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राजनीति

असम में भाजपा का साथ छोड़ बीपीएफ कांग्रेस गठबंधन में शामिल, बदल सकता है राजनीतिक समीकरण

Janjwar Desk
2 March 2021 3:01 PM IST
असम में भाजपा का साथ छोड़ बीपीएफ कांग्रेस गठबंधन में शामिल, बदल सकता है राजनीतिक समीकरण
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2006 और 2011 में बीपीएफ असम में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा था, जिसके बाद 2014 के चुनावों के दौरान यह कांग्रेस से अलग हो गया। 2016 के असम चुनावों में बीपीएफ ने चुनाव लड़ते हुए 13 में से 12 सीटें जीतीं और राज्य सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन किया।

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी

असम में तीन मंत्रियों के साथ निवर्तमान राज्य सरकार में भाजपा की सहयोगी एक प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने पिछले हफ्ते कांग्रेस के नेतृत्व वाले 'महागठबंधन' में शामिल होने के लिए भाजपा का साथ छोडने की घोषणा की। इस कदम से कांग्रेस के लिए एक बड़ी बढ़त का अनुमान लगाया जा रहा है क्योंकि कई लोगों का मानना है कि पार्टी बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन में गठबंधन के पक्ष में वोट स्विंग कर सकती है, जो बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) द्वारा शासित है और लगभग 15 विधानसभा सीटों पर इसका जनाधार है।

बोडो असम में सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है और राज्य की कुल आबादी का 5-6 प्रतिशत है। 1967-68 से एक अलग बोडो राज्य की मांग की जा रही है। बीपीएफ की जड़ें बोडोलैंड क्षेत्र में उग्रवाद के लंबे इतिहास में अलग राज्य की मांग के साथ जुड़ी हुई है। 1993, 2003 और जनवरी 2020 में आखिरी बार - केंद्र, राज्य और बोडो संगठनों के बीच अब तक तीन शांति और विकास समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

2003 के समझौते से बीटीसी का गठन हुआ और तब से 2005, 2010 और 2015 में चुनाव हुए। बीटीसी संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त स्वशासी निकाय है। इन परिषद चुनावों में बीपीएफ - जिसे पहले बोडो पीपुल्स प्रोग्रेसिव फ्रंट कहा जाता था और इसके सदस्यों में बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) के आत्मसमर्पित उग्रवादियों का एक बड़ा वर्ग शामिल था, जिन्होंने 2003 के समझौते के बाद हथियार छोड़ दिए थे। बीपीएफ का नेतृत्व प्रभावशाली बोडो नेता और बीएलटी के पूर्व प्रमुख हाग्रामा मोहिलरी कर रहे हैं, जिन्होंने 2003 में आत्मसमर्पण किया था।

2006 और 2011 में बीपीएफ असम में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा था, जिसके बाद 2014 के चुनावों के दौरान यह कांग्रेस से अलग हो गया। 2016 के असम चुनावों में बीपीएफ ने चुनाव लड़ते हुए 13 में से 12 सीटें जीतीं और राज्य सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन किया।

बीपीएफ के महासचिव प्रबीन बोरो ने पिछले हफ्ते बताया, 'हम निश्चित रूप से उन 12 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। इसके अलावा हम देखेंगे कि कहां और कैसे चुनाव लड़ना है।'

2016 में 126 सदस्यीय असम विधानसभा के चुनावों में विजयी गठबंधन में भाजपा (60), बीपीएफ (12 सीटें) और एजीपी (14 सीटें) शामिल थीं। इस साल भाजपा असम गण परिषद (एजीपी) के साथ अपना गठबंधन जारी रखेगी, लेकिन अपने अन्य सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) का साथ छोडकर बोडोलैंड क्षेत्र में यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के साथ उसका गठबंधन हो गया है।

दूसरी ओर कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने तीन वाम दलों और एक क्षेत्रीय पार्टी के साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ महागठबंधन की घोषणा की है। बदरुद्दीन अजमल, सांसद और इत्र कारोबारी, एआईयूडीएफ का नेतृत्व करते हैं। इस पार्टी को राज्य के बंगाली मूल के मुस्लिम समुदाय का समर्थन प्राप्त है।

2019 में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भाजपा को असम में विरोध का सामना करना पड़ा, जिसमें प्रभावशाली संगठनों ने तर्क दिया कि अधिनियम असम के मूल लोगों के हितों के लिए हानिकारक था। दो नए क्षेत्रीय दलों - असम जातीय परिषद (एजेपी) और राइजर दल का जन्म इसी कानून के विरोध में चलाये गए आंदोलन के गर्भ से हुआ है। आंदोलन में कम से कम पांच व्यक्तियों को सुरक्षा बलों द्वारा गोली मार दी गई थी। दोनों पार्टियां भाजपा के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ेंगी।

बीटीसी के लिए चुनाव पिछले साल दिसंबर में हुए थे। बीटीसी में 40 निर्वाचित सीटों में से यूपीपीएल ने 12, भाजपा ने नौ, जीएसपी ने एक, कांग्रेस ने एक और बीपीएफ ने 17 सीटें जीतीं। लेकिन भाजपा ने बीटीसी पर शासन करने के लिए बीपीएफ के साथ गठबंधन नहीं किया, बल्कि यूपीपीएल और जीएसपी के साथ हाथ मिलाया, जिससे राज्य के चुनावों में गठबंधन टूटने के संकेत मिले।

रविवार को भाजपा ने एक बयान में कहा कि पार्टी को बीपीएफ और कांग्रेस-एआईयूडीएफ के बीच एक गुप्त समझ के बारे में बहुत पहले से पता था और आधिकारिक घोषणा ने केवल उनके संदेह की पुष्टि की है।

'जिस तरह कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के साथ जुड़कर खुद को असम विरोधी साबित कर दिया है, उसी तरह, बीपीएफ ने महागठबंधन में शामिल होकर बोडो इतिहास को खारिज कर दिया है,' भाजपा के बयान में कहा गया है।

असम कांग्रेस के प्रवक्ता रितुपर्ना कोंवर ने बताया, 'बीपीएफ को वह सम्मान नहीं मिला, जो उसे मिलना चाहिए। यदि आप विश्लेषण करते हैं, तो आप देखेंगे कि भाजपा की यह नीति है कि छोटे क्षेत्रीय दलों को अपने साथ जोड़कर नष्ट कर दिया जाए। उन्होंने बीपीएफ के साथ चुनावी गठबंधन किया था और फिर भी बीटीसी चुनावों के दौरान उन्हें बाहर कर दिया।'

बीटीसी चुनावों को पिछले साल जनवरी में बोडो समूहों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद करवाया गया था। यूपीपीएल का नेतृत्व ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष प्रोमोड बोरो कर रहे हैं जो समझौते के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थे।

चुनाव के परिणामों के बाद असंतुष्ट मोहिलरी ने संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए गौहाटी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने बीजेपी-यूपीपीएल-जीएसपी के सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, जिसमें उन्होंने अपनी ताकत साबित की।

भाजपा ने नए गठबंधन के कारण अपनी राजनीतिक संभावनाओं के लिए किसी भी खतरे की संभावना से इंकार किया है। पार्टी ने कहा कि लोगों को अच्छी तरह से पता है कि बोडोलैंड के विकास की कुंजी भाजपा की विचारधारा में निहित है, 'सबका साथ, सबका विकास, सबका साथ' और ''कांग्रेस'', जिसने असम को 15 साल तक लूटा; एआईयूडीएफ, जो बांग्लादेशियों का रक्षक है; और भ्रष्टाचार के बोडोलैंड के नायक मोहिलारी हैं।''

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