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राजनीति

Uttarakhand News : कांग्रेस में वापसी के साथ ही यशपाल आर्य ने पुत्र के लिए मांगा टिकट

Janjwar Desk
11 Oct 2021 8:18 AM GMT
Uttarakhand News : कांग्रेस में वापसी के साथ ही यशपाल आर्य ने पुत्र के लिए मांगा टिकट
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(यशपाल आर्य की घर वापसी अप्रत्याशित नहीं, प्री मैच्योर डिलीवरी)

Uttarakhand News : भाजपा के टिकट पर बाजपुर विधानसभा क्षेत्र से किसी भी प्रत्याशी का इन चुनावों में विधानसभा पहुंचना लगभग असम्भव है। यह बात खुद यशपाल आर्य जान चुके थे।

सलीम मलिक की रिपोर्ट

देहरादून। पूर्व कांग्रेस सरकार (Congress) के कार्यकाल में पार्टी छोड़कर भाजपा में जाने वाले दिग्गज नेताओं में से एक विजय बहुगुणा (Vijay Bahuguna) को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी को भाजपा (BJP) की इस सरकार में असहजता ही झेलनी पड़ी है। इसी असहजता के चलते कांग्रेस की संस्कृति में रचे-बसे यशपाल आर्य सहित तमाम नेता न केवल घुटन महसूस कर रहे थे बल्कि स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं के गले भी नहीं उतर पा रहे थे। सरकार के निर्णयों में संघ का लगातार बढ़ते बेतुके हस्तक्षेप को भी यह नेता कोई तर्क नहीं दे पा रहे थे। जिसके चलते देश भर में चल रहे किसान आंदोलन की तपिश झेल रही भारतीय जनता पार्टी के हाथ चुनाव से चार महीने पहले बुरी तरह झुलस गए हैं।

सोमवार को प्रदेश के सबसे बड़े दलित चेहरे व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने अपने विधायक पुत्र संजीव आर्य के साथ अपने पुराने घर कांग्रेस (Congress) में वापसी कर ली। तमाम तरह के प्रायोजित सर्वे के माध्यम से कल्पनाओं के घोड़े पर सवार ऊंची उड़ान भरने का मंसूबा पाले भाजपा सरकार के लिए यह निर्णायक झटका भले ही अब लगा हो लेकिन इसकी पटकथा महीनों पहले से किसान आंदोलन (Farmers Movement) के गर्भ से निकली स्याही से लिखनी शुरू हो गयी थी।

वर्तमान में यशपाल आर्य का निर्वाचन क्षेत्र बाजपुर (Bajpur) किसान आंदोलन से सबसे ज्यादा प्रभावित है। भाजपा के टिकट पर इस विधानसभा क्षेत्र से किसी भी प्रत्याशी का इन चुनावों में विधानसभा पहुंचना लगभग असम्भव है। यह बात खुद यशपाल आर्य जान चुके थे कि बाजपुर सीट से चुनाव हारना भाजपा के लिए भले ही विधानसभा में एक विधायक कम होने जैसी मामूली बात हो लेकिन उनके लिए यह पूरे जीवन की राजनीति का अवसान साबित हो सकता है।

अपने पुत्र को अपने राजनैतिक संरक्षण में राजनीति का क... ख... ग.... सीखा रहे यशपाल इस नाजुक समय में इस अवसान के लिए कतई तैयार नहीं थे। इसी उथल-पुथल के मंथन वाले दौर में जहां यशपाल आर्य (Yashpal Arya) अपने पुत्र के भविष्य के लिए चिंतित थे तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) दो-दो विधानसभा क्षेत्र से हारने और असम व पंजाब दोनो जगह कोई खास करिश्मा करने में विफल होकर शब्दों के व्यंग्य वाणों से छलनी होते जा रहे थे।

लिहाजा दोनों के बीच पहले स्थानीय तौर पर सहमति बनी। फिर सीधे केंद्रीय आलाकमान को इस मामले में इन्वॉल्व किया गया। जहां यशपाल आर्य ने खुद अपने लिए नैनीताल विधानसभा क्षेत्र से तो पुत्र संजीव आर्य के लिए सोमेश्वर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से टिकट की मांग रखी। करीब-करीब सभी मुख्य बातों पर सहमति के बाद यशपाल आर्य की पुत्र सहित घर-वापसी का समय विधानसभा चुनाव से केवल एक माह पूर्व का रखा गया था।

सितम्बर के पहले पखवाड़े में कांग्रेस (Congress) की निकाली जा रही परिवर्तन यात्रा के दूसरे चरण में हरीश रावत का दिया गया बयान "मैं अपने जीवन में एक बार 'दलित के बेटे' को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहता हूं", पंजाब के मुख्यमंत्री पद पर दलित की ताजपोशी से उत्साहित नहीं था। बल्कि वह भाजपा नेताओं के लिए शंखनाद था। जिसने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) को ब्रेकफास्ट पॉलिसी के तहत यशपाल आर्य के घर जाने को मजबूर कर दिया था। लेकिन समय से आगे की तस्वीर देख रहे यशपाल आर्य से उन्हें कोई राहत नहीं मिल पाई।

वैसे तो हरीश-यशपाल की इस जुगलबन्दी का पटाक्षेप सब कुछ तय पटकथा के अनुसार होना था। लेकिन लखीमपुर कांड के बाद बदले हालत में यह सब कुछ समय से कुछ पूर्व हो गया। इसलिए यशपाल की कांग्रेस में घर वापसी अप्रत्याशित नहीं है, ज्यादा से ज्यादा इसे "प्री-मैच्योर डिलीवरी" कह सकते हैं।

वैसे वर्तमान में प्रदेश के जो राजनैतिक हालात हैं उसमें प्रदेश सरकार मीडिया के सर्वे में अपनी गुलाबी तस्वीर देखकर भले ही मुग्ध हो ले लेकिन यशपाल आर्य की पुत्र के साथ इस घर वापसी का झटका झेल रही भाजपा को चुनाव से पूर्व ऐसे अभी कई और झटकों की सीरीज से रूबरू होना पड़ेगा। अलग-अलग लोगों के साथ अलग-अलग पटकथाओं का लेखन जो चल रहा है, उसका पटाक्षेप रोचक होगा।

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