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विमर्श

25 करोड़ महिलायें होती हैं अपने नजदीकियों द्वारा ही घरेलू और यौन हिंसा का शिकार, महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता सिर्फ छलावा

Janjwar Desk
12 Sept 2023 1:44 PM IST
Violence Against Women: महिलाओं के खिलाफ हिंसा में साम्प्रदायिकता का तड़का
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Violence Against Women: महिलाओं के खिलाफ हिंसा में साम्प्रदायिकता का तड़का

जेंडर गैप इंडेक्स में भारत कुल 146 देशों की सूची में 127वें स्थान पर है। इस इंडेक्स के अनुसार वैश्विक स्तर पर लैंगिक असमानता का औसत स्तर 68.4 प्रतिशत है, और भारत में यह इस स्तर से भी नीचे, 64.3 प्रतिशत है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

A new report by UN Women tells that due to lackluster commitments by the governments, we are backsliding in respect of gender equality and women empowerment. यूएन वीमेन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता से सम्बंधित सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने से बहुत दूर है, और इस सम्बन्ध में तमाम सरकारों का रवैय्या पूरी तरह से लचर और दिशाहीन है। लैंगिक समानता के लिए दुनिया को अभी के खर्च के मुकाबले प्रति वर्ष 360 अरब डॉलर अधिक खर्च करने की जरूरत है। सतत विकास लक्ष्य पर वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश राजी हुए थे और इन लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक पूरा करना है। इन लक्ष्यों की संख्या 17 है, जिनमें लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण भी एक विषय है।

लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में सबसे बड़ी बाधाएं हैं – महिलाओं के प्रति समाज का पूर्वाग्रह, महिलाओं को प्रजनन और लैंगिक अधिकारों से वंचित रखना, असमान राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक असमानता और महिलाओं के कानूनी अधिकारों का सीमित होना। यूएन वीमेन ने महिलाओं से सम्बंधित 120 देशों के कानूनों का विस्तृत विश्लेषण किया है। इनमें से 67 देशों में महिलाओं से भेदभाव से सम्बंधित कोई भी क़ानून नहीं है, 28 देशों में महिलाओं को शादी और तलाक में बराबरी के अधिकार का कोई क़ानून नहीं है और महज 41 देश ऐसे हैं जहां महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता सतत विकास लक्ष्य के आसपास है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 90 प्रतिशत आबादी महिलाओं को पूर्वाग्रह के नजरिये से देखती है, और आबादी का यह प्रतिशत पिछले दशक से बिल्कुल नहीं बदला है। इस रिपोर्ट के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक आबादी राजनीति में पुरुषों को महिलाओं से बेहतर मानती है, 40 प्रतिशत आबादी वाणिज्य और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पुरुषों को बेहतर समझती है और 25 प्रतिशत से अधिक आबादी पतियों द्वारा पत्नियों पर हिंसा को पतियों का अधिकार समझती है। लैंगिक समानता के सन्दर्भ में वैश्विक स्तर पर पे-गैप 39 प्रतिशत है।

दुनिया में 20 प्रतिशत से अधिक बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम में ही हो जाती है, गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर में वर्ष 2015 के बाद से कोई कमी नहीं आई है, महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं, लगभग 25 करोड़ महिलायें अपने नजदीकियों द्वारा ही घरेलू और यौन हिंसा का शिकार हो रही हैं। पूरी दुनिया में जितने संसद सदस्य हैं उनमें से महज 26.7 प्रतिशत ही महिलायें हैं। यदि लैंगिक समानता के सन्दर्भ में दुनियाभर में ऐसे ही उदासीन रवैया रहा तो वर्ष 2050 तक भी उच्च पदों पर केवल 30 प्रतिशत ही महिलायें पहुँच पाएंगी और महिलायें पुरुषों की अपेक्षा 2.3 घंटे अधिक घरेलू गैर-वैतनिक कार्यों में संलग्न रहेंगी।

महिलाओं की इस स्थिति के बीच बड़े तामझाम और प्रचार के साथ जी20 शिखर सम्मलेन के न्यू ​दिल्ली घोषणापत्र में महिलाओं का मुद्दा शामिल किया गया है। पिछले वर्ष इंडोनेशिया से जी20 की अध्यक्षता लेते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत जी20 की अध्यक्षता के दौरान महिला-केद्रित विकास को प्राथमिकता देगा, पर घोषणापत्र में महिलाओं के लिए कुछ नया नहीं है, वही बातें दुहराई गयी हैं, जो पिछले कई वर्षों से बताई जा रही हैं।

जी20 घोषणापत्र के अनुसार, “हम लैंगिक असमानता को कम करने, अर्थव्यवस्था में महिलाओं की नीति-निर्धारक और निर्णायक भूमिका के तौर पर पूर्ण, सामान और प्रभावी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में कहा गया है, “जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने, अनुकूल कदम उठाने तथा पर्यावरणीय मुद्दों पर आपदा जोखिम को कम करने की रणनीति और नीति-निर्धारण में महिलाओं की भागीदारी, साझेदारी, निर्णय लेने और नेतृत्व को प्रोत्साहित किया जाएगा।”

महिला समानता के मुद्दे पर जी20 सदस्य देशों की ही स्थिति बहुत खराब है। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित जेंडर गैप इंडेक्स 2023 में 146 देशों का आकलन लैंगिक समानता के आधार पर किया गया है। जिन देशों में लैंगिक समानता अधिक है, वे देश इंडेक्स में आगे हैं, और जहां यह समानता कम है वे देश इंडेक्स में पीछे हैं। जी20 में 19 देशों के साथ परम्परागत तौर पर यूरोपियन यूनियन भी है, और अब अफ्रीकन ब्लॉक इससे जुड़ गया है। इन 19 देशों में से केवल एक देश, जर्मनी, इंडेक्स में 1 से 10 स्थान के बीच है, 8 देश 11 से 50वें स्थान के बीच हैं, 4 देश 51 से 100वें स्थान के बीच हैं और भारत समेत – चीन, जापान, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब और तुर्किये - 6 देश तो 101 से 146वें स्थान के बीच हैं। इस इंडेक्स से स्पष्ट है कि जी20 के अधिकतर देश स्वयं लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के सन्दर्भ में फिसड्डी हैं।

जेंडर गैप इंडेक्स में भारत कुल 146 देशों की सूची में 127वें स्थान पर है। इस इंडेक्स के अनुसार वैश्विक स्तर पर लैंगिक असमानता का औसत स्तर 68.4 प्रतिशत है, और भारत में यह इस स्तर से भी नीचे, 64.3 प्रतिशत है। अर्थव्यवस्था में भागीदारी के सन्दर्भ में वैश्विक औसत 60.1 प्रतिशत है, पर भारत में यह संख्या इससे भी लगभग आधी, 36.7 प्रतिशत, है। इस रिपोर्ट के अनुसार यदि लैंगिक समानता इसी ढंग से आगे बढ़ती है तो अर्थव्यवस्था में भागीदारी के सन्दर्भ में इस अंतर को कम करने में 169 वर्ष और लगेंगे। वैश्विक स्तर पर 26.7 प्रतिशत सांसद महिलायें हैं, पर भारत में इनकी संख्या महज 15.1 प्रतिशत है। राजनीतिक भागीदारी के सन्दर्भ में हमारे देश में लैंगिक समानता महज 26.3 प्रतिशत ही है।

आर्थिक समानता के सन्दर्भ में 76.3 प्रतिशत के साथ यूरोप सबसे आगे है, इसके बाद आर्थिक समानता उत्तरी अमेरिका में 75 प्रतिशत, दक्षिणी अमेरिका में 74.3 प्रतिशत, यूरेशिया और मध्य एशिया में 69 प्रतिशत, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 68.8 प्रतिशत, सहारा अफ्रीका में 68.2 प्रतिशत, दक्षिण एशिया में 63.4 प्रतिशत और मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 62.6 प्रतिशत है।

दरअसल यदि आप विश्लेषण करें तो देखेंगे कि दुनिया में लैंगिक असमानता, आर्थिक असमानता, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, तमाम देशों में राजनैतिक और सामाजिक अस्थिरता, गरीबी, प्रजातंत्र का विनाश, हथियारों की होड़, प्राकृतिक संसाधनों का विनाश जैसी अधिकतर समस्यायें जी20 देशों के कारण ही पनप रही हैं पर दुखद तथ्य यह है कि इन्हीं समस्याओं को सुलझाने का नेतृत्व भी यही देश संभाल रहे हैं। लैंगिक असमानता की बात आते ही बस अफ़ग़ानिस्तान का जिक्र आता है, जबकि अमेरिका, दक्षिण कोरिया, कई यूरोपीय देश और एशियाई देशों में भी इस सन्दर्भ में स्थिति संभलने के बदले बदतर होती जा रही है।

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