Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

UP 2022 विधानसभा चुनाव से पहले योगी और स्वतंत्रदेव को हटाने का रिस्क लेगी भाजपा!

Janjwar Desk
27 May 2021 9:13 PM IST
UP 2022 विधानसभा चुनाव से पहले योगी और स्वतंत्रदेव को हटाने का रिस्क लेगी भाजपा!
x

यूपी में विधानसभा 2022 से पहले शुरू हो गया डैमेज कंट्रोल.योगी और उनके मंत्रीमंडल में हो सकता है बड़ा फेरबदल. photo - janjwar 

यूपी में पिछले डेढ़ साल से अक्सर सीएम बदले जाने की बात होती है, लेकिन यूपी में योगी के कद का लीडर फिलहाल भाजपा के पास नहीं है....

रिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह का विश्लेषण

जनज्वार, लखनऊ। 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सरगर्मियां तेज हो गई हैं। सियासी दल चुनावी तैयारियां शुरू कर चुके हैं। पिछले दिनों यूपी चुनाव को लेकर भाजपा आलाकमान ने उच्चस्तरीय बैठक की खबरें बाहर आईं थी, जिसमें दावा किया गया था कि आरएसएस से दतात्रेय हसबोले भी शामिल हुए थे। इस मीटिंग के बाद मीडिया में योगी सरकार तथा भाजपा में व्यापक फेरबदल को लेकर हवाई अटकलें भी लगनी शुरू हो गईं।

यूपी चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हुई मीटिंग के बाद जो खबरें निकलकर सामने आ रही हैं, वह महज कयासबाजी है। आरएसएस के हायरार्की को नहीं समझने वाले ऐसी खबरों के सूत्रधार बने। संघ में दूसरे नंबर की हायरार्की पर मौजूद दत्तात्रेय होसबोले को अगर भाजपा से जुड़े मामले में कोई निर्देश देना होता तो उसमें संघ में भाजपा प्रभारी डा. कृष्ण गोपाल की मौजूदगी अहम होती। यूपी का मामला होता तो सह संगठन मंत्री सत्या जी की मौजूदगी होती या फिर यूपी प्रभारी राधामोहन सिंह भी शामिल होते, लेकिन मीटिंग में इनलोगों की मौजूदगी ही सामने नहीं आई। संगठन मंत्री बीएल संतोष भी इस बैठक में शामिल नहीं रहे।

पिछले डेढ़ साल से यूपी में नेतृत्व बदले जाने एवं मंत्रिमंडल विस्तार की हवा हवाई अटकलें मीडिया में चल रही हैं। कई बार कैबिनेट विस्तार की तारीखें भी बताई जा चुकी हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा कि दिनेश शर्मा को हटाया जा सकता है, केशव मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर योगी के पेंच कसे जा सकते हैं, लेकिन सियासत की जानकारी रखने वाले सूत्र की माने तो इस तरह की मीडिया अटकलें हवाहवाई हैं।

भाजपा चुनावी साल में इतना बड़ा फेरबदल करने का खतरा मोल नहीं लेगी। गुरुवार को योगी आदित्यनाथ की राज्यपाल से मुलाकात के बाद फिर सामने आया है कि 29 मई को मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है। डा. दिनेश शर्मा को हटाये जाने के कयास भी लगाये जा रहे हैं, लेकिन सियासी जानकारों का मानना है कि चुनाव सिर पर है ऐसे में डा. दिनेश शर्मा को हटाकर भाजपा ब्राह्मण वोटर को नाराज करने का रिस्क नहीं उठायेगी। डा. शर्मा भले ही ब्राह्मणों के सर्वमान्य नेता ना हों, लेकिन इस वर्ग के सांकेतिक प्रतिनिधि तो हैं ही।

यूपी में पिछले डेढ़ साल से अक्सर सीएम बदले जाने की बात होती है, लेकिन यूपी में योगी के कद का लीडर फिलहाल भाजपा के पास नहीं है। केशव मौर्या के चेहरे को पार्टी ने पिछड़ों का बड़ा नेता बनाने का दांव चला था, लेकिन वह केवल मौर्य जाति के नेता बनकर रह गये। भ्रष्टाचार के आरोपों ने केशव मौर्य को और नुकसान पहुंचाया।

जिला पंचायत चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर स्वतंत्र देव सिंह को हटाये जाने की अटकलें जोर पकड़ रही हैं, लेकिन पंचायत चुनाव के रिजल्ट को विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखना नासमझी है। 2016 के पंचायत चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन औसत रहा था, लेकिन सूबे में भाजपा की सरकार बनी। इस बार तो भाजपा ने पांच सौ से ज्यादा सीटें जीती हैं। फिलहाल सपा एक नम्बर पर है, लेकिन इससे पहले 2011 में हुए पंचायत चुनाव में बसपा ने सबको चारों खाने चित कर दिया था। पंचायत चुनाव के बाद 2012 विधानसभा हुए बसपा साफ हो गई, सपा को बहुमत मिला। 2016 के पंचायत चुनाव में सपा ने शानदार जीत हासिल की, लेकिन विधानसभा चुनाव में 50 सीट भी नहीं जीत पायी।

पंचायत चुनाव के रिजल्ट पर पार्टियों के प्रदर्शन का आकलन इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि यह प्रत्याशियों के व्यक्तित्व पर लड़ा जाता है। इसमें किसी पार्टी का सिंबल नहीं होता है। का बहुत ज्यादा कोई स्थिति का आकलन इसलिए भी नहीं होता कि यह व्यक्तिगत छवि पर लड़ा जाता है, वोट पड़ता है। एक तो पार्टी का सिंबल होता नहीं है। इससे भी फर्क पड़ता है।

सूबे में ब्यूरोक्रेसी को लेकर जरूर नाराजगी है। आमजन से लेकर भाजपाई भी नाराज हैं। इस नाराजगी को थामने के लिए संभव है कि पूर्व आईएएस एवं एमएलसी एके शर्मा को किसी ठीकठाक प्रोफाइल में फिट कर दिया जाए, लेकिन कोई बड़ा बदलाव होने नहीं जा है। अगले साल चुनाव है, भाजपा कोई बड़ा रिस्क नहीं लेगी। योगी आदित्यनाथ त्रिवेंद्र सिंह रावत नहीं हैं, उन्होंने अब तक बेहतर ढंग से सरकार चलायी है। योगी के स्वभाव से भाजपा हाईकमान भी परिचित हैं।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को 7-8 या ज्यादा से ज्यादा 9 महीने बचे हैं। विपक्ष का कहीं नामोनिशान नहीं है। मुख्य विपक्षी दल के नेता अखिलेश यादव पूरे कोरोना काल जनता की परेशानी को लेकर सड़क पर नहीं उतरे। यहां तक कि अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों तक का हालचाल जानने आजमगढ़ नहीं गये। उनकी पूरी राजनीति ट्विटर के सहारे चल रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती का हाल भी ऐसा ही है, इस स्थिति में बड़े बदलाव की उम्मीद करना मूर्खता होगी।

यूपी में कोरोना महामारी के दौरान शुरुआती अफरातफरी ने योगी की छवि को धक्का जरूर पहुंचाया है, लेकिन राज्य का लगातार दौरा कर योगी डैमेज कंट्रोल में जुटे हुए हैं।

यूपी में भाजपा के पास योगी के अलावा कोई बड़ा चेहरा नहीं है। पिछला चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था। इस बार मोदी के साथ योगी का कट्टर हिंदुत्व वाला चेहरा भी होगा। मीडिया में कोरोना को लेकर भले ही हो हल्ला मचा हो, गांव देहात में अव्यवस्था को लेकर बहुत नाराजगी नहीं है। गांवों में तमाम मौतें हो रही हैं लेकिन आदमी मानने को तैयार नहीं है कि उसके घर मे कोरोना से मौत हुई है।

जब जांचें ही नहीं करा रहा तो वह कोरोना से मौत मानने को तैयार नहीं हो रहा है। कोई कह दे कि कोरोना से मौत हुई है तो लोग मरने मारने पर उतारू हो जा रहे हैं। गांवों में कोरोना को लेकर जागरूकता उतनी नहीं है। हर जिले का मूड़ अलग-अलग है। बहराइच के मूड के आधार पर आप सोनभद्र का आकलन नहीं कर सकते।

2022 विधानसभा मोदी और योगी के चेहरे पर होगा। मोदी भी कट्टर हिंदुत्व और विकास का चेहरा बनकर उभरे थे, अब मोदी देश चला रहे हैं तो लिबरल हो गए। वहीं योगी भाजपा में हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा बन गए हैं। वह संघ के एजेंडे के अनुकूल है। जाहिर है संघ का झुकाव भी योगी की तरफ है। इस स्थिति में योगी को दरकिनार करने जैसी बातें केवल कयासबाजी है।

Next Story