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Up Election 2022

सपा में शामिल हुए पूर्वांचल के 3 बड़े ब्राह्मण नेता, योगी के लिए अपने ही गढ़ में 2017 की सीटें बचानी होंगी मुश्किल

Janjwar Desk
18 Dec 2021 5:22 PM GMT
पूर्वांचल की राजनीति में हलचलः मठ के बर्चस्व के सामने चुनौती बना हाता का समाजवादी कुनबा
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पूर्वांचल की राजनीति में हलचलः "मठ" के "बर्चस्व" के सामने चुनौती बना "हाता" का समाजवादी कुनबा

UP Election 2022: गोरखनाथ मठ जहां लंबे समय से भगवा राजनीति के पैरोकार के रूप में स्थापित है,वहीं ब्राम्हण राजनीति के पूर्वांचल का प्रमुख चेहरा रहे हरिशंकर तिवारी के कुनबे का अखिलेश यादव की पार्टी में शामिल हो जाने के से एक बार फिर दो धू्रवीय गोलबंदी तेज हो गई है।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

UP Election 2022: यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पैंतरेबाजी का खेल शुरू हो गया है। पूर्वांचल की राजनीति भी नई करवट लेते दिख रही है। गोरखनाथ मठ जहां लंबे समय से भगवा राजनीति के पैरोकार के रूप में स्थापित है,वहीं ब्राम्हण राजनीति के पूर्वांचल का प्रमुख चेहरा रहे हरिशंकर तिवारी के कुनबे का अखिलेश यादव की पार्टी में शामिल हो जाने के से एक बार फिर दो धू्रवीय गोलबंदी तेज हो गई है। सत्तर और अस्सी के दशक में जिस पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का टकराव चलता रहा,वह समय के साथ भले ही खत्म हो गया,पर एक राजनीतिक धूरी के रूप में गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी के हाते की पहचान अब भी कायम है। इनके बेटों व रिश्तेदार का समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेने से राजनीतिक तस्वीर बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता।

ऐसा कहा जाते रहा है कि पूर्वांचल की सीटों पर कब्जा से ही यूपी की हुकूमत तय होती है। मौजूदा समय मेें इसकी अधिकांश सीटों पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन बदली परिस्थितियों में क्या भाजपा का किला ध्वस्त हो जाएगा,यह सवाल हर किसी के जेहन में गुंजने लगा है। नए हालात तक पैदा हुए जब बसपा से निष्कासित पूर्व सांसद भीष्मशंकर उर्फ कुशल तिवारी अपने भाई विधायक विनय शंकर तिवारी के साथ सपा में शामिल हो गए। ये दोनों गोरखपुर के कददावर नेता हरिशंकर तिवारी के पुत्र हैं। इनके साथ ही विधान परिषद के पूर्व सभापति व तिवारी परिवार के रिश्तेदार गणेश शंकर पाण्डे ने भी सपा की लाल टोपी पहन ली। इसके इन्हीं के साथ लंबे समय से नाराज चल रहे दिग्गज भाजपाई एवं खलीलाबाद सदर के विधायक दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे ने भी भाजपा को अलविदा कह दिया। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में उन्होंने समर्थकों के साथ सपा का दामन थाम लिया। विधान सभा चुनाव से पूर्व दोनों दिग्गज नेताओं के सपा में शामिल होने से भाजपा व बसपा को करारा झटका लगा है। खलीलाबाद सदर के विधायक दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे की राजनीतिक हैसियत का आकलन ऐसे लगाया जा सकता है कि वे अपने करीबी बलराम यादव को सपा में शामिल कराते हुए न सिर्फ जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया, बल्कि सत्तारूढ भाजपा की तमाम कोशिशों के बाद भी यह साबित कर दिया था कि जिले की राजनीति में उनकी मजबूत पकड है। बलराम यादव के जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि देर-सबेर दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे पाला बदलेंगे। जो आखिरकार सच साबित हुआ।

पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का रहा है टकराव

पूर्वांचल के अतित के पन्नों को खंगालने पर देखें तो सत्तर और अस्सी के दशक में पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का जो टकराव हुआ था उसमें एक तरफ थे हरिशंकर तिवारी तो दूसरी तरफ रवींद्र सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही। रवींद्र सिंह जो विधायक भी बने इसी टकराव में मार दिए गए। वीरेंद्र प्रताप शाही भी बाद में एक माफिया का निशाना बने और लखनऊ में उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद हरिशंकर तिवारी को कोई चुनौती भी नहीं मिली। वे राजनीति में आ गए और विधायक बन गए। वह पहला चुनाव 1985 में जेल में रहते हुए गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट से जीते थे। इस सीट से वह छह बार विधायक चुने गए और मंत्री भी बने। इस दौरान वह सपा, बसपा, बीजेपी और कांग्रेस में भी रहे।

बाद के दिनों में देखें तो हरिशंकर तिवारी और योगी आदित्यनाथ का टकराव भी पुराना है और उसके तार भी पूर्वांचल के ठाकुर बनाम ब्राह्मण टकराव से ही जुड़े हैं। गोरखनाथ मठ को राजपूतों की सत्ता के केंद्र के रूप में भी देखा जाता है तो हरिशंकर तिवारी के धर्मशाला बाजार स्थित घर जिसे हाता कहा जाता है उसे ब्राह्मणों के सत्ता के केंद्र के रूप में। हरिशंकर तिवारी का कहना रहा है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ लगातार बदले की भावना से काम कर रहे हैं। सत्ता में आते ही हाता पर छापा डलवा दिया। वे ब्राह्मण विरोधी हैं। वर्ष 2019 के आम चुनाव के पूर्व हुए गोरखपुर के उप चुनाव में हरिशंकर तिवारी ने समाजवादी पार्टी की खुलकर मदद की और योगी के गढ़ में बीजेपी लोकसभा का उप चुनाव हार गई थी। यह एक उदाहरण है हरिशंकर तिवारी का ब्राह्मण बिरादरी पर असर का। अब हरिशंकर तिवारी की उम्र हो गई है वे राजनीति में सक्रिय नहीं रहते पर उनके पुत्र और भतीजे का भी असर है। दरअसल, तिवारी परिवार के समाजवादी होने के साथ ही अखिलेश यादव को एक ब्राह्मण चेहरा पूर्वांचल में मिल गया है। यह बात अलग है कि बृज भूषण तिवारी, जनेश्वर मिश्र से लेकर माता प्रसाद पांडेय जैसे खाँटी समाजवादी नेता देने वाली समाजवादी पार्टी को अब हरिशंकर तिवारी का साथ लेना पड़ रहा है। हालाँकि अब न तो वे बाहुबली माने जाते हैं और न ही अपराध की दुनिया से वर्षों से कोई नाता रहा है।

पुत्र विनय शंकर तिवारी लखनऊ विश्वविद्यालय से ही छात्र राजनीति से जुड़े रहे हैं। ऐसे में इस परिवार को भी समाजवादी पहचान का फायदा मिलेगा और अखिलेश यादव को ब्राह्मण चेहरा भी मिल गया है। पूर्वांचल में इसका असर पड़ना तय है। दूसरी तरफ पूर्वांचल में यह योगी के लिए भी बड़ा झटका है और मायावती के लिए भी। मायावती के पास अब पूर्वांचल में कोई बड़ा कद्दावर नेता नहीं बचा। उन्होंने जय श्रीराम का नारा लगा कर सामाजिक न्याय की ताकतों को तो झटका दिया ही था अब ब्राह्मण भी बसपा को आसानी से वोट नहीं करेगा। खासकर पूर्वांचल में जहाँ हरिशंकर तिवारी के परिवार का दबदबा है।

इस अंचल में कोई और ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी के विरोध का प्रयास नहीं कर सकता। दरअसल, हरिशंकर तिवारी का दबदबा सिर्फ राजनीति में ही नहीं है, बल्कि नौकरशाही में भी है। बड़े बड़े अफसर उनके यहाँ हाजिरी लगाते हैं। इसलिए पूर्वांचल की राजनीति में अब बड़े बदलाव की संभावना लोग देख रहे हैं।

हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ

यह अंचल देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व की नर्सरी भी माना जाता है। इसका असर करीब दर्जन भर जिलों पर पड़ता है। देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीर नगर से मऊ और आजमगढ़ तक। योगी के विरोधियों का कहना है कि वे राजपूत पहले होते हैं और हिंदू बाद में। यह पूर्वांचल के ठाकुर तो मानते ही हैं बाकी कोई माने या न माने। वैसे, इसकी पुष्टि करनी हो तो सत्ता के सबसे निचले स्तर पर ध्यान दें। सोशल मीडिया पर ही प्रदेश के विभिन्न जिलों में दरोगा से लेकर पुलिस अफसर एक खास बिरादरी के मिल जाएंगे। पर इसका दोष सिर्फ योगी को देना भी ठीक नहीं होगा। मुलायम सिंह सत्ता में आए तो ज्यादातर थानों पर यादव दरोगा काबिज हो गए थे। फिर बसपा के राज में भी एक खास बिरादरी को प्राथमिकता मिली थी। योगी भी तो वही कर रहे हैं जो रास्ता इन नेताओं ने बनाया था। खैर मुद्दा तो ब्राह्मण है और खासकर पूर्वांचल का ब्राह्मण।

पूर्वांचल में जिसे मिली जीत उसकी बनी सत्ता

2017 विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल और आसपास के जिलों की कुल 164 सीटों में से बीजेपी को 115 पर फतह मिली थी। सपा को 17, बीएसपी को 14 और कांग्रेस को मात्र 2 सीटें मिली थीं। इसी तरह 2012 चुनाव में सपा को इस क्षेत्र में 102 सीटें, बीजेपी को 17, बीएसपी को 22 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं। 2007 में जब मायावती यूपी में पूर्ण बहुमत के साथ आईं तो पूर्वांचल में उनकी पार्टी 85 सीटें जीतने में कामयाब रही। सपा को 48, बीजेपी को 13, कांग्रेस को 9 और अन्य को 4 सीटें मिली थीं। पूर्वांचल की बात कर रहे हैं तो यह संज्ञान हो कि इसमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, गोरखपुर, कुशीनगर, सोनभद्र, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी और अंबेडकरनगर समेत 28 जिले आते है।

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