5 दिन पहले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देते समय किसान अधिकारों की बात करने वाले मोदी की सरकार अब उनसे कर रही आतंकियों सा व्यवहार !
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Kartavya Path is still Rajpath for blind people, the logo of G20 and “Azadi ka Amrit Mahotsav” are still being used. प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना, नई दिल्ली स्थित सेंट्रल विस्टा परियोजना के उदघाटन से पहले ही सितम्बर 2022 में नई दिल्ली नगर निगम ने ऐतिहासिक राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ कर दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसकी घोषणा गुलामी से मुक्ति के तौर पर की थी। इसके बाद यहाँ नए-नए बोर्ड लगाए गए और साथ ही राजपथ वाली आजादी पर अंकुश लगा दिया गया। पहले जहां राजपथ की पूरी लम्बाई तक लोग अपनी गाड़ियों से सैर कर सकते थे, अब तमाम बैरीकेडिंग के बाद भी केवल पैदल जाया जा सकता है। जाहिर है, राजपथ के कर्तव्य पथ में परिवर्तित होते ही यह बुजुर्गों और अशक्त लोगों की पहुँच से दूर हो गया।
यही नहीं, नेत्रहीनों के लिए यह आज भी राजपथ ही है। कर्तव्य पथ पर नेत्रहीनों के लिए ब्रेल में कुछ बोर्ड लगाए गए हैं। पता नहीं, कोने में लगे इन बोर्डों तक नेत्रहीन कैसे पहुंचते होंगे, और यदि वे बोर्ड तक पहुँच गए तब जाहिर है वे कर्तव्य पथ पर ही खड़े हैं। पर, एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि तथाकथित गुलामी के प्रतीक राजपथ का नाम आज भी उस सड़क पर लिखा है, जिसे गर्व से सत्ता कर्तव्य पथ कहती है। सत्ता और नई दिल्ली नगर निगम को यह जरूर बताना चाहिए कि नेत्रहीनों के लिए कर्तव्य पथ आज भी राजपथ ही क्यों है? वैसे भी अंधभक्तों की आँखें होती ही कहाँ हैं?
सरकारी और नगर निगमों द्वारा बहुत सारी भ्रामक जानकारियाँ दी जाती हैं। दिल्ली में, विशेष तौर पर नई दिल्ली क्षेत्र में पिछले वर्ष जी20 के भारत की अध्यक्षता के समय लगाए गए पोस्टर, बैनर और बोर्ड आज तक नहीं हटाये गए हैं। इनमें से अधिकतर पर प्रधानमंत्री मोदी की फोटो भी है और भारत के अध्यक्षता की सूचना भी। एक बार अध्यक्षता ख़त्म होने के बाद इन बोर्डों को क्यों रखा गया है, शायद ही किसी को पता होगा। भारत केवल जी20 का ही सदस्य नहीं है बल्कि अनेकों ऐसे समूहों का सदस्य है – इस हिसाब से अध्यक्षता के बाद भी यदि जी20 का प्रचार किया जा रहा है तो फिर अन्य बहुराष्ट्रीय समूहों का भी प्रचार किया जाना चाहिए।
जी20 के साथ तो केंद्र सरकार का भी बहुत लगाव रहा है। जनवरी के मध्य तक अधिकतर सरकारी विज्ञापनों में जी20 का लोगो प्रदर्शित किया गया था, जबकि 9 सितम्बर 2023 को भारत ने आधिकारिक तौर पर ब्राज़ील को अध्यक्षता सौप दी थी और 30 नवम्बर के बाद अध्यक्षता ख़त्म हो चुकी थी। यही हाल, आजादी के अमृत महोत्सव के प्रतीक चिह्न का भी है। आजादी के अमृत महोत्सव को आधिकारिक तौर पर 15 अगस्त 2023 को समाप्त कर दिया गया, पर 10 फरवरी 2024 को तमाम समाचार पत्रों में प्रकाशित भारतीय तटरक्षक बल के एक विज्ञापन में इसके प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया गया था।
भारत सरकार के विज्ञापनों में कुछ चीजें हास्यास्पद भी प्रतीत होती हैं। लगभग हरेक विज्ञापन या प्रचार सामग्री गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया के अंगरेजी लोगो से शुरू होती है, पर फिर आगे के विषय में हिन्दी में या अंगरेजी में – इंडिया कहीं लिखा नहीं मिलेगा, अंगरेजी में भी भारत ही रहता है। दूसरी तरफ, विषय कुछ भी हो पर विषय से अधिक जरूरी प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी तस्वीर और बड़े अक्षरों में लिखे गए नाम हैं।
दिल्ली में अयोध्या जलसे के तमाम पोस्टर आज भी लगे हैं – हरेक में राम की फोटो लगी हो या न हो पर मोदी जी की फोटो हरेक में लगी है। कुछ पोस्टरों में मोदी जी की बड़ी फोटो और राम की अपेक्षाकृत छोटी फोटो भी है। दिल्ली में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयंती, पराक्रम दिवस के कार्यक्रमों के पोस्टर आज भी लगे हैं – हरेक में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से कई गुना बड़ा नाम नरेंद्र मोदी का है।
केवल विज्ञापनों में ही नहीं बल्कि वक्तव्यों में भी प्रधानमंत्री का दोहरा आयाम झलकता है। पांच दिनों पहले ही चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के समय प्रधानमंत्री ने किसानों की और किसानों के अधिकारों की बातें की थीं। अब जब किसान अपने अधिकार मांग रहे हैं तो उनके साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। इन सबसे दूर, प्रधानमंत्री जी अभी हिन्दू धर्म के प्रचार में व्यस्त है। महीनों से मणिपुर जल रहा है और प्रधानमंत्री विकसित भारत का राग अलाप रहे हैं, सामान नागरिक संहिता की बात कर रहे हैं।
पूरी दिल्ली में घूमने के बाद हमारे प्रधानमंत्री का चेहरा एक बड़े मॉडल जैसा प्रतीत होता है, जो कहीं लटक कर, कहीं चिपक कर, कहीं कट-आउट बनकर, तो कहीं छपकर तमाम उत्पादों का प्रचार कर रहा हो, यही “हमारा संकल्प - विकसित भारत” की तथाकथित गारंटी है – कम से कम नंगी मीडिया को यही लगता है।