कर्नाटक हाईकोर्ट ने येदियुरप्पा के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मुकदमे दोबारा खोलने के दिए आदेश
जनज्वार डेस्क। कर्नाटक हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों के लिए एक विशेष अदालत को मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा के खिलाफ एक पुराने मामले को बहाल करने का निर्देश दिया है जिसे जुलाई 2016 में एक सत्र अदालत ने निरस्त कर दिया था।
मामला 2008-2012 की अवधि में की गई भूमि के निरूपण में कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है - जब कर्नाटक में भाजपा पहली बार सत्ता में थी। पूर्व उद्योग मंत्री कट्टा सुब्रमण्यम नायडू का नाम भी मामले में लिया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत ने 2016 में इस मामले को निरस्त कर दिया था। उस समय एक पुलिस रिपोर्ट के आधार पर मामले में नामित नौ अन्य लोगों के लिए पुलिस द्वारा बंद की गई रिपोर्ट का हवाला दिया गया था।
येदियुरप्पा के खिलाफ मामला शुरू करने के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा -विशेष अदालत को प्रतिवादी संख्या 10 और 11 के खिलाफ आरोप पत्र में किए गए अपराधों का संज्ञान लेने का निर्देश दिया गया है।
पुराने मामले की बहाली के लिए याचिका 2016 में कार्यकर्ता आलम पाशा द्वारा दायर की गई थी और हाईकोर्ट ने इस वर्ष 17 मार्च को बहाली के लिए अपना आदेश पारित किया।
पाशा, जो 2012 में येदियुरप्पा और अन्य के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार विरोधी मामले में मूल शिकायतकर्ता थे, ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि सत्र अदालत ने 2016 में पुलिस द्वारा दायर एक क्लोजर रिपोर्ट का हवाला देकर मामले को गलत तरीके से रद्द कर दिया था।
येदियुरप्पा और नायडू के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कहा गया था कि उन्होंने उत्तरी बेंगलुरु में 24 एकड़ से अधिक की सरकारी-अधिग्रहित जमीन को निजी व्यक्तियों को जारी करने की अनुमति देने के लिए अपने पदों का इस्तेमाल किया, जिससे सौदेबाजी में राज्य को नुकसान हुआ।
जांच के बाद लोकायुक्त पुलिस ने मामले में नामजद नौ लोगों के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट दायर की थी, क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं जुटाए जा सके और येदियुरप्पा और नायडू के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया।
हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस की चार्जशीट के बावजूद सेशन कोर्ट ने इस मामले में नौ अन्य लोगों के खिलाफ दायर क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर पूरे मामले को छोड़ दिया।
आरएसएस के निष्ठावान स्वयंसेवक रहे 75 वर्षीय बीएस येदियुरप्पा महज 15 साल की उम्र में दक्षिणपंथी हिंदूवादी संगठन में शामिल हुए। जनसंघ से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर वह अपने गृहनगर शिवमोगा जिले के शिकारीपुरा में भाजपा के अगुवा रहे। 1970 के दशक के शुरुआत में वह शिकारीपुरा तालुका से जनसंघ प्रमुख बने।वर्तमान में शिवमोगा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे येदियुरप्पा वर्ष 1983 में शिकारीपुरा विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए। फिर इस सीट का उन्होंने पांच बार प्रतिनिधित्व किया।
कला संकाय में स्नातक येदियुरप्पा आपातकाल के दौरान जेल भी गए। उन्होंने समाज कल्याण विभाग में लिपिक की नौकरी करने के बाद अपने गृहनगर शिकारीपुरा में एक चावल मिल में भी इसी पद पर काम किया। इसके बाद शिवमोगा में उन्होंने हार्डवेयर की दुकान खोली।
वर्ष 2004 में राज्य में भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बन सकते थे लेकिन कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जेडीएस के गठजोड़ से यह संभव नहीं हो सका और तब राज्य की सरकार धरम सिंह के नेतृत्व में बनी।
अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता के लिए पहचाने जाने वाले येदियुरप्पा ने कथित खनन घोटाला में लोकायुक्त द्वारा मुख्यमंत्री धरम सिंह पर अभियोग लगाये जाने के बाद वर्ष 2006 में एचडी देवगौड़ा के पुत्र एचडी कुमारस्वामी के साथ हाथ मिलाया और धरम सिंह की सरकार गिरा दी।
बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था के तहत कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा उपमुख्यमंत्री बने। हालांकि 20 महीने बाद ही जेडीएस ने सत्ता साझा करने के समझौते को नकार कर दिया, जिसके चलते गठबंधन की यह सरकार भी गिर गई और आगे के चुनावों का रास्ता साफ हुआ।
वर्ष 2008 के चुनावों में लिंगायत समुदाय के दिग्गज नेता येदियुरप्पा के नेतृत्व में पार्टी ने जीत हासिल की और दक्षिण में पहली बार उनके नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
बहरहाल, येदियुरप्पा बेंगलुरु में जमीन आवंटन को लेकर अपने पुत्र के पक्ष में मुख्यमंत्री कार्यालय के कथित दुरुपयोग को लेकर विवादों में घिरे। अवैध खनन घोटाला मामले में लोकायुक्त के उन पर अभियोग लगाया और उन को 31 जुलाई 2011 को इस्तीफा देना पड़ा। कथित जमीन घोटाला के संबंध में अपने खिलाफ वारंट जारी होने के बाद उसी साल 15 अक्टूबर को उन्होंने लोकायुक्त अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया। एक सप्ताह वह जेल में रहे।
इस घटनाक्रम को लेकर भाजपा से नाराज येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ दी और कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) का गठन किया। हालांकि में वह केजेपी को कर्नाटक की राजनीति में पहचान दिलाने में नाकाम रहे लेकिन वर्ष 2013 के चुनावों में उन्होंने छह सीटें और दस फीसदी वोट हासिल कर भाजपा को सत्ता में आने भी नहीं दिया।
एक तरफ येदियुरप्पा अनिश्चित भविष्य के दौर से गुजर रहे थे तो वहीं भाजपा को भी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए एक ताकतवर चेहरे की जरूरत थी। इस तरह दोनों फिर से एक साथ आ गए। नौ जनवरी 2014 को येदियुरप्पा की केजेपी का भाजपा में विलय हो गया जिसके फलस्वरूप वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 28 में 19 सीटों पर जीत दर्ज की। अपने दामन पर भ्रष्टाचार के दाग के बावजूद भाजपा में येदियुरप्पा की प्रतिष्ठा और कद बढ़ता गया।
26 अक्टूबर 2016 को उन्हें उस वक्त बड़ी राहत मिली जब सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें, उनके दोनों बेटों और दामाद को 40 करोड़ रुपये के अवैध खनन मामले में बरी कर दिया। इसी मामले के चलते वर्ष 2011 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
जनवरी 2016 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने, भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत लोकायुक्त पुलिस की ओर से येदियुरप्पा के खिलाफ दर्ज सभी 15 प्राथमिकियों को रद्द कर दिया था। उसी साल अप्रैल में येदियुरप्पा चौथी बार राज्य भाजपा के प्रमुख नियुक्त हुए। भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों और कांग्रेस के तंज को नजरअंदाज करते हुए भाजपा ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री बनाया।