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विमर्श

यदि चार गधे शांति से एक जगह घास चर रहे हों, तब भी तानाशाह को लगता है कि कहीं उसके विरुद्ध कोई षड्यंत्र तो नहीं रच रहे हैं

Janjwar Desk
15 Jan 2022 10:44 AM GMT
यदि चार गधे शांति से एक जगह घास चर रहे हों, तब भी तानाशाह को लगता है कि कहीं उसके विरुद्ध कोई षड्यंत्र तो नहीं रच रहे हैं
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पूरी दुनिया में बढ़ता जा रहा है पूंजीवाद का वर्चस्व —राजनीतिक दल और मीडिया पूरी तरह पूंजीपतियों पर निर्भर 

Authoritarian Government: पिछले वर्ष दुनियाभर में शासक कोविड 19 का खौफ दिखाते रहे और जनता अपने अधिकारों के लिए या फिर सत्ता के विरोध में सडकों पर उतरती रही| कुछ ऐसे देशों में भी मानवाधिकारों के या प्रजातंत्र के समर्थक बड़ी संख्या में बार-बार आन्दोलन करते रहे जहां आन्दोलनकारियों को मालूम था कि उनकी जान भी जा सकती है|

महेंद्र पाण्डेय की टिपण्णी

Authoritarian Government: पिछले वर्ष दुनियाभर में शासक कोविड 19 का खौफ दिखाते रहे और जनता अपने अधिकारों के लिए या फिर सत्ता के विरोध में सडकों पर उतरती रही| कुछ ऐसे देशों में भी मानवाधिकारों के या प्रजातंत्र के समर्थक बड़ी संख्या में बार-बार आन्दोलन करते रहे जहां आन्दोलनकारियों को मालूम था कि उनकी जान भी जा सकती है| कई देशों में बड़ी संख्या में आन्दोलनकारी मारे गए, या जेलों में ठूंस दिए गए पर आन्दोलनों का सिलसिला थमा नहीं| दरअसल दुनिया में निरंकुश शासकों की संख्या में बेतहाशा बृद्धि हुई है और निरंकुश शासक अपने विरुद्ध उठती आवाज या आन्दोलन बर्दाश्त नहीं कर सकते और इसका किसी भी कीमत पर दमन करना चाहते हैं और बेख़ौफ़ होकर कर भी रहे हैं| आज की दुनिया में बाजार और पूंजीवाद सबसे बड़ी ताकत है, यदि आपके पास बड़ा बाजार और तथाकथित उदार अर्थव्यवस्था का निहायत ही विकृत स्वरुप है तो फिर आपके यहाँ मानवाधिकार हनन पर कोई ध्यान नहीं देगा| उदाहरण स्पष्ट है – भारत में मानवाधिकार हनन अनेक मामलों में चीन से अधिक किया जाता है, पर इनपर अमेरिका और यूरोपीय देश आँखें बंद किये बैठे रहते हैं, जबकि चीन को ऐसे ही मुद्दों पर लगातार कोसा जाता है|

निरंकुश शासन द्वारा जनता का दमन और जनता पर हिंसा उनके बहादुर होने की नहीं बल्कि सत्ता छिनने के डर की निशानी है – यह ह्यूमन राइट्स वाच नामक संस्था द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड रिपोर्ट 2022 (World Report 2022 by Human Rights Watch) में कहा गया है| जनता के मानवाधिकार का कठोरता से दमन निरंकुश शासकों के डर और मानसिक कमजोरी की निशानी है| इसे आप हरिशंकर पारसाई के शब्दों से आसानी से समझ सकते हैं, उन्होंने लिखा था – यदि चार गधे शांति से एक जगह घास चर रहे हों, तब भी तानाशाह को लगता है कि कहीं उसके विरुद्ध कोई षड्यंत्र तो नहीं रच रहे हैं|

भले ही फ्लाईओवर पर टंगे रहने की प्रधानमंत्री जी की सोची समझी साजिश हो, सहानुभूति बटोरने का एक नया तमाशा हो, पर उनका यह प्रचारित करना कि अपने मुख्यमंत्री से कह देना कि मैं जिन्दा एयरपोर्ट पर पहुँच गया – मस्तिष्क के अन्दर गहरे में बैठे डर का ही परिचय देता है| ऐसे वाक्य हमारे प्रधानमंत्री ने एक बार नहीं बल्कि बार-बार कहे हैं| कभी कहा, चौराहे पर खड़ा कर पीटना, कभी कहा – अपने ऑफिस में बुलाकर मुझे थप्पड़ मार देते| इस तरह के और भी बहुत से वाक्य हैं| आप कितने भी चालाक बनाने की कोशिश करें, पर आपकी भाषा मानसिक भय को उजागर कर ही देती है| काले झंडे का डर ही है, जिसके कारण प्रधानमंत्री की रैलियों में काले कपडे पहने श्रोताओं को प्रवेश नहीं मिलता है| यह डर ही है, जिसके चलते विरोध के स्वर को विरोध से पहले ही दबा दिया जाता है| डर के कारण ही हरेक आन्दोलनकारी देशद्रोही नजर आने लगता है, हिन्दुओं के ध्रुवीकरण की जरूरत पड़ती है, और टीका चन्दन लगाकर मंदिरों में परिक्रमा की जरूरत पड़ती है| लगातार और अत्यधिक डर एक गंभीर मानसिक बीमारी के लक्षण है, और इससे दुनिया के बहुत से शासक जूझ रहे हैं|

पिछले वर्ष दुनियाभर में प्रजातंत्र पर सरकारों द्वारा हमले किये गए हैं और इसका कारण सत्ता के छिन जाने का डर है| ह्यूमन राइट्स वाच के निदेशक केनेथ रोथ (Kenneth Roth) के अनुसार वर्ष 2021 की दुनिया को देखकर अधिकतर लोगों का कहना है कि दुनिया में निरंकुश शासकों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, प्रजातंत्र कमजोर पड़ता जा रहा है – पर, दुनियाभर में तमाम खतरों के बाद भी बढ़ते जन आन्दोलनों को देखकर यदि आप गंभीरता से सोचें तो पायेंगें कि प्रजातंत्र पहले से अधिक जीवंत हो गया है, दुनिया इसका महत्व समझ रही है और निरंकुश शासकों के लिए सबकुछ आसान नहीं है|

बहुत से देशों में निरंकुश सत्ता के विरुद्ध बिलकुल अलग विचारधारा वाले विपक्षी दलों ने आपस में तालमेल कर सत्ता को चुनौती दी है| इजराइल में पिछले 12 वर्षों से निरंकुश शासन चलाते बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netnyahu) का तख्ता पलट ऐसे ही विपक्षी दलों के गठबंधन ने किया है| चेक गणराज्य में भी लम्बे समय से प्रधानमंत्री अंद्रेज बबिस (Andreej Babis) को ऐसे ही गठबंधन ने सत्ता से दूर कर दिया| हंगरी में विक्टर ओर्बन (Viktor Orban) के खिलाफ और टर्की में रिकैप ताईप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) के विरुद्ध भी ऐसे ही गठबंधन तैयार हो रहे हैं|

रूस और निकारागुआ जैसे देशों में शासन करने वालों के सत्ता छिनने का डर ही है, जिसके चलते राष्ट्रपति संविधान बदल कर आजीवन राष्ट्रपति के पद पर बने रहने के ख़्वाब देख रहे हैं, पर तमाम दमन और पाबंदियों के बाद भी जनता आन्दोलन कर रही है और विरोध कर रही है| चीन, रूस, बेलारूस, टर्की, थाईलैंड, इजिप्ट, वेनेज़ुएला, निकारागुआ यूगांडा और पोलैंड में तानाशाही या निरंकुश शासन के बाद भी समय-समय पर आन्दोलन किये जा रहे हैं| म्यांमार, माली, गिनी और सूडान में सेना द्वारा सत्ता पर काबिज होने, तुनिशिया और चाड में असैवाधिनिक तरीके से सत्ता हथियाने और तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जे के बाद तमाम खतरों के बाद भी जनता ने आन्दोलन और विरोध-प्रदर्शन लगातार जारी रखा है| जनता अपनी आवाज तमाम खतरों के बाद भी ब्राज़ील, एलसाल्वाडोर, भारत, फिलीपींस में भी उठा रही है|

निरंकुश शासकों का सत्ता प्रेम इस कदर तक रहता है कि जनता की जिम्मेदारी उन्हें बोझ नजर आती है| ऐसे सभी देशों में सामाजिक असमानता, धार्मिक असमानता, गरीबी, बेरोजगारी के स्थिति भयावह है और इन्हीं देशों के कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के विरुद्ध लड़ाई कमजोर पड़ती जा रही है| इससे जनता की सहन शक्ति ख़त्म होती जा रही है और आन्दोलन बढ़ते जा रहे हैं| दूसरी तरफ, बड़े देशों के लिए भी मानवाधिकार बस भाषणों और दिखावे तक सीमित है| अमेरिका मानवाधिकार की खूब बातें करता है, पर सऊदी अरब, इजिप्ट और यूनाइटेड अरब एमिरात में शासकों द्वारा तमाम मानवाधिकार हनन के बाद भी इन्हें लगातार हथियार बेच रहा है| दूसरी तरफ यूरोपीय संघ के देश मानवाधिकार के सन्दर्भ में चीन की खूब आलोचना करते हैं, पर चीन के साथ नए व्यापार सम्बन्ध बढाते जा रहे हैं|

सत्ता छिनने का डर ही निरंकुशता को जन्म देता है, और यही डर हिंसक और क्रूर दमन के लिए प्रेरित करता है| हम अपने देश में यह लगातार देख रहे हैं| अब यह डर और गहराता जा रहा है – वर्ष 2014 से हरेक आन्दोलनों को बदनाम करने वाली और दमन करने वाली सरकार को किसानों के सामने झुकना पड़ा, और दूसरी तरफ पहली बार सत्ता में बैठे साथी विपक्ष में जाते हुए दिख रहे हैं| दुनिया में किसी देश में निरंकुश शासन हमेशा के लिए नहीं होता| हाँ, न्याय व्यवस्था, संवैधानिक संस्थाओं, मीडिया, संसद इत्यादि को अपने अधीन कर निरंकुश सत्ता अपना कार्यकाल कुछ समय के लिए बढ़ा सकती है, पर हमेशा के लिए नहीं|

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