सिंगल मदर से कोई नहीं पूछ सकता होने वाले बच्चे के पिता का नाम, केरल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
यूट्रस में इस बीमारी के होने से मां नहीं बन सकती महिला, जानिए इसके लक्षण और इलाज
मोना सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। अगर आप मां बनना चाहती हैं, लेकिन किसी वजह से नहीं बन पा रहीं हैं, तो ये खबर आपके लिए है। आप शादीशुदा हैं या फिर तलाकशुदा या फिर विधवा या फिर कुंवारी ही क्यों ना, लेकिन आप मां बनने के सपने को पूरा कर सकतीं हैं। और अगर आप IFV तकनीक से मां बनती हैं तो उस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। यानी कोई सिंगल मदर अगर मां बनती है तो उसके होने वाले बच्चे का पिता कौन है, इसे कोई नहीं पूछ सकता है।
हाल में ही केरल हाईकोर्ट ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो हर उस महिला के लिए सम्मान की बात है जो मां बनना चाहती हैं। दरअसल, केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि आईवीएफ के द्वारा यदि कोई कुंवारी या बिन ब्याही या तलाकशुदा महिला गर्भधारण कर मां बनती है तो उसके बच्चे के पिता का नाम नहीं पूछा जा सकता है।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए ये भी कहा कि पिता का नाम पूछना उस स्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचाने जैसा है। सिर्फ मां ही नहीं बल्कि आईवीएफ से जन्मे उसे बच्चे के सम्मान को भी इससे ठेस पहुंचता है। हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि जिस संस्थान द्वारा आईवीएफ किया गया है, वहां से भी स्पर्म डोनर की कोई जानकारी नहीं दी सकती। प्राइवेसी का ध्यान रखना जरूरी है। यहां तक कि महिला को भी स्पर्म डोनर के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। ऐसे में उससे पिता का नाम कैसे पूछा जा सकता है? इसलिए ये एक मां के सम्मान के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने कहा कि स्पर्म डोनर (Sperm Donar) का नाम तभी सामने लाया जा सकता है जब कोई विशेष परिस्थिति हो। या फिर बच्चे के साथ कोई स्पेशल मेडिकल कंडीशन हो जाए और उसमें पिता के मेडिकल बैकग्राउंड की जानकारी जरूरी हो। केवल इन्हीं परिस्थितियों में आईवीएफ सेंटर द्वारा पिता के नाम का खुलासा किया जा सकता है।
केरल हाईकोर्ट का ये ऐतिहासिक निर्णय एक तलाकशुदा महिला की याचिका पर आया है। ये तलाकशुदा महिला आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए 8 माह की गर्भवती है। ऐसे में इस महिला के मां बनने पर समाज को सवाल पूछने का कोई अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने ऐसे बच्चों के लिए अलग से जन्म प्रमाण पत्र के फॉर्म भी जारी करने के आदेश दिए हैं।
आईवीएफ क्या है (what is IVF)
आईवीएफ (IVF) का पूरा नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In-vitro fertilization) है। दरअसल, इस तकनीक से जन्मे बच्चे को टेस्ट ट्यूब भी बेबी कहते हैं। अब तक पूरे विश्व में 80 लाख से भी ज्यादा बच्चे इस तकनीकी के प्रयोग से जन्म ले चुके हैं। इस तकनीक का प्रयोग नि:संतान दंपति को संतान प्रदान करने के लिए किया जाता है।
हमारे समाज में शादीशुदा कपल के बच्चे नहीं होने पर कई बार सिर्फ महिलाओं को ही दोषी माना जाता है, लेकिन सच ये है कि बच्चे पैदा नहीं होने की वजह पुरुष बांझपन यानी मेल इनफर्टिलिटी और महिला बांझपन यानी फीमेल इनफर्टिलिटी में से दोनों हो सकती हैं। मतलब ये जरूरी नहीं कि सिर्फ महिला के चाहने से ही बच्चा पैदा होता है। पुरुष बांझपन की वजह से भी महिला को मां बनने में दिक्कत आती है। इसी समस्या को दूर करने के लिए आईवीएफ तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
अगर दंपती बच्चा पैदा करने में असमर्थ है तो इस तकनीक से प्रयोगशाला में पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु को मिलाकर भ्रूण बनाया जाता है। फिर उसे महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है। इस तरह महिला गर्भधारण कर सकती है। इस पूरी प्रक्रिया में कई चरण होते हैं। इसके साथ ही कई जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है।
IVF इलाज किन लोगों को कराना चाहिए
शादीशुदा दंपती का सपना होता है कि एक दिन वो मां-बाप भी बनें, लेकिन शादी के काफी समय बाद भी कोई महिला हर संभव तरीके अपनाने के बाद भी जब गर्भधारण नहीं कर पाती तो उन्हें आईवीएफ की सलाह दी जाती है। गर्भधारण नहीं होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जानिए वो कौन-कौन सी वजहें हैं जिसके कारण महिला गर्भधारण नहीं कर पाती हैं—
1- किसी महिला का मासिक धर्म (पीरियड) नियमित न होना।
2- पुरुष में स्पर्म की मात्रा का सामान्य से कम बनना या फिर ना बनना।
3- दंपती का सामान्य से अधिक उम्र का होना भी एक प्रमुख कारण है।
4- महिला के गर्भाशय में रसौली यानी गांठ का बन जाना।
5- महिला को PCOS यानी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम का होना।
6- PCOS से हार्मोन का स्तर गिर जाता है जिससे अंडाणु विकसित नहीं होते।
7-महिला को एंडोमेट्रियोसिस यानी गर्भाशय की बनावट में गड़बड़ी हो जाना।
क्या है टेस्ट ट्यूब बेबी की है प्रक्रिया
एक्सपर्ट बताते हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी के सफल होने की संभावना 40 से 70 % तक होती है। IVF की प्रक्रिया कैसे पूरी होती है। इसे ऐसे समझ सकते हैं—
सबसे पहले पुरुष और महिला दोनों के फर्टिलिटी टेस्ट किए जाते हैं। इसमें पुरुष के शुक्राणु और महिला के खून की जांच की जाती है। महिला को पीरियड के दूसरे दिन से 10 दिनों तक हार्मोन इंजेक्शन लगते हैं। हर 4-5 दिन में अल्ट्रासाउंड से देखते हैं कि अंडाणु ठीक से बन रहे हैं या नहीं। अंडाणु ठीक से बनने पर एक आखिरी ट्रिगर इंजेक्शन लगाया जाता है। इस इंजेक्शन के 34 से 35 घंटे बाद महिला के शरीर से अंडाणु निकालते हैं।
इन अंडाणु को 34 से 38 घंटों के बाद एक प्रॉसेस के बाद इंक्यूबेटर में रखते हैं। यहां अंडाणु व शुक्राणु का निषेचन कराकर कुछ दिन के लिए छोड़ा जाता है। अब 3 से 4 दिन बाद बने भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित करते हैं। बचे हुए भ्रूण को क्रायोप्रिजर्वेशन द्वारा प्रिजर्व करके सेफ रख दिया जाता है। 13 से 14 दिन बाद ब्लड टेस्ट के जरिए प्रेग्नेंसी की जांच की जाती है। अगर कोई दिक्कत आती है तो फिर से भ्रूण को प्रत्यारोपित कर जांच करते हैं।
देश में IVF कितना खर्चीला?
भारत में आईवीएफ तकनीक अन्य देशों के मुकाबले कम खर्चीली है, लेकिन औसत परिवार के लिए ये अभी भी बहुत महंगा है। एक चरण में ही आसानी से आईवीएफ के जरिए गर्भधारण करने पर हर शहर में अलग-अलग खर्च आते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में 2 से 3 लाख रुपये, तो बेंगलुरु में 1.6 लाख से 1.75 लाख रुपये का खर्च आता है। चेन्नई में 1.45 लाख से 1.60 लाख तो दिल्ली मं6 90 हजार से 1.25 लाख रुपये में भी आईवीएफ करने वाले डॉक्टर उपलब्ध हैं। सबसे कम कोलकाता और हैदराबाद में है। हैदराबाद में 70 हजार से 90 हजार और कोलकाता में 65 हजार से 80 हजार रुपये का खर्च आ रहा है।
अगर आईवीएफ ट्रीटमेंट की जरूरत एक से ज्यादा बार पड़ती है तो ये खर्च 2 से 3 गुना ज्यादा बढ़ सकता है। यानी पहली बार में गर्भधारण नहीं हुआ तो आपको 3 से 4 लाख रुपये तो सामान्य तौर पर खर्च हो जाएंगे। भारत में प्राइवेट संस्थानों के साथ-साथ कई जाने-माने सरकारी संस्थान भी ऐसे हैं जिसमें आईवीएफ ट्रीटमेंट किए जाते हैं। दिल्ली के एम्स में आईवीएफ पर लगभग 60 हजार रुपये का खर्च आता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित ऐसा पहला स्त्री रोग केंद्र है जहां आईवीएफ से इलाज हो रहा है।
IVF के लिए ICMR का क्या है कानून, 50 से ज्यादा उम्र में IVF नहीं
भारत में आईवीएफ का इलाज आईसीएमआर (ICMR) के बनाए कानून के अंतर्गत आता है। आईसीएमआर के मुताबिक, इन नियमों को पालन करना बहुत जरूरी है। फर्टिलिटी क्लिनिक का रजिस्ट्रेशन होना सबसे जरूरी है। इलाज करने वाले एक्सपर्ट के लिए भी निश्चित मानक तय किए गए हैं। कपल की अनुमति लिखित रूप में होनी चाहिए।
इलाज से पहले कपल की काउंसलिंग कर इलाज के बारे में विस्तृत जानकारी देना जरूरी है। आईवीएफ का इलाज ले रही महिला की उम्र 50 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। एक भ्रूण को मानव के अलावा किसी दूसरे जीव या मशीन में नहीं रखा जाना चाहिए। भ्रूण को मां के शरीर में रखने के लिए कानूनी रूप से अनुमति लेना जरूरी है।