‘ऐसी आजादी का क्या मतलब जिसमें हम भरपेट चावल भी नहीं खा सकें’ सवाल पूछना पड़ा भारी, बांग्लादेशी पत्रकार को 14 साल की जेल
शम्सुजमान शम्स ने बांग्लादेश के स्वाधीनता दिवस, 26 मार्च, को डिजिटल संस्करण में सामान्य लोगों से बात कर जनता के लिए आजादी का मतलब समझने का प्रयास किया था। इस लेख में एक 40 वर्षीय दिहाड़ी श्रमिक का वक्तव्य भी थी, जिसने कहा था कि “ऐसी आजादी का क्या मतलब है जिसमें हम भरपेट चावल भी नहीं खा सकें
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A reporter in Bangladesh has been imprisoned and denied bail due to a story on high cost of foodstuff. बांग्लादेश में एक बंगला दैनिक के पत्रकार, शम्सुजमान शम्स, को 14 वर्ष कैद की सजा सुनाई गयी है। उन्हें यह सजा तथाकथित झूठी खबर के लिए दी गयी है। शम्सुजमान शम्स ने बांग्लादेश के स्वाधीनता दिवस, 26 मार्च, को डिजिटल संस्करण में सामान्य लोगों से बात कर जनता के लिए आजादी का मतलब समझने का प्रयास किया था। इस लेख में एक 40 वर्षीय दिहाड़ी श्रमिक का वक्तव्य भी थी, जिसने कहा था कि “ऐसी आजादी का क्या मतलब है जिसमें हम भरपेट चावल भी नहीं खा सकें”। प्रकाशित लेख का शीर्षक भी यही वक्तव्य था।
लेख के ऑनलाइन होते ही इसे बहुत लोगों ने पढ़ा और सत्ता में बैठी अवामी लीग की शेख हसीना के कट्टर समर्थक इस लेख की आलोचना करने लगे। फेसबुक पर जब इस लेख को शेयर किया गया तब गलती से 40 वर्षीय दिहाड़ी श्रमिक, जाकिर, के नाम के साथ किसी बच्चे की फोटो प्रकाशित हो गयी। लगभग आधे घंटे बाद जब इस गलती के बारे में पता चला तब इस आर्टिकल में तस्वीर बदल दी गयी और गलती स्वीकारते हुए माफी का पत्र लगाया गया। पर, 29 मार्च को पुलिस ने शम्सुजमान शम्स को अरेस्ट कर लिया, और झूठी खबर लिखने का आरोप लगाया गया। इसके अदले दिन ढाका की अदालत ने उन्हें डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट के तहत दोषी साबित किया गया, और झूठी खबर लिखने के आरोप में 14 वर्षों के जेल की सजा सुनाते हुए बेल की अपील को खारिज कर दिया गया।
शम्सुजमान शम्स, बंगला देश के सर्वाधिक सर्कुलेशन बाले निष्पक्ष सम्पादकीय नीति वाले बंगला दैनिक समाचारपत्र, प्रथम आलो, में वरिष्ठ पत्रकार हैं। समाचारपत्र के मुख्य सम्पादक, मतिउर रहमानी, से भी डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट के तहत पूछताछ की जा रही है। शम्सुजमान शम्स के खिलाफ शिकायत मीरपुर के गोलम किब्रिया ने दर्ज करवाई थी, जो सत्तारूढ़ आवामी लीग के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं। बांग्लादेश में जब से डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट लागू किया गया है, तब से मानवाधिकार कार्यकर्ता और निष्पक्ष पत्रकार लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। वर्ष 2018 में लागू होने के बाद से ही डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट का उपयोग सत्ता केवल विरोध की आवाज दबाने के लिए कर रही है।
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में कुल 180 देशों की सूचि में 162वें स्थान पर है, जाहिर है प्रधानमंत्री शेख हसीना को पत्रकारों की निष्पक्षता पसंद नहीं है और वे विरोध के हर स्वर को कुचलने की पक्षधर हैं। बांग्लादेश न्यूज़पेपर्स ओनर्स एसोसिएशन और एडिटर परिषद् ने डिजिटल सिक्यूरिटी एक्ट को हटाने की और शम्सुजमान शम्स को तुरंत रिहा करने की मांग की है। मीडिया फ्रीडम कोएलिशन इन बांग्लादेश ने कहा है कि सरकार निष्पक्ष पत्रकारों की आवाज दबाने की लगातार कोशिश कर रही है – सर्वोच्च न्यायालय के चुनावों के दौरान पत्रकारों पर बड़े पैमाने पर हमले हुए थे, इसके बाद अलज़जीरा के एक पत्रकार को हिसासत में लिया गया, फिर एक फोटोजर्नलिस्ट पर हमाल किया गया और अब शम्सुजमान शम्स को जेल में डाला गया है। रिपोर्टर्स विथआउट बॉर्डर्स ने भी इस घटना की भर्त्सना की है और गिरफ्तार पत्रकार को तुरंत रिहा करने की मांग की है।
शम्सुजमान शम्स को भले ही महंगाई का सच उजागर करने के आरोप में जेल में डाला गया हो, पर सच्चाई यही है कि बांग्लादेश में महंगाई चरम पर है, और एक बड़ी आबादी को पता नहीं होता कि अगली बार पूरा भोजन कब नसीब होगा। खाद्य मुद्रास्फीति की दर लगभग 10 प्रतिशत है, आटा का मूल्य 70 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुका है, खाद्य तेल की कीमतों में 25 प्रतिशत, मछलियों की कीमत में 33 प्रतिशत, चीनी 45 प्रतिशत और दूध 40 प्रतिशत महंगा हो चुका है। पर, महंगाई हो या दूसरे कोई विषय जिससे सत्ता के नाकामियों की भनक मिलाती है, पर रिपोर्टिंग सत्ता की नजर में एक जघन्य अपराध बन चुका है।
पूरे एशिया में अब निष्पक्ष पत्रकारिता अब सबसे अधिक जोखिम वाला पेशा बन चुका है, जाहिर है अब अधिक से अधिक पत्रकार पत्रकारिता छोड़कर सत्ता चालीसा का पाठ करने लगे हैं, या फिर सत्ता की निरंकुशता को बढ़ावा देने में व्यस्त हैं। हमारे देश के तथाकथित पत्रकार तो अब समाचार दिखाते नहीं, बल्कि सत्ता की नाकामियों को धर्म, आध्यात्म, पाकिस्तान के हालात, हथियारों के जखीरा, धार्मिक उन्माद दिखाकर छुपाते हैं।
कमेटी तो प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार वर्ष 2022 पत्रकारों के लिए रिकॉर्ड स्तर पर खतरनाक और जानलेवा रहा और अब राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश से सम्बंधित पत्रकारिता दो देशों के बीच छिड़े युद्ध के मैदान से की जाने वाली रिपोर्टिंग से भी अधिक खतरनाक हो गया है। पिछले वर्ष, यानि 2022 में, दुनिया के 24 देशों में 62 पत्रकार मारे गए, जिसमें 41 पत्रकारों के बारे में स्पष्ट है कि वे रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए जबकि शेष की ह्त्या का वास्तविक कारण पता नहीं है। यूक्रेन में युद्ध की रिपोर्टिंग करते अबतक 15 पत्रकार मारे जा चुके हैं, पर लगभग इतने ही, 13 पत्रकार, मेक्सिको में राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश से सम्बंधित पत्रकारिता करते हुए मारे गए। यही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण अमेरिका में ऐसे ही विषयों की रिपोर्टिंग करते पिछले वर्ष 30 पत्रकार मारे जा चुके हैं। हैती में राजनैतिक उथल-पुथल के बीच 7 पत्रकार मारे गए। इसके बाद क्रम से फिलीपींस में 4, बांग्लादेश में 2, ब्राज़ील में 2, चाड में 2, कोलंबिया में 2, होंडुरस में 2 और भारत में 2 पत्रकारों की ह्त्या की गयी। इस सन्दर्भ में देखें तो पिछले वर्ष मारे गए पत्रकारों की सूचि में हमारा देश पांचवें स्थान पर बांग्लादेश समेत अन्य 6 देशों के साथ आसीन है।
पिछले वर्ष मारे गए पत्रकारों की संख्या वर्ष 2018 के बाद से सबसे अधिक रही है, वर्ष 2021 में कुल 45 पत्रकार मारे गए थे। पिछले दो दशकों के दौरान सबसे अधिक पत्रकार मध्य-पूर्व एशिया में मारे गए हैं, पर हाल के वर्षों में दक्षिण अमेरिका ने यह स्थान हथिया लिया है। पिछले वर्ष दक्षिण अमेरिका में 30 पत्रकार, पूर्वी यूरोप में 15, दक्षिण-पूर्व एशिया में 6, अफ्रीका में 6, दक्षिण एशिया में 6, पश्चिम एशिया में 4, मध्य एशिया में 1 और उत्तरी अमेरिका में 1 पत्रकार की ह्त्या की गयी।
कमेटी तो प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार वर्ष 2022 में 1 दिसम्बर तक के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर के 35 देशों में 363 पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के कारण जेल में डाला गया। यह संख्या वर्ष 2021 की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक है। इस सूचि में सबसे आगे ईरान है, जहां मेहसा अमिनी की पुलिस द्वारा ह्त्या के बाद उपजे आन्दोलन की रिपोर्टिंग करते 62 पत्रकारों को जेल में बंद किया गया है। दूसरे स्थान पर चीन है, जहां 43 पत्रकारों को जेल में बंद किया गया है। इनमें से अधिकतर पत्रकार कोविड 19 की रिपोर्टिंग या फिर मानवाधिकार विषयों पर रिपोर्टिंग के लिए जेल भेजे गए हैं। इसके बाद म्यांमार में 42, तुर्की में 40, बेलारूस में 26, ईजिप्ट में 21, वियतनाम में 21, रूस में 19, इरीट्रिया में 16, सऊदी अरब में 11 और भारत में 7 पत्रकारों को कैद किया गया है। इस तरह इस सूचि में हमारा देश 11वें स्थान पर है। दुनिया में गिरफ्तार किये गए 363 पत्रकारों में से 119 पत्रकार एशिया के देशों के हैं।
विरोधियों को कुचलने के मामले में बांग्लादेश पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश से सबक ले रहा है। वहां महंगाई पर रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार को जेल में डाला जाता है, पर हमारे देश में तो बिना किसी आरोप के ही सिद्दीक कप्पन को 2 साल जेल में रखा जाता है और तमाम यातनाएं दी जाती हैं। वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर के एक स्कूल में मिड-डे मील के नाम पर बच्चों को केवल रोटी और नमक खिलाने की विडियो बनाने वाले स्वतंत्र पत्रकार पवन जायसवाल को पुलिस ने दो महीने तक राज्य की छवि बिगाड़ने के आरोप में हिरासत में रखा। पवन जायसवाल देश में निष्पक्ष पत्रकारों की स्थिति का एक उदहारण हैं – वर्ष 2022 में कैंसर से उनकी मृत्यु हो गयी, उनके पास इलाज कराने के पैसे नहीं थी और गुहार के बाद भी कोई सरकारी मदद नहीं दी गयी।
दुनिया में निरंकुश सत्ता हावी होती जा रही है, और इसी के साथ ही पत्रकारों पर खतरे भी साल-दर-साल बढ़ते जा रहे हैं। पिछली शताब्दी के अंत से दुनियाभर में हत्यारी पूंजीवादी व्यवस्था का उदय होना शुरू हुआ, इस पूंजीवाद ने सबकुछ हड़प लिया, लोकतंत्र और तानाशाही में अंतर मिटा दिया, सभी संसाधनों पर वर्चस्व कायम कर लिया, सरकारों का आना और जाना तय करने लगे और मीडिया हाउस तो बहुत खड़े कर दिए पर स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को विलुप्तीकरण के कगार पर पहुंचा दिया।
अब हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि दुनिया के सभी बड़े मीडिया हाउस केवल पूंजीपतियों के इशारे पर चल रहे हैं। जाहिर है, स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया हाउस इतिहास के पन्नों में सिमटते जा रहे हैं। इतने के बाद भी बचे खुचे स्वतंत्र पत्रकार दुनियाभर में मारे जा रहे हैं या फिर जेलों में ठूंसे जा रहे हैं। हमारे देश में सत्ता के हिंसक समर्थक निष्पक्ष पत्रकारों पर हिंसक हमलों के लिए आजाद हैं। हमारे देश की मेनस्ट्रीम मीडिया मोदी जी की भक्ति में डूबी है, उनकी आरती उतार रही है – और तमाम देशों की सत्ता इसे आदर्श मान रही है।