6 सालों में दिहाड़ी मजदूरों के आत्महत्या के मामले हो गए दोगुने, बेरोजगारों का प्रतिशत पहली बार डबल डिजिट में
जनज्वार। दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट लगातार गहरा हो रहा है। राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में आत्महत्या के कुल मामलों में दिहाड़ी मजदूरों के आत्महत्या के मामले 2019 में बढकर 23.4 प्रतिशत हो गए हैं। छह साल पूर्व के आंकड़े से तुलना करने पर यह दोगुणी वृद्धि है। देश में कुल आत्महत्या के मामलों में अकेले दिहाड़ी श्रमिकों की करीब एक चैथाई हिस्सेदारी हो गई है।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने हाल में ही वर्ष 2019 के लिए अपनी रिपोर्ट पेश की है। इसके अध्ययन के अनुसार, 2019 में छह वर्ष पूर्व के मुकाबले दिहाड़ी श्रमिकों की आत्महत्या की घटनाएं सबसे तेजी से बढी हैं। देश के कुल 1,39,123 आत्महत्या के मामलों में इनकी संख्या 32563 है। एनसीआरबी ने 2014 में अपनी रिपोर्ट में दिहाड़ी श्रमिकों की दुर्घटना से मौत व आत्महत्या काॅलम को शामिल किया था। 2014 में कुल मामलों में इनकी संख्या 12 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जो अभी के प्रतिशत से आधा है।
2015 में वह प्रतिशत बढकर 17.8, 2016 में 19.2, 2017 में 22.1 और 2018 में 22.4 हो गया। अब 2019 में यह प्रतिशत 23.4 दर्ज किया गया है। 2014 में 15, 735 दिहाड़ी श्रमिकों के आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए थे और अब 2019 में यह संख्या 32, 563 दर्ज की गई है।
इन दिहाड़ी श्रमिकों में वैसे श्रमिक शामिल नहीं हैं जो कृषि कार्य में दिहाड़ी का काम करते हैं। तमिलनाडु एवं मध्यप्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जहां सबसे अधिक संख्या में दिहाड़ी श्रमिकों ने आत्महत्या की। 2019 में तमिलनाडु में 5,186, मध्यप्रदेश में 3,964, तेलंगाना में 2, 858 जबकि केरल में 2, 809 दिहाड़ी श्रमिकों ने आत्महत्या की।
दिहाड़ी श्रमिकों के बाद 2019 में सबसे अधिक गृहिणियों यानी घरेलू महिलाओं के आत्महत्या के मामले बढे। एनसीबी के आंकड़े के अनुसार, 15.4 प्रतिशत की वृद्धि इनके आत्महत्या के मामले में आयी। 2019 में दर्ज रिकार्ड के अनुसार, 21, 359 घरेलू महिलाओं ने आत्महत्या की।
बेरोगारों की आत्महत्या का प्रतिशत 2014 के बाद बढा
2019 में बेरोजगारों के आत्महत्या का प्रतिशत 10.1 रहा, जो 25 साल में पहली बार डबल डिजीट में पहुंचा है। एनसीआरबी इस श्रेणी के जिए 1995 से आंकड़ा जुटा रहा है। 2019 में बेरोजगार श्रेणी में 14, 019 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए, जो एक साल पहले 8.37 प्रतिशत के साथ 12, 936 था।
इससे पहले बेरोजगारों के आत्महत्या का प्रतिशत सबसे अधिक 1997 में था। उस साल कुल आत्महत्या के मामलों में उनका प्रतिशत 9.8 प्रतिशत था। जबकि सबसे कम 2007 में 6.9 प्रतिशत था। बेरोजगारों की आत्महत्या का प्रतिशत 1995 से 2004 के बीच आठ प्रतिशत से अधिक था, जबकि 2005 से 2014 के बीच आठ प्रतिशत से नीचे रहा। इसके बाद से इनके प्रतिशत में वृद्धि दर्ज हो रही है।
कृषि सेक्टर में काम करने वाले लोगों को आत्महत्या का प्रतिशत 2019 में 3.1 प्रतिशत रहा।
एनसीआरबी नौ अलग-अलग श्रेणी में आत्महत्या के मामलों को दर्ज करता है। इनमें दिहाड़ी श्रमिक, घरेलू महिला, कृषि क्षेत्र में रोजगार पा रहे लोग, प्रोफेशनल व सेलरी पाने वाले लोग, छात्र स्वरोजगार करने वाले, सेवानिवृत्त, बेरोजगार व अन्य शामिल हैं।