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UP Election 2022: अखिलेश और शिवपाल के साथ आने से 60 से 70 सीटों पर मजबूत हुई सपा, BJP की घबराहट का असली कारण ये है!
Uttar Pradesh News : जिसे चलना सिखाया, वहीं हमें रौंदता चला गया, अखिलेश यादव पर शिवपाल का बड़ा हमला
लखनऊ से लक्ष्मी नारायण शर्मा की रिपोर्ट
UP Election 2022: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव की मुलाकात और दोनों दलों के बीच गठबंधन की बात तय होना उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के लिहाज से एक महत्वपूर्ण घटना है। बावजूद इसके इस बात पर भी सबकी नजर रहेगी कि ये दोनों दल गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरते हैं या फिर दोनों दलों का विलय होगा और एक ही पार्टी के नाम और सिंबल पर चुनावी मैदान में उतरेंगे। आने वाले दिनों में दोनों पार्टियों के बीच का सम्बंध चाहे जिस रूप में सामने आए लेकिन फिलहाल तो दिसम्बर महीने के दूसरे पखवाड़े की चाचा-भतीजे की इस मुलाकात ने उत्तर प्रदेश में सियासी वातावरण की गर्मी बढ़ा दी है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 से ठीक पहले जिस तरह चाचा-भतीजे के बीच का अंतर्कलह उभरकर सामने आया था, उसने समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। इस कलह के बाद पूरा परिवार दो धड़ों में बंट गया था और पार्टी संगठन भी सीधे-सीधे दो गुटों में बंटा दिखाई देने लगा था। सपा मुखिया अखिलेश यादव तब इस सम्भावित नुकसान का आंकलन कर सकने में नाकाम रहे थे और इस कारण कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। समाजवादी पार्टी की न सिर्फ हार हुई थी बल्कि वह बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई थी। शिवपाल यादव की नाराजगी सपा की इस दुर्दशा का एक बड़ा कारण साबित हुई थी।
दरअसल 2012 में जब उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव को चेहरा बनाकर मैदान में उतारा तो उस समय शिवपाल यादव संगठन को मजबूत करने में जुटे थे। अखिलेश यादव की सक्रियता के पूर्व समाजवादी पार्टी में संगठन को लेकर सबसे अधिक सक्रियता शिवपाल यादव की रही है। संगठन में तालमेल बिठाना, असंतुष्ट नेताओं में संतुलन साधना और सत्ताधारी दल के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर सकने जैसे कामों को उन्होंने बखूबी अंजाम दिया और वे हर काम में मुलायम सिंह यादव के बेहद भरोसेमंद साबित हुए। संगठन में उनकी पकड़ बेहद मजबूत रही है और शायद इसी कारण 2017 में उन्होंने भतीजे अखिलेश यादव को खुली चुनौती दे डाली थी।
यह बात सच है कि शिवपाल यादव चुनावी मैदान में अपने दम पर बहुत कुछ हासिल कर पाने में सफल साबित नहीं हुए लेकिन सपा के असंतुष्ट धड़ों को विवाद के बाद खुलकर बगावत करने का मौका मिला और सबने सपा के घोषित प्रत्याशियों को हराने में अपनी भूमिका निभाई। शिवपाल के संगठन में रहने के दौरान असंतुष्ट धड़े आमतौर पर पार्टी के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा सके जबकि अखिलेश-शिवपाल विवाद के बाद क्षत्रपों के आपसी झगड़े खुलकर सामने आए और विधानसभा चुनाव 2017 में इसका भी खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा था। शिवपाल यादव के समर्थक अपना समीकरण तो बना सकने में सफल नहीं हुए लेकिन बहुत सारी सीटों पर उन्होंने सपा की हवा खराब करने में अपनी भूमिका जरूर निभाई।
शिवपाल यादव की पार्टी को खुद भले ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव में खास वोट न मिले हों लेकिन अपने सजातीय वोट बैंक में उनकी खासी घुसपैठ है और वे व्यक्तिगत प्रभाव से उन वोटों को शिफ्ट करने की क्षमता रखते हैं। कई महत्वपूर्ण सीटों पर सपा नेताओं की हार में उन्होंने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।इसके अलावा सहकारी संगठनों में अभी भी शिवपाल यादव की बेहद मजबूत पकड़ है और यही कारण है कि उनके प्रभाव की अनदेखी सम्भव नहीं है। प्रदेश की 60 से 70 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर शिवपाल यादव का प्रभाव है और वे उन पर समाजवादी पार्टी को लाभ की स्थिति में ला सकते हैं।
लंबे समय तक काम करने के कारण शिवपाल यादव की समाजवादी पार्टी संगठन में हर जिले और कस्बे तक मजबूत पकड़ रही है। उनकी अपनी वर्तमान पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में भी ज्यादातर चेहरे वही हैं जो समाजवादी पार्टी में हुआ करते थे। शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के एक साथ आने के बाद उम्मीद करनी चाहिए कि परिवार के भीतर चल रहा अंतर्कलह दूर होगा और समाजवादी पार्टी के संगठन में चल रहा विरोधाभास भी खत्म होगा। इन सबके बावजूद सपा और प्रसपा दोनों संगठनों की स्वतंत्र और अलग-अलग मौजूदगी से उस तरह की एकजुटता प्रदर्शित नहीं होगी, जैसा एक ही संगठन और एक ही सिंबल पर चुनाव लड़ने से हो सकती है।
यह जानकारी भी सामने आ रही है कि दोनों दलों के विलय को लेकर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में बातचीत हुई है। चुनावी माहौल में बहुत सारे पत्ते वैसे भी समय के साथ खोले जाते हैं। सम्भव है कि आने वाले दिनों में चाचा-भतीजा एक ही बैनर के तले चुनाव के मैदान में खड़े होकर भाजपा को चुनौती देते नजर आएं। फिलहाल तो अखिलेश और शिवपाल की संयुक्त तस्वीरों ने उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में एक नई सुगबुगाहट जरूर पैदा कर दी है और कुनबे की कलह के खत्म होने का भी एक साफ रास्ता दिखाई दे रहा है। यदि ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में भाजपा को मजबूत चुनौती देने की सपा की रणनीति और मजबूत होती दिखाई देगी।