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विमर्श

पीड़ित को ही आरोपी बना देना BJP की पुरानी फितरत, जो हो चुका है कई अल्पसंख्यकों-दलितों-छात्रों-किसानों-बुद्धिजीवियों के खिलाफ इस्तेमाल

Janjwar Desk
16 Jun 2023 9:47 PM IST
पीड़ित को ही आरोपी बना देना BJP की पुरानी फितरत, जो हो चुका है कई अल्पसंख्यकों-दलितों-छात्रों-किसानों-बुद्धिजीवियों के खिलाफ इस्तेमाल
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28 मई को महिला पहलवानों को अपमानित करते हुए घसीटकर जिस तरह से उनके प्रदर्शन स्थल को भी समेट दिया गया उसकी भर्त्सना कई अंतर्राष्ट्रीय खेल इकाइयों ने की है

बृजभूषण शरण सिंह को मोदी-शाह बचा रहे हैं, क्योंकि बृजभूषण उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण उस इलाके की राजनीति पर प्रभाव डाल सकते हैं, जिसमें अयोध्या शामिल है, ठीक इसी तरह उ.प्र. के ही मंत्री अजय मिश्र टेनी व उनके पुत्र को राजनीतिक संरक्षण दिया जा रहा है...

सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय की टिप्पणी

भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ सात महिला कुश्ती पहलवानों, जिसमें से कई अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता हैं, ने यौन उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया है। इनमें से एक नाबालिग है जिसकी वजह से कठोर पॉक्सो अधिनियम की धारा भी लगी है, किंतु इन पहलवानों के सड़क पर उतर कर भी विरोध प्रदर्शन करने के बावजूद आरोपी की गिरफ्तारी न होने के कारण नाबालिग पहलवान के पिता ने मुकदमा वापस लेने का निर्णय लिया है। जाहिर है कि उनके ऊपर दबाव बनाया गया है। पहलवानों को जंतर मंतर से 35 दिनों से चल रहे प्रदर्शन के बाद उस दिन जबरन हटा दिया गया, जब नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था।

एक तरफ आरोपी उद्घाटन समारोह में शामिल हो रहा था तो दूसरी तरफ पीड़ित पहलवानों के खिलाफ मुकदमा लिखा जा रहा था। पीड़ित को ही आरोपी बना देना यह भारतीय जनता पार्टी सरकारों का पुराना तरीका है जो कई अल्पसंख्यकों, दलितों, छात्रों, किसानों, बुद्धिजीवियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा चुका है। कई बार तो यह ऐसे सामान्य निर्दोष लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया है जिनका दोष सिर्फ यह है कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से असहमत हैं या फिर उसके काल्पनिक हिन्दू राष्ट्र के सांचे में कहीं बैठते नहीं।

जब दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल महिला पहवानों से मिलने जंतर मंतर पहुंचीं तो उन्हें वहां से पुलिस की गाड़ी में ऐसे उठाकर डाल दिया गया, जैसे कई बार प्रदर्शनकारियों को डाला जाता है। किसी सरकारी व्यक्ति को उसके कर्तव्य का पालन न करने देने का इससे सटीक उदाहरण और क्या हो सकता है, जो कानूनी धारा कर्ह बार पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लगाती है।

28 मई को महिला पहलवानों को अपमानित करते हुए घसीटकर जिस तरह से उनके प्रदर्शन स्थल को भी समेट दिया गया उसकी भर्त्सना कई अंतर्राष्ट्रीय खेल इकाइयों ने की है। क्या हिन्दुत्ववादी समर्थकों को जो भारत में बढ़ती असहिष्णुता की बात करते ही भारत की विदेशों में बदनामी का आरोप लगाने लगते हैं नहीं दिखाई पड़ रहा कि जिस तरह से सरकार ने महिला पहलवानों के साथ जैसा बर्ताव किया है उससे विदेश में भारत की बदनामी हो रही है?

महिला कुश्ती पहलवानों के संघर्ष में यह सवाल भी उठ रहा है, जो पहले भी उठता रहा है कि खेल इकाइयों का संचालन राजनेताओं के हाथ में क्यों रहता है? आखिर भारत के क्रिकेट बोर्ड में अमित शाह के बेटे का क्या काम है? खेल प्रबंधन इकाइयों सिर्फ भूतपूर्व खिलाड़ी या फिर पेशेवर लोग ही रहने चाहिए। अच्छा होता कि अन्य खेलों के खिलाड़ी भी इस सवाल पर और महिला कुश्ती खिलाड़ियों के यौन उत्नीड़न के मुद्दे पर खुलकर सामने आते।

रोजर बिन्नी को छोड़कर 1983 की विश्व कप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम तो खुलकर पहलवानों के समर्थन में आई है लेकिन सचिन तेंदुलकर, जो राज्य सभा सांसद हैं और इस नाते भी खिलाड़ियों की आवाज उठाना उनका फर्ज है, जैसे नामी गिरामी खिलाड़ियों को इस समय बोलने की जरूरत है।

महिला कुश्ती खिलाडियां हताशा की इस हद तक पहुंच गई हैं कि उन्होंने अपने पदक गंगा में बहाने का ऐलान कर दिया है। जब स्वतंत्र बुद्धिजीवियों नरेन्द्र दाभोलकर, गोविंद पंसारे, एम.एम. कलबुर्गी व गौरी लंकेश की दिनदहाड़े हत्या के विरोध में कई अन्य बुद्धिजीवियों ने अपने अपने सरकारी पुरस्कार वापस करने शुरू किए तो हिन्दुत्ववादी समर्थकों ने उन्हें तथाकथित बुद्धिजीवी व देशद्रोही बताया। अब ये हिन्दुत्ववादी समर्थक महिला कुश्ती खिलाड़ियों या उनके समर्थन में आए विश्व कप विजेता क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में क्या कहेंगे?

एक जमाने में भाजपा अपने आप को अलग प्रकार की पार्टी बताती थी। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह, पहले अपने आप को विभिन्न न्यायालयों से गुजरात से सम्बंधित आपराधिक मामलों में किसी तरह बचा पाने के बाद, अब पार्टी में शामिल अन्य अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं। भाजपा सरकार में मंत्री रहे एमजे अकबर पर जब यौन शोषण करने का आरोप लगा तो उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, किन्तु बृजभूषण शरण सिंह को मोदी-शाह बचा रहे हैं, क्योंकि बृजभूषण उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण उस इलाके की राजनीति पर प्रभाव डाल सकते हैं, जिसमें अयोध्या शामिल है। ठीक इसी तरह उ.प्र. के ही मंत्री अजय मिश्र टेनी व उनके पुत्र को राजनीतिक संरक्षण दिया जा रहा है। टेनी के भड़काने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुत्र आशीष मिश्र ने अपनी गाड़ी चढ़ाकर चार सिक्ख किसानों व एक पत्रकार को कुचल कर मार डाला।

इनकी तुलना दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध करने की वजह से जेलों में फर्जी मामलों में बंद उन मेधावी छात्रों, जिसमें उमर खालिद व शरजील इमाम शामिल हैं, से अथवा भीमा-कोरेगांव मामले में देश के 12 बेहतरीन नागरिकों से, जो गैर कानूनी गतिविधियां उन्मूलन अधिनियम में फर्जी ढंग से फंसाए गए हैं, अथवा राहुल गांधी से करें जिनकी संसद सदस्यता सिर्फ इसलिए ले ली गई क्योंकि उन्होंने मोदी नाम को लेकर एक मजाक किया।

आखिर ये तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी देश के कुछ सबसे बेहतरीन नागरिकों को क्यों अपमानित कर रही है और अपनी पार्टी में शामिल अपराधियों को क्यों बचा रही है? वजह साफ है। भाजपा या RSS सबको सिर्फ दो श्रेणियों में रखती है। आप या तो देशभक्त हो सकते हैं अथवा देशद्राही।

अतीक अहमद या विकास दूबे जैसे अपराधी देशद्रोही अपराधी हैं और उन्हें क्रमशः कैमरे के सामने खुलेआम गोली मारकर अथवा गाड़ी की दुर्घटना कराकर मार दिया जाना जरूरी था, और अजय मिश्र टेनी या बृजभूषण शरण सिंह देशभक्त अपराधी हैं, जिनको राजनीतिक कारणें से संरक्षण दिया जाना जरूरी है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ या खेलो इण्डिया जैसे नारे तो सिर्फ लोगों को लुभाने के लिए हैं जिन्हें हिन्दू राष्ट्र के हित में तिलांजलि दी जा सकती है। औरतें तो वैसे भी कोई मायने नहीं रखतीं और इसीलिए वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्य नहीं बन सकतीं। उनके लिए एक अलग संगठन है राष्ट्रीय सेविका संघ जिसमें सेविका के आगे स्वंय नदारद है क्योंकि वे तो सिर्फ पितृसत्तात्मक राष्ट्रवादी हिन्दुत्व की सेवा के लिए समर्पित हैं, जो तेजी से एक अधिनायकवाद की ओर अग्रसर है जिसकी झलक नए संसद के उदघाटन में सेनगोल प्रतीक के रूप में दिखाई पड़ी।

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