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विमर्श

New Psychology of Inequality : समाज और मीडिया रंगभेद और लैंगिक असमानता को कुछ हद तक मानता है वैध, शोध में हुआ खुलासा

Janjwar Desk
30 Jun 2022 2:45 PM IST
New Psychology of Inequality : समाज और मीडिया रंगभेद और लैंगिक असमानता को कुछ हद तक मानता है वैध, शोध में हुआ खुलासा
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समाज और मीडिया रंगभेद और लैंगिक असमानता को कुछ हद तक मानता है वैध, शोध में हुआ खुलासा

New Psychology of Inequality : अमेरिका और यूरोप के अनेक देशों में कोविड 19 से होने वाली मौतों में अश्वेतों की संख्या आबादी में उनके प्रतिशत की अपेक्षा अत्यधिक थी।

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

New Psychology of Inequality : अमेरिका और यूरोप के अनेक देशों में कोविड 19 से होने वाली मौतों में अश्वेतों की संख्या आबादी में उनके प्रतिशत की अपेक्षा अत्यधिक थी। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) के जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार प्रचलित धारणा यह है कि उनकी गरीबी, बस्तियों में सघन आबादी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी इसका मुख्य कारण है।

इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक उपयोग में आने वाले यंत्रों पर भी सवाल उठाया गया है और बताया गया है कि ये यंत्र केवल गोरी चमड़ी वाले लोगों के लिए बनाए गए हैं और इनसे अश्वेतों का परीक्षण सही तरीके से नहीं किया जा सकता। कोविड 19 के दौर में रक्त में ऑक्सीजन की जांच बहुत महत्वपूर्ण थी, और इसके लिए अस्पतालों में पल्स ओक्सीमीटर (Pulse Oxymeter) का व्यापक उपयोग किया गया, और इसके परिणाम के आधार पर ही अस्पतालों में तत्काल इलाज के लिए बेड उपलब्ध कराये जाते थे।

पल्स ओक्सीमीटर में एक उंगली यंत्र में रखने पर इससे उतासर्जित प्रकाश की किरणों की मदद से रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का निर्धारण किया जाता है। वर्षों से यह स्वास्थ्य जगत में पता है कि इस यंत्र के माध्यम से रंगीन चमड़ी वाले लोगों के विश्वसनीय परिणाम नहीं मिलते हैं, फिर भी इन यंत्रों का व्यापक उपयोग किया जा रहा है।

इस रिपोर्ट में अमेरिका के बाल्टिमोर शहर के 7000 कोविड 19 के मरीजों का गहन परीक्षण किया गया है। इस परीक्षण के अनुसार सभी गोरे लोगों में इस यंत्र ने रक्त में ऑक्सीजन की सांद्रता का सटीक आकलन किया, पर 1.2 प्रतिशत काले लोगों, 1.2 प्रतिशत भूरी चमड़ी वाले लैटिना लोगों और 1.7 प्रतिशत एशियाई आबादी में परिणाम वास्तविक सांद्रता की तुलना में अधिक आये।

गलत परिणामों के कारण इनको अस्पतालों में देर से भर्ती किया गया, उपचार देर से शुरू किया गया और उनकी मृत्यु अधिक संख्या में हुई। रिपोर्ट में कहा गया है हालांकि यह प्रतिशत मामूली प्रतीत होता है, पर बाल्टिमोर में काले लोगों की आबादी 29 प्रतिशत और लैटिना आबादी 23 प्रतिशत है – इसलिए वास्तविक असर अत्यधिक था।

यह सामाजिक असमानता (Social inequality) का एक नया उदाहरण है। सामाजिक असमानता – लैंगिक असमानता, रंगभेद और आर्थिक असमानता - के सन्दर्भ में देखें, तो हमेशा समाज में दो वर्ग रहते है, एक सुविधा संपन्न और दूसरा सुविधाविहीन। पिछले अनेक दशकों से सामाजिक असमानता को कम करने की चर्चा की जा रही है, पर जितनी चर्चा की जाती है असमानता उतनी बढ़ती जाती है।

हालत यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प, भारतीय जनता पार्टी या कोविड 19 महामारी कुछ महीनों के भीतर ही सामाजिक समानता को तार-तार करने की क्षमता रखते हैं। जाहिर है सामाजिक असमानता को कभी भी ठीक से समझा नहीं गया है, और इसका एक बड़ा कारण इसके प्रति हमारी सोच भी है।

प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंसेज में इस विषय पर कार्नेजी मेलन यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास के वैज्ञानिकों का एक शोधपत्र प्रकाशित किया गया है। इसके अनुसार असमानता के प्रति समाज का, पत्रकारों का और सरकारों का रवैया और सोच एक जैसा ही है।

जब हम रंगभेद की बात करते हैं, तब अश्वेतों के अभावों की चर्चा करने लगते हैं, पर कभी भी श्वेतों के असीमित अधिकारों की चर्चा नहीं करते। इसी तरह लैंगिक समानता की चर्चा में महिलाओं की समस्याओं की चर्चा की जाती है, जबकि पुरुषों के व्यवहार और अधिकारों पर कभी चर्चा नहीं की जाती।

आर्थिक असमानता के सन्दर्भ में समाज, मीडिया और सत्ता में चर्चा अमीरों की संपत्ति पर शुरू होकर यहीं ख़त्म हो जाती है, गरीबों के बारे में कभी व्यापक चर्चा नहीं की जाती। असमानता महज एक वर्ग के नफ़ा और दूसरे वर्ग के नुकसान पर सिमट कर रह जाती है। इस शोधपत्र के अनुसार असमानता के सन्दर्भ में केवल एक वर्ग पर पूरा ध्यान केन्द्रित करना ही अपने आप में सबसे बड़ा धोखा है, क्योंकि असमानता हमेशा सापेक्ष होती है, जिसमें समाज के दो वर्ग सम्मिलित रहते हैं। जब तक ऐसे मामलों में दोनों वर्गों पर एक समान ध्यान नहीं दिया जाएगा, तबतक यह समस्या और विकराल होती जायेगी।

इस शोधपत्र के अनुसार समाज और मीडिया रंगभेद और लैंगिक असमानता को कुछ हद तक वैध मानता है, जबकि आर्थिक असमानता अनैतिक है। समाज के अनुसार रंगभेद और लैंगिक असमानता एक वर्ग को असीमित अधिकार और लाभ देने के कारण नहीं पनपी है, बल्कि इसका कारण महज भेदभाव है – जाहिर है समाज और मीडिया इसे व्यापक समस्या नहीं मानता। जबकि आर्थिक असमानता के बारे में लोग सोचते हैं कि यह सत्ता द्वारा अमीरों को आगे बढाने की नीतियों के कारण पनपा है – लोग इसे गरीबों के अधिकारों को सीमित कर देने के नजरिये से नहीं देखते।

असमानता एक तुलनात्मक विषय है, जिसमें समाज के दो वर्गों की बात की जाती है। पर समस्या यह कि इसे केवल एक वर्ग के नजरिये से देखा जाता है और यही इसे दूर करने में सबसे बड़ी समस्या है। सत्ता के लिए असमानता को विकराल करना जरूरी हो चला है – असमानता बढ़ेगी तभी समाज अस्थिर होगा और अस्थिर समाज में ही कट्टरवादी, घुर दक्षिणपंथी, पुरातनपंथी और निरंकुश सत्ता उभरती है, मजबूत जड़ें जमाती है। इस समय दुनिया में ऐसी ही सरकारों की बहुलता है। वैज्ञानिकों को एक अध्ययन इस विषय पर भी करने की जरूरत है।

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