Ranjeet Singh Rawat : चक्रव्यूह में फंसे रण 'जीत' पर लटकी पार्टी से निष्कासन की तलवार, नोटिस का जवाब देकर घर बैठे कार्यकारी अध्यक्ष
चक्रव्यूह में फंसे रण 'जीत' पर लटकी पार्टी से निष्कासन की तलवार, नोटिस का जवाब देकर घर बैठे कार्यकारी अध्यक्ष
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Ranjeet Singh Rawat : उत्तराखण्ड के हालिया विधानसभा चुनावों (Uttarakhand Assembly Election 2022) में पार्टी की करारी हार के लिए जिम्मेदार बलि के बकरों की तलाश तेजी से शुरू हो गई है। पार्टी के पॉवर क्लब में बैठे लोगों ने चुनाव जीतने से अधिक चुनावी हार की जिम्मेदारी थोपने के जिम्मेदार लोगों की तलाश में मेहनत शुरू कर दी है। फिलहाल इस क्लब ने अपनी साफगोई के लिए जाने जाने वाले एक नेता को चिन्हित कर उस पर चुनावी हार की गाज गिराने की तैयारी कर ली है। इस नेता को चुनाव बाद की बयानबाजी को आधार बनाते हुए उसे पार्टी से निष्कासित करने के लिए पार्टी की ओर से बाकायदा औपचारिक तौर किन इस बार परम्परा को तोड़ते हुए सत्ता फिर भाजपा (BJP) को मिली। पराजय के बाद कांग्रेस में तूफान मच गया। कई ऐसी बातें जो पर्दे के पीछे थीं, वह भी बाहर आने लगी।
इन्हीं बातों में एक बयान कांग्रेस (Congress) के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत (Ranjeet Singh Rawat) का भी था। जिसने कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का विभत्स चेहरा सार्वजनिक किया था। बकौल रणजीत विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा पैसे लेकर टिकट बांटे थे। पैसे देने के बाद भी जिनको टिकट नहीं मिल पाए थे, ऐसे दावेदारों के पैसे भी वापस किये गए थे। रणजीत के इस बयान के बाद पार्टी में भूचाल आ गया था। आरोपों के घेरे में घिरे हरीश रावत (Harish Rawat) ने तो खुद को इस मुद्दे पर पार्टी से ही निकालने की मांग कर दी थी।
पार्टी ने इतने गंभीर आरोप की जांच के बजाए पराजय के कारणों पर मंथन के लिए बुलाई बैठक में अपने गलत टिकट बंटवारे की बजाए भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे को अपनी हार के लिए जिम्मेदार मानकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
विवाद की मूल वजह
कांग्रेस में बीते लम्बे समय से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व रणजीत सिंह रावत के बीच सम्बन्ध सहज नहीं हैं। एक समय की यह खास जोड़ी बीते विधानसभा चुनाव में अलग-अलग हो गयी थी। रणजीत के शब्दों में कहें तो हरीश रावत नए नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में गुटबाजी के लिए अनावश्यक प्रोत्साहन देते हैं। उनका नशा अफीम से भी घातक है। मेरा खुद का नशा 35 साल में खत्म हुआ है।
हरीश का साथ छोड़ने के बाद रणजीत कांग्रेस के प्रीतम-इंदिरा (स्व. इंदिरा ह्रदयेश) गुट का हिस्सा बने। तब तक रणजीत के पुत्र विक्रम रावत युवा कांग्रेस के निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष बन चुके थे। लेकिन हरीश रावत कैम्प ने सुमित्तर भुल्लर को पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर फिर निर्वाचित विक्रम रावत को हटाकर युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर सुमित्तर को मनोनीत करा दिया।
यह रणजीत के लिए पहला सार्वजनिक झटका था। लेकिन इसके बाद भी रामनगर की राजनीति करते हुए रणजीत ने अपने पुत्र विक्रम को पंचायत चुनाव में सल्ट ब्लॉक का पंचायत प्रमुख बनवाकर फिर अपनी ताकत का अहसास करा दिया। सल्ट उपचुनाव में रणजीत रावत द्वारा पुरजोर पैरवी के बाद भी हरीश कैम्प ने पार्टी का टिकट विक्रम को नहीं लेने दिया। जिस पर रणजीत ने इस उपचुनाव से दूरी बना ली। पार्टी प्रत्याशी गंगा पंचोली की हार के लिए हरीश कैम्प ने रणजीत को तो रणजीत ने हरीश रावत के उपचुनाव में भाजपा को वॉक ओवर देने के बयान को जिम्मेदार ठहराया।
इस दौरान नेता-प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश के आकस्मिक निधन ने प्रीतम कैम्प को खासा नुकसान पहुंचाया। अभी तक हरीश-प्रीतम कैम्प के बीच के जो मुकाबले बराबरी पर छूटते दिखते थे, इंदिरा के बिना वह हरीश कैम्प की ओर झुकते दिखने लगे।
प्रीतम कैम्प के कमजोर होते देख हरीश रावत की रामनगर में राजनैतिक सक्रियता बढ़ने लगी। पिछला विधानसभा चुनाव हारने के बाद से रामनगर से फिर अगले चुनाव की तैयारियों में जुटे रणजीत जब यहां से अपने आप को कांग्रेस का स्वभाविक प्रत्याशी मानकर चल रहे थे तो ठीक इसी समय हरीश रावत अपने कैम्प के दो लोगों को रामनगर से टिकट दिलाये जाने का संकेत दे रहे थे।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होते ही रणजीत को कार्यकारी अध्यक्ष का पद दिलाकर प्रीतम कैम्प ने ताक़त दिखाई तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पहली सूची में रणजीत का नाम गायब कराकर हरीश कैम्प ने बढ़त हासिल की। टिकट वितरण से पहले ही हरीश ने एकाएक आक्रामक रूप धारण कर जिस प्रकार दिल्ली हाईकमान की दवाब में लिया उसने प्रीतम कैम्प को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया। अंततः हरीश ने रामनगर विधानसभा से खुद का टिकट करवाकर रणजीत की राहें मुश्किल कर दी।
हालांकि बाद में समझौते के तहत रणजीत को सल्ट तो हरीश को लालकुआं विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए जाना पड़ा। लेकिन तब तक कांग्रेस की आंतरिक लड़ाई खुलकर सड़क पर आ गई थी। जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। रही सही कसर हरीश रावत के उत्तराखण्ड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी (हरीश इस बयान से इंकार करते हैं) बनाने वाले बयान ने पूरी कर दी। जिसने प्रदेश में न केवल कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाया बल्कि भाजपा को खासी बढ़त भी हासिल कराई।
चुनाव के बाद चले तीर
चुनाव से पहले चली आ रही दोनो कैम्प के बीच की रार पार्टी के हारने के बाद और बढ़ गयी। हार के पीछे गुटों की भीतरघात, टिकटों का गलत वितरण जैसी वजह मानी गई। रणजीत ने एक कदम आगे बढ़कर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर पैसे लेकर टिकट बेचने तक का आरोप लगाया तो पार्टी में भूचाल आ गया। पार्टी की हार के लिए बुलाई गई समीक्षा बैठक में राष्ट्रीय महासचिव व पर्यवेक्षक अविनाश पाण्डे ने रणजीत के सभी आरोपों को नकारते हुए टिकट वितरण को सबका सामूहिक फैसला बताते हुए हरीश रावत को न केवल क्लीन चिट दे दी बल्कि पार्टी ने रणजीत की बयानबाजी को ही अनुशासनहीनता बताते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। नोटिस मिलने के बाद भी रणजीत के विद्रोही तेवर हल्के नहीं पड़े।
उनका अभी भी कहना है कि "मुझे नोटिस मिला है। नोटिस का समुचित जवाब दे दिया गया है। पहले भी चुनाव में ऐसे आरोप लगते रहे हैं, पर कार्रवाई नहीं हुई। यदि अनुशासनहीनता पर मुझ पर कार्रवाई होती है तो मैं खुद को सौभाग्यशाली समझूंगा। लेकिन, गलत को गलत और सही को सही कहने से कभी हिचकूंगा नहीं नहीं।"
बहरहाल, रणजीत रावत ने अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब तो पार्टी को दे दिया है। लेकिन इस पूरे खेल में वह प्रीतम खेमे पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होने के चक्कर में अपने गुरु से पिछड़ गए हैं। टिकट वितरण के दौरान ही कई ऐसे मौके आये जब प्रीतम ने मौके पर रणजीत की पैरवी के बजाए चुप्पी साधे रखी। लेकिन इसके बाद भी रणजीत ने हरीश कैम्प से अपनी लड़ाई को कम नहीं किया। अब ऐसे समय में जबकि प्रीतम सिंह जहां अपने नेता-प्रतिपक्ष पद को इस विधानसभा कार्यकाल में बचाये रखने के लिए खुद व्यूहरचना में जुटे हैं तो पूर्व उपनेता करन मेहरा खुद चुनावी हार में धराशाई हुए पड़े हैं, तो रणजीत को उनके कैम्प ने भी अकेला छोड़ दिया है। ऐसे में सारी लड़ाई रणजीत के खुद के कंधों पर ही आ गई है। अनुशासनहीनता के आरोप में यदि उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है तो क्या कोई उनकी इस संकट के समय मदद करेगा या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। लड़ाई के अंतिम दौर में हरीश कैम्प से समझौता तो अब सम्भव ही नहीं है।