मृत्यु दर अधिक होने के बाद भी देश में कोरोना वैक्सीनेशन में महिलाएं पीछे, यूपी की हालत ज्यादा खराब
महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
जनज्वार। कोविड-19 महामारी ने महिलाओं को अधिक प्रभावित किया है। लॉकडाउन के दौरान उन्हें घरों में लगातार काम करना पड़ा, उन्हें पुरुषों की तुलना में अधिक बेरोजगारी झेलनी पड़ी, बालिकाओं को शिक्षा में अधिक नुकसान उठाना पड़ा और घरेलू हिंसा कामृत्यु दर अधिक होने के बाद भी देश में कोरोना वैक्सीनेशन में महिलाएं पीछे, यूपी की हालत ज्यादा खराब सामना भी करना पड़ा। भारत समेत कुछ देशों में महिलायें इस महामारी की चपेट में पुरुषों से कम आयीं पर मृत्यु दर में महिलायें पुरुषों से आगे रहीं। अब, टीकाकरण कार्यक्रम में महिलायें पिछड़ रही हैं।
भारत सरकार की टीकाकरण के आंकड़ों से सम्बंधित वेबसाइट CoWin के अनुसार, देश में पहली और दूसरी डोज मिलाकर 25 जून 2021 तक टीके की कुल 30.9 करोड़ खुराक दी जा चुकी थी – इसमें 14.3 करोड़ महिलायें थीं और 16.7 करोड़ पुरुष थे। महिलाओं और पुरुषों का यह अनुपात प्रति हजार पुरुष पर महज 856 महिलाओं का है। यह स्वाभाविक है कि इन आंकड़ों के बाद सबसे पहले मस्तिष्क में यही आता है कि, जनगणना के अनुसार भी देश में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या कम है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में प्रति हजार पुरुषों पर महज 924 महिलायें ही थीं। पर, समस्या यह है कि टीकाकरण के आंकड़ों में महिलाओं की संख्या जनसंख्या से भी कम है।
कोविड 19 टीकाकरण में लैंगिक असमानता के संदर्भ में देश के बड़े राज्यों में सबसे खराब स्थिति में सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की है। 25 जून तक उत्तर प्रदेश में 2.9 करोड़ टीके की खुराक दी जा चुकी थी, जिसमें महज 42 प्रतिशत महिलायें थीं। उत्तर प्रदेश के आंकड़ें इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कोविड-19 से निपटने में इस राज्य की तारीफ़ करते रहे हैं। पिछले महीने उत्तरप्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, मंत्रिमंडल के अनेक सदस्यों समेत नीति आयोग ने भी यह अफवाह फैलायी थी कि कोविड 19 से कारगार मुकाबले के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तर प्रदेश की तारीफ़ की है। आंकड़ों के अनुसार, इसी राज्य में टीकाकरण में महिलायें सबसे अधिक पिछड़ रही हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक लैंगिक असमानता दादरा और नगर हवेली में है, जहां कुल टीके में से महज 30 प्रतिशत ही महिलाओं के हिस्से आया है।
महिला असमानता के संदर्भ में पश्चिम बंगाल, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर और दमन और दिउ की स्थिति भी गंभीर है। दूसरी तरफ केरल और आंध्र प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां कुल टीके में से पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक है। इस समस्या पर लगातार चर्चा की जा रही है, पर लैंगिक संदर्भ में आंकड़ों की उपलब्धता एक समस्या रही है। देश के कुछ संस्थानों ने अपने तरीकों से इस संदर्भ में आंकड़े जुटाएं हैं और उसे जनता के लिए प्रस्तुत किया है।
अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इकोनॉमिक डाटा एंड एनालिसिस ने भी इस संदर्भ में टीका लगाने की शुरुआत से, यानि 16 जनवरी से 3 जून तक के आंकड़ों का जिलेवार लैंगिक विश्लेषण कर अपनी वेबसाईट https://bit।ly/3w6vR68 पर प्रस्तुत किया है।
टीकाकरण में केवल लैंगिक असमानता ही समस्या नहीं है, बल्कि असली समस्या यह है कि यह असमानता लगातार बढ़ रही है। 2 जून तक टीका लगाने के संदर्भ में प्रति 1000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 867 थी, जो 25 जून तक 856 ही रह गयी। 2 जून तक देश में कुल 218546667 टीके लगाए जा चुके थे, जिसमें महिलाओं और पुरुषों का अनुपात 867:1000 था। केवल पहले डोज के संदर्भ में पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक थी।
2 जून तक के आंकड़ों के अनुसार, लैंगिक असमानता के संदर्भ में सबसे बुरी स्थिति जम्मू और कश्मीर की थी, जहां प्रति हजार पुरुषों पर महज 709 महिलाओं को टीका लगा था। इसके बाद नागालैंड में 714 महिलाओं को, दिल्ली में 725 महिलाओं को, पंजाब में 754 महिलाओं को और उत्तर प्रदेश में 769 महिलाओं को टीका लगा था। इस समय तक देश में कुल टीकों में से औसतन 53 प्रतिशत टीके पुरुषों को लगे थे। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से बेहतर था। इन राज्यों में कुल टीके में से 51 प्रतिशत ही पुरुषों को लगाए गए थे।
2 जून तक के आंकड़ों के अनुसार, तीन राज्य ऐसे भी थे, जहां कुल टीके में से महिलाओं को दिए जाने वाले टीकों की संख्या पुरुषों की संख्या से अधिक थी। इस सूची में सबसे आगे केरल है, जहां प्रति हजार पुरुषों की तुलना में 1125 महिलाओं को टीके लगाए गए हैं। इसके बाद छत्तीसगढ़ का स्थान है जहां यह संख्या 1045 है और हिमाचल प्रदेश में 1003।
सरकारों को टीकों में लैंगिक समानता और समाज के अन्य पिछड़े वर्ग के लिए टीकाकरण के संदर्भ में अलग तरीके से पहल करने की जरूरत है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार और दूसरे राज्य केरल से और छत्तीसगढ से सबक ले सकते हैं।