 'रमणिका गुप्ता जैसे साहसी, जुझारू और जीवंत लोग कभी नहीं मरते। वे दुर्गम राहों, मील के पत्थरों और मंज़िल से आगे की मंज़िलों पे मशाल बनके हमेशा जलते हैं।'

डॉ. रामभरोसे उनके निधन पर दुख जताते हुए लिखते हैं, 'रमणिका गुप्ता का जाना बहुत ही दुखद खबर है। एक बहुत ही जुझारू, वंचितों की निश्छल हितैषी और कर्मठ साथी का जाना हमारी बहुत समृद्ध साहित्यिक-सामाजिक समृद्धि का लुट जाना है। वंचित, दलित, आदिवासी, स्त्री, पिछड़े विमर्श/साहित्य की अपूरणीय क्षति।'

लक्ष्मी शर्मा कहती हैं, 'रमणिका गुप्ता का जाना एक दबंग लेखनी का नेपथ्य में जाना है।'

वहीं राजकुमार वर्मा कहते हैं, वरिष्ठ लेखिका रमणिका गुप्ता जी का जाना हिंदी जगत के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। विमर्शों स्त्री, दलित और आदिवासी की दुनिया को विस्तार देने में उनका बहुत बड़ा साथ रहा है। विभिन्न भाषाओं के आदिवासी लेखकों को एक साथ जोड़ने में, एक मंच पर लाने में रमणिका जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनका जाना प्रगतिशील समाज के लिये दुखद है।

22 अप्रैल, 1930 को पंजाब के सुनाम हिंदी के कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने साहित्य की हर विधा में लेखन किया। छह काव्य-संग्रह, चार कहानी-संग्रह एवं तैंतीस विभिन्न भाषाओं के साहित्य की प्रतिनिधि रचनाओं के अतिरिक्त ‘आदिवासी: शौर्य एवं विद्रोह’ (झारखंड), ‘आदिवासी: सृजन मिथक एवं अन्य लोककथाएँ’ (झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात और अंडमान-निकोबार) का संकलन-सम्पादन भी किया था। इसके अलावा ख्यात मराठी लेखक शरणकुमार लिंबाले की पुस्तक ‘दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’ का मराठी से हिन्दी अनुवाद भी किया।। उनके उपन्यास ‘मौसी’ का अनुवाद तेलुगु में ‘पिन्नी’ नाम से और पंजाबी में ‘मासी’ नाम से हो चुका है।

साहित्य, सियासत और समाज सेवा तीनों ही क्षेत्रों में रमणिका गुप्ता समान रूप से सक्रिय रहती थीं। उनका कर्मक्षेत्र बिहार और झारखंड रहा। रमणिका जी की लेखनी में आदिवासी और दलित महिलाओं, बच्चों की चिंता उभरकर सामने आती है।

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