मोदी सरकार की तरफ से बैटिंग करते हुए चुनाव आयोग ने बंगाल में 8 चरणों का चुनाव घोषित कर अपनी विश्वसनीयता बनाया संदिग्ध
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
चुनाव आयोग ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल सहित चार राज्यों के लिए मतदान की तारीखों की घोषणा की। वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के शासन के अधीन पश्चिम बंगाल में 27 मार्च से आठ चरणों में चुनाव करवाए जाएंगे। चुनाव आयोग ने मोदी सरकार की तरफ से बैटिंग करते हुए बंगाल में आठ चरणों का चुनाव घोषित कर अपनी विशवासनीयता को संदिग्ध बना लिया है। आयोग अपने इस फैसले के समर्थन में कोई ठोस तर्क नहीं दे पाया है। अगर तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी में एक चरण में और असम में तीन चरणों में मतदान करवाया जा सकता है तो बंगाल में चुनाव को आठ चरणों में आयोजित करने का क्या मतलब हो सकता है?
असल में जिन राज्यों में भाजपा को अपनी जीत की संभावना नजर नहीं आती, उन राज्यों में एक चरण में ही चुनाव करवाती रही है। दूसरी तरफ बंगाल को मोदी-शाह ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और जीत हासिल करने के लिए समस्त सरकारी संसाधन को झोंककर युद्ध जैसा वातावरण निर्मित कर दिया है। पिछले चुनावों में भाजपा ऐसे हथकंडों को आजमा चुकी है और सफल भी होती रही है। चुनाव के विभिन्न चरणों में जनमत सर्वेक्षण के आधार पर वह अगली रणनीति को आजमाती रही है।
कभी फर्जी राष्ट्रवाद का उन्माद पैदा करती रही है तो कभी सांप्रदायिक नफरत को हवा देकर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करती रही है। इसी तरह चुनाव के दौरान आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते हुए मोदी-शाह रैलियों का आयोजन करते रहे हैं। चुनाव में अपने अनुकूल नतीजों का प्रबंधन करने के लिए ही मोदी सरकार ने चुनाव आयोग के कान को मरोड़कर आठ चरणों में चुनाव करवाने की व्यवस्था की है, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
कुल 294 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 29 अप्रैल को अंतिम चरण का मतदान निर्धारित किया गया है। पहले चरण का मतदान 30 निर्वाचन क्षेत्रों में होगा, जबकि 1 अप्रैल को अगले 30 अन्य विधानसभा सीटों पर मतदान होगा।
तीसरे चरण, जिसमें 31 सीटें शामिल हैं, 6 अप्रैल के लिए निर्धारित किया गया है, जबकि चौथे चरण के 44 निर्वाचन क्षेत्रों में 10 अप्रैल को मतदान होगा। पांचवें चरण का मतदान 17 अप्रैल को 45 सीटों पर आयोजित किया जाएगा, जबकि 22 अप्रैल को छठे चरण में 43 सीटों पर मतदान होगा। सातवां चरण, जो 26 अप्रैल के लिए निर्धारित किया गया है, 36 विधानसभा क्षेत्रों के भाग्य का फैसला करेगा। 29 अप्रैल को अंतिम चरण का मतदान 35 सीटों पर होगा।
शुक्रवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में, मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि पश्चिम बंगाल चुनावों के लिए दो विशेष पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जाएगी और यदि आवश्यक हो, तो एक तीसरा भेजा जाएगा।
अरोड़ा ने कहा कि कोविड -19 महामारी को देखते हुए, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है, सभी राज्यों में मतदान केंद्रों की संख्या में वृद्धि की गई है और मतदान केन्द्रों पर भीड़ और लंबी कतार को रोकने के लिए अतिरिक्त घंटे के लिए मतदान की अनुमति दी जाएगी। पश्चिम बंगाल में, मतदान केंद्रों में 31.65 प्रतिशत की वृद्धि होगी।
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। ममता ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के चुनावी दौरे के हिसाब से तारीखें तय की हैं। चुनाव आयोग की मंशा क्या है? आप कुछ भी कर लो, बंगाल की जनता बीजेपी को सबक सिखाएगी।
ममता ने कहा, जब तीन राज्यों में एक चरण में और असम में तीन चरणों में चुनाव कराया जा रहा है तो बंगाल में आठ चरणों में चुनाव कराने का फैसला क्यों लिया गया? उन्होंने कहा, बंगाल के एक ही जिले में दो-तीन चरणों में चुनाव क्यों कराए जा रहे हैं। यह बीजेपी ने जानबूझ कर करवाया है। मोदी और शाह अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ममता ने कहा, बीजेपी पूरे देश में जो काम कर रही है, वहीं बंगाल में भी दोहराने की कोशिश में है। बीजेपी देश को बांट रही है। बंगाल में भी वह जनता को हिंदू-मुस्लिम के नाम पर बांट रही है, लेकिन उसकी यह मुराद कभी पूरी नहीं होगी। अब तो खेल शुरू हुआ है।' उन्होंने कहा, 'खेला होबे... हम खेलेंगे और जीतेंगे भी।'
ममता बनर्जी को भाजपा से पहली बार चुनौती मिल रही है। भाजपा के बडे़ बड़े नेता बंगाल में चुनाव का प्रचार कर रहे हैं। 2011 में सत्ता में आईं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पहली बार इतनी कड़ी टक्कर मिल रही है। 34 साल बंगाल पर राज करने वाली लेफ्ट का कोई अता पता नहीं दिखा रहा, टक्कर सिर्फ टीएमसी और भाजपा के बीच दिख रही है। पिछले बंगाल चुनाव में भाजपा को 11 फीसदी वोट मिले थे और टीएमसी को 45 फीसदी वोट मिले थे। आज भाजपा जोर-शोर से बंगाल पर दावा करने में लग गई है जो ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।