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विमर्श

मोदी सरकार ने किया मानवाधिकारों का व्यापक तरीके से हनन, अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट ने लोकतांत्रिक देश पर किये चौंकाने वाले खुलासे

Janjwar Desk
22 March 2023 4:48 AM GMT
मोदी सरकार ने किया मानवाधिकारों का व्यापक तरीके से हनन, अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट ने लोकतांत्रिक देश पर किये चौंकाने वाले खुलासे
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file photo

प्रजातंत्र के सभी खम्भे धराशाई करने वाली हमारी सरकार इन दिनों राहुल गाँधी द्वारा देश के लोकतंत्र पर दिए गए बयान की अलोकतांत्रिक तरीके से आलोचना कर बता रही है कि देश में लोकतंत्र, लोकतांत्रिक संस्थाओं और मानवाधिकार का किस तरीके से जनाजा निकाला जा रहा है। लोकतंत्र को ध्वस्त करने में मेनस्ट्रीम मीडिया हमारी सत्ता का भरपूर साथ निभा रही है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

US Government urged India to uphold human rights obligations and commitments. प्रजातंत्र के सभी खम्भे धराशाई करने वाली हमारी सरकार इन दिनों राहुल गाँधी द्वारा देश के लोकतंत्र पर दिए गए बयान की अलोकतांत्रिक तरीके से आलोचना कर बता रही है कि देश में लोकतंत्र, लोकतांत्रिक संस्थाओं और मानवाधिकार का किस तरीके से जनाजा निकाला जा रहा है। लोकतंत्र को ध्वस्त करने में मेनस्ट्रीम मीडिया हमारी सत्ता का भरपूर साथ निभा रही है।

लोकतंत्र के इसी उठा-पटक के दौरान भारत के तथाकथित प्रजातंत्र पर पहले वी-डेम की रिपोर्ट आई थी, जिसे मीडिया ने जनता के सामने आने ही नहीं दिया। इस रिपोर्ट में भारत को लोकतंत्र नहीं बल्कि चुनावी निरंकुश सत्ता की श्रेणी में रखा गया था। पर, अब अमेरिकी सरकार के स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा भी भारत में मानवाधिकार पर रिपोर्ट प्रकाशित की गयी, जिसमें मानवाधिकार हनन पर गंभीर चिंता जाहिर की गयी है और भारत सरकार से अनुरोध किया गया है कि मानवाधिकार के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाये।

अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट अन्थोनी ब्लिंकेन ने 20 मार्च को भारत से सम्बंधित “वार्षिक कंट्री रिपोर्ट ऑन ह्यूमन राइट्स प्रैक्टिसेज” को रिलीज़ किया। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष भारत में सरकार द्वारा मानवाधिकार का व्यापक तरीके से हनन किया गया। अनेक रिपोर्ट बताती हैं कि देश में सत्ता या पुलिस द्वारा गैरकानूनी हत्याएं, एनकाउंटर का नाम देकर हत्याएं, पुलिस और जेल के अधिकारियों द्वारा अमानवीय यातनाएं सामान्य घटनाओं की श्रेणी में आ गयी हैं।

मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकारी पाबंदियां, हिंसा या हिंसा की धमकी, निष्पक्ष पत्रकारों को बिना कारण बताये गिरफ्तार करना, विरोधियों को जांच एजेंसियों और देशद्रोह से सम्बंधित कानूनों का डर दिखाना, इन्टरनेट को कभी भी और कहीं भी बंद कर देना और आन्दोलनों और धरना/प्रदर्शनों के दौरान तमाम बाधाएं पैदा करना – सत्ता के हथियार हैं जिनका मानवाधिकार कुचलने के लिये लगातार इस्तेमाल किया जाता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति तो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स से ही स्पष्ट हो जाती है, जिसमें 180 देशों में भारत 150वें स्थान तक पहुँच गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत को सिविल सोसाइटी, मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं को आजादी देनी चाहिए और इनसे लगातार विमर्श करते रहना चाहिए। देश में किसी भी स्तर पर सरकारी अधिकारियों की कोई जवाबदेही नहीं है – इस कारण दोषियों को किसी सजा का डर भी नहीं है। सरकार अपनी मर्जी से इन्टरनेट को नियंत्रित करती है या फिर प्रतिबंधित करती है। सरकार ऑनलाइन कंटेंट पर पूरी निगरानी रखती है।

देश में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है। घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, कार्य के स्थल पर शोषण, तमाम प्रकार की हिंसा, बलात्कार, बाल विवाह इत्यादि से सम्बंधित मामलों की कभी जांच पूरी नहीं होती, दोषियों को सजा नहीं होती और किसी अधिकारी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती। देश में हवालात में और जेलों में हत्याएं और मुठभेड़ के नाम पर हत्याएं लगातार की जाती हैं।

अमेरिका सरकार की रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों और एक धर्म विशेष के विरुद्ध बुलडोज़र के हथियार के तरीके से इस्तेमाल की चर्चा भी की गयी है। इसके अनुसार कानूनी प्रक्रिया के बिना ही अल्पसंख्यकों के घरों को अवैध निर्माण का नाम देकर उनके घरों को बुलडोज़र से ढहा दिया जाता है। ऐसे अधिकतर मामले एक धर्मविशेष के लोगों से जुड़े हैं, जिन्होंने सरकार की नीतियों का विरोध किया।

हाल में ही स्वीडन की संस्था, वी-डेम (वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी) ने डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 प्रकाशित किया है, जिसमें कुल 179 देशों के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 97वें स्थान पर चुनावी प्रजातंत्र इंडेक्स में 108वें स्थान पर है। पिछले वर्ष के इंडेक्स में भारत का स्थान 100वां था। तंज़ानिया, बोलीविया, मेक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे घोषित निरंकुश सत्ता वाले देश भी इस इंडेक्स में भारत से पहले के स्थानों पर हैं, यानि उनमें प्रजातंत्र की स्थिति भारत से बेहतर है।

यही नहीं भारत को चुनावी निरंकुशता वाले देशों में शामिल किया गया है। यहाँ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि इससे पहले फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र देशों की सूचि में और इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने तेजी से पीछे जाते हुए प्रजातंत्र वाले देशों में शामिल किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों के दौरान दुनिया में प्रजातंत्र को निरंकुश सत्ता में बदलने वाले देशों में भारत सबसे आगे है।

इन्टरनेट बंदी के मामले में भारत पिछले 5 वर्षों से विश्वगुरु है। हाल में ही इन्टरनेट के सभी मामलों पर पैनी नजर रखने वाली न्यूयॉर्क स्थित संस्था, एसेस नाउ, के अनुसार वर्ष 2022 के दौरान दुनिया के कुल 35 देशों में इन्टरनेट बंदी के 187 मामले दर्ज किये गए। इसमें से इन्टरनेट बंदी के सर्वाधिक, 84 मामले, भारत में दर्ज किये गए। इसमें से अधिकतर मामले कश्मीर में दर्ज किये गए, जहां की खबरों को सत्ता किसी भी कीमत पर दबाना चाहती है। हमारे, प्रजातंत्र की माँ वाले और अमृतकाल में डूबे, देश में सरकारी तौर पर किस कदर अभिव्यक्ति की आवाज और विरोधियों के स्वर कुचलने के लिए इन्टरनेट बंदी को घातक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसका सटीक आकलन इस रिपोर्ट से होता है।

वर्ष 2022 में कुल 87 इन्टरनेट बंदी के साथ पहले स्थान पर भारत के बाद महज 18 इन्टरनेटबंदी के मामलों के साथ दूसरे स्थान पर घोषित निरंकुश देश ईरान है, जो पिछले वर्ष लगातार आन्दोलनकारियों का दमन करता रहा। तीसरे स्थान पर सैनिक शासन वाला देश म्यांमार है, जहां इन्टरनेटबंदी महज 7 बार की गयी।

तमाम रिपोर्ट लगातार बताती रही हैं कि हमारे देश का प्रजातंत्र अब निरंकुश हो गया है। सत्ता और तमाम समर्थक के सपनों का देश तैयार हो रहा है, जहां मीडिया पर सत्ता से जुड़े लोग कैमरे के सामने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का, एक धर्म-विशेष की आबादी को ख़त्म कर देने का आह्वान करते हैं। सतही तौर पर लगता है कि सत्ता और उसके समर्थकों की विशाल फ़ौज जैसा भारत बनाना चाहती है, वैसा भारत बन चुका है – फिर देश की जनता खुश होगी। पर, ऐसा बिलकुल नहीं है। हाल में ही प्रकाशित हैप्पीनेस इंडेक्स में कुल 137 देशों की सूचि में हम 126वें स्थान पर हैं, यानि केवल 11 देश ऐसे हैं जहां की प्रजा भारत से भी अधिक दुखी है।

अमेरिका की सरकार एक रिपोर्ट प्रकाशित कर भारत में मानवाधिकार हनन का मसला उठाती है, पर दुखद यह है कि अमेरिकी सरकार अपनी तरफ से कोई दबाव नहीं बनाती जिससे इस स्थिति में सुधार आये।

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