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धर्म की सत्ता नहीं संविधान की सत्ता ही भारत का भविष्य है
धर्म की सत्ता नहीं संविधान की सत्ता ही भारत का भविष्य है
मंजुल भारद्वाज, वरिष्ठ रंगचिंतक
सशस्त्र क्रांति के दम पर हिन्दुस्तान को आज़ाद करने की मुहीम 1857 में हुई थी. नतीजा हम सबके सामने है और इतिहास में दर्ज़ है. इसलिए चुगलखोरी के शिकार, विकारियों द्वारा राष्ट्रप्रेम के नाम पर चलाये जा रहे चुगलखोरी किस्म के षड्यंत्रों को विराम दें और विकारियों के छद्म राष्ट्रप्रेम के पाखंड को उजागर करें.
1857 के ग़दर के बाद देश को 90 साल लगे आज़ाद होने में. लेकिन यही आधुनिक भारत के मंथन का समय था. 1857 का गदर जहाँ राजे-रजवाड़ों का विद्रोह था वहीँ 1857 के बाद का आज़ादी आन्दोलन आम लोगों की बुनियाद पर खड़ा हुआ. आम लोगों को राजनीति से जोड़ने के सूत्रधार हैं महात्मा गांधी. कांग्रेस के अस्तित्व के बावजूद उसकी पैठ सिर्फ़ हाशिये पर थी जिसे गांधी ने अंग्रेजी शासन के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया और आम जनता को उसके होने की नयी शक्ति से रूबरू कराया. बेशक गांधी के पहले,उनके साथ अनेक क्रांतिकारियों ने अपने लहू से देश को सींचा है,देश उनके प्रति कृतज्ञ है . पर व्यक्तिगत शौर्य,कुर्बानी को एक व्यापक राजनैतिक विचार बनाने का कार्य गांधी ने किया. गांधी के साथ अनेक नेता जुड़े और अलग हो गए जिसकी जितनी सोच थी,उस हद तक वो उतनी देर गांधी के साथ रहे और अलग अलग समय पर गांधी से अलग हो गए. पर गांधी भारत की बुनियाद गढ़ते रहे. वो बुनियाद है 'अंतिम व्यक्ति'. अंतिम व्यक्ति,हाशिये के व्यक्ति की ताक़त से गांधी ने अंग्रेजी साम्राज्य ढहा दिया और अहिंसा और सत्य को राजनीति के मूल में प्रस्थापित किया. गांधी के पहले अहिंसा धर्म तक सीमित थी गांधी ने उसे राजनैतिक क्रांति का आधार बना दिया.
गांधी के समय में या उनसे पहले दुनिया में अलग अलग देश अपनी अपनी धारणाओं से मुक्ति की लड़ाई लड़ रहे थे पर उन सबका आधार था 'शस्त्र' विद्रोह चाहे फ्रांसीसी विद्रोह हो या रूस का विद्रोह यह सब हिंसा के ज़ोर पर हुए पर भारत 'अहिंसा' की शक्ति से आज़ाद हुआ. इसलिए गांधी ने दुनिया की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया. गांधी की विरासत को नेहरु और आम्बेडकर ने आगे बढ़ाया और संविधान सम्मत भारत का निर्माण किया.
मनु वंशजों ने जिन्ना के साथ मिलकर देश को धर्म के नाम पर बाँट दिया. गांधी की बात को अस्वीकार करते हुए अंग्रेजों ने भारत की आत्मा पर आघात करते हुए भारत के टुकड़े कर दिए. उन टुकड़ों को गांधी अपनी अंतिम सांस तक जोड़ने में लगे रहे. गांधी कामयाब भी हो जाते पर गाँधी ने मनुस्मृति को खारिज़ कर लोकतान्त्रिक गणतन्त्र बनाने के लिए संविधान लिखने की पेशकश की और अभी को वोट का अधिकार और समानता को अधिकार देने की बात कही तो मनु वंशजो को सहन नहीं हुआ और गांधी की हत्या कर दी. विभाजन की विभीषिका से उभारते हुए नेहरु ने सार्वभौमिक गणराज्य दुनिया के सामने खड़ा किया. जिसे उखाड़ने के लिए मनु वंशज हर समय षड्यंत्र में लगे रहते हैं. कांग्रेस के अन्दर के मनमुटाव को चुगलखोरी किस्म के षड्यन्त्रो से भुनाते हैं जैसे सरदार पटेल प्रधानमन्त्री होते तो,सुभाष चन्द्र बोस और नेहरु में रंजिश, गांधी और आम्बेडकर के मतभेद आदि आदि ..जबकि सच ठीक इसके उलटा है सरदार पटेल ने मनुवादी विकारी संघ पर बैन लगाया था. सुभाष ने खारिज़ किया था ..आंबेडकर ने तो हिन्दू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म अपनाया था.
संविधान सम्मत भारत का मतलब है वर्णवाद को खारिज़ कर, धर्म को शासन के केंद्र से हटा विधिसम्मत शासन की स्थापना. यही वो मूल है,यही वो शूल है जो मनु वंशजों को चुभ रही है .मनु के वंशज अलग अलग रूप में ईश्वर,धर्म का नाम लेकर संविधान को मिटाना चाहते हैं. मनु वंशज विभिन्न प्रकार के चुगलखोरी किस्म के षड्यंत्रों को प्रचारित करते रहते हैं और थोड़े समय के प्रभावी भी हो जाते हैं लेकिन 2014 में पूर्ण बहुमत से मनु वंशज भारत की गद्दी पर काबिज़ होने में कामयाब हुए और आज तक विराजमान हैं. इन 7-8 सालों में इन्होने धर्म को चुनावी मुद्दा बनाने में सफ़लता पाई,अंध विश्वास और पाखंड को बढ़ावा दिया और सर्वधर्म समभाव को तहस नहस कर दिया. प्रधानमंत्री के पद को हर रोज़ कलंकित करने वाले मोदी जी ने पूरे देश को पाषाण युग में धकेल दिया. पर मनु वंशज जनता की आकांक्षा पूरी नहीं कर पाए. 50 लाख से 1 करोड़ भारतवासियों की हत्या करने के बावजूद यह वर्णवाद की बुनियाद वाले हिन्दू राष्ट्र का सपना पूरा नहीं कर पाए क्योंकि अपने राज में इन्होंने देश को कंगाल बना दिया . देश की सारी सम्पति को बेच दिया. बेरोजगारों की फ़ौज पैदा कर उन्हें दाने दाने के लिए मोहताज़ कर दिया. इसलिए 3 करोड़ विकारी संघ,10 करोड़ उसके चाहने वालों और गोदी मीडिया के अलावा पूरा भारत इनके खिलाफ खड़ा हो रहा है.
सही है कांग्रेस के पाप से जन्में मोदी का अंत भी कांग्रेस ही कर रही है. 1975 तक आते आते कांग्रेस सत्ता की कालिख में समाने लगी थी. गांधी के विचार,नेहरु की सर्वसहभागिता किनारे कर दी गई थी. प्रधानमन्त्री बनने की इच्छा बूढ़े हो रहे कांग्रेसियों में अंगडाई ले रही थी. प्रधानमन्त्री बनने की इच्छा ने बूढ़े कांग्रेसियों को इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचने के लिए लामबद्ध कर दिया. नतीजा इंदिरा ने तानाशाह वाला रास्ता अपनाया. कांग्रेस पर अपना एकाधिकारवाद और देश पर इमरजेंसी थोप दी. इंदिरा विरोधी सत्ता पर बैठ गए पर उनकी तो इच्छा सिर्फ़ प्रधानमन्त्री बनने तक थी इसलिए गद्दी पर बैठेते ही निपट गए.
हालाँकि इंदिरा ने अपनी इमरजेंसी वाली भूल को सुधारा और जनता ने उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनाया पर अपनी देशभक्ति के लिए उन्हें अपनी जान देनी पड़ी. मनमोहन सिंह ने नेहरु की जड़ें खोद दी और भूमंडलीकरण की गोद में बैठकर एक ऐसा अमीर वर्ग तैयार किया जिसने अंततः मनमोहनसिंह के साथ साथ कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. मनु,गोडसे और सावरकर वंशजों ने देश की सत्ता पर कब्ज़ा किया. कांग्रेस मुक्त भारत का आन्दोलन चलाया. चुनाव को जुमलों की जागीर बनाकर देश को फिर से सांप और सपेरों का देश बना जग हंसाई करवा दी. मीडिया सरकार की बजाय विपक्ष यानी कांग्रेस से सवाल पूछने लगा. 70 साल में क्या हुआ यह मनु वंशजों का सत्ता सूत्र बना. पर ये ख़ाली ढोल बजते रहे जनता और देश की हालत दरकती गई. अमीर मध्यम वर्ग को अपनी जान बचाने के लिए एक एक सांस के लिए दर – बदर भटकना पड़ा. बैंकों में जमा पूंजी लुट गई. करोड़ों रुपये बैंक में होते हुए माँ बाप के कफ़न के लिए भीख मांगनी पड़ी. मजदूरों को पलायन करना पड़ा.करोड़ों मजदूरों ने पैदल चार कर देश के हाईवे को लहूलुहान कर दिया. मंझले उधोगधंदे बंद हो गए ...भय भ्रम और भुखमरी ने देश को घेर लिया. सुई से लेकर परमाणु बम बनाने वाली कांग्रेस को देशद्रोही बताने वाले मनुवादियों के खेल को जनता समझ रही है. देश की सारी सम्पति बेचने वाली मोदी सरकार को जनता समझ रही है. हर रोज़ भारत की जमीन हड़पने वाले चीन से डरते मोदी को जनता भांप गई है.
पर कांग्रेस के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने सभी साज़िशों और व्यक्तिगत हमलों को दरकिनार कर भारत के राजनैतिक परिदृश्य को बदल दिया. धर्म की सत्ता नहीं संविधान की सत्ता ही भारत का भविष्य है इस बात को स्वीकार कर मोदी के विध्वंश काल में बर्बाद हुए और हो रहे देश को गांधी,नेहरु और आम्बेडकर के राह पर मोड़ने के लिए कांग्रेस को तैयार कर दिया है. धीरे धीरे जनता समझ रही है.
फ़ौरी चुनावी हार जीत को खारिज़ करते हुए मनुवादियों द्वारा नफ़रत और हिंसा वाले चुनावी एजेंडा को दरकिनार कर देश में प्रेम,सौहार्द और भाईचारे को चुनावी एजेंडा बनाने में कांग्रेस कामयाब हो रही है इसका ताज़ा उदाहरण है पांच राज्यों का चुनाव. प्रधानमन्त्री, भारत सरकार, विकारी संघ और विघटनकारी परिवार और पार्टी की ताक़त के बावजूद हिन्दू –मुस्लिम धुर्वीकरण चुनावी एजेंडा नहीं बन पाया. गंगा में बहती हुई लाशें जीवित होकर इनके पीछे पड़ गई हैं . कब्रिस्तान और श्मशान बना भारत अब वर्णवादी शोषण के चक्रव्यूह वाले हिन्दू राष्ट्र को नकार चुका है. जिस पर जनता चुनाव में अपनी मुहर लगा कर साबित करेगी !