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विमर्श

RSS का संविधान लागू करने की मंशा को खतरा बता कहना क्या चाहते हैं लालू?

Janjwar Desk
11 Oct 2022 3:20 PM IST
आरएसएस का संविधान लागू करने की मंशा को खतरा बता कहना क्या चाहते हैं लालू
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आरएसएस का संविधान लागू करने की मंशा को खतरा बता कहना क्या चाहते हैं लालू

संघियों के खिलाफ लालू यादव ने एक बार फिर पुराना तेवर अख्तियार कर लिया है। उन्होंने सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों से एक मंच पर आने की अपील है।उनके इस आह्वान से भगवा समर्थकों के कान खड़े हो गए हैं।


आरएसएस-भाजपा के खिलाफ लालू के तेवर पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण


नई दिल्ली। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और बोफोर्स घोटाले के बाद देश में गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू हुआ। उसके बाद से कांग्रेस कमजोर होती गई और धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ताकतें मजबूत हुईं। इसके साथ ही दक्षिणपंथी ताकतों का देश की राजनीति में दखल बढ़ा। 1990 से लेकर 2014 तक धर्मनिरपेक्ष ( secular )ताकतों का सियासी सितारा बुलंद रहा। उसके बाद से दक्षिणपंथी ( saffron forces ) ताकतें केंद्र की सत्ता पर काबिज हैं। ऐसे में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए एक बार फिर मंडल-कमंडल ( Mandal vs kamanddal ) दौर की तरह धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ( Socialist forces ) ताकतें भगवावादियों को सत्ता से बेदखल करने की मुहिम पर चल पड़े हैं। इस मुहिम को गति देने के लिए लालू यादव ( Lalu Yadav ) ने आरएसएस-भाजपा ( RSS-BJP ) के विरोधियों से एक मंच पर आने की अपील की है। ताकि देश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों की आवाज फिर से बुलंद हो सके।

अपने इस मुहिम को धार देने के लिए लालू यादव ( Lalu Yadav ) भाजपा ( BJP ) और आरएसएस ( RSS ) के विरोध में आवाज बुलंद कर रहे हैं, लेकिन वह जो कहना चाह रहे हैं उसे समझने के लिए आपको जेपी के जन आंदोलन से लेकर अब तक देश की राजनीति में क्या हुआ उस नजर डालना जरूरी है। दरअसल, आपातकाल के खिलाफ समग्र क्रांति ( Whole revolution ) का नारा देने वाले जय प्रकाश ( Jay Prakash narayan ) के सहयोगी रहे मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, रधुवंश प्रसाद सिंह, जनेश्वर मिश्रा, मोहन सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, राम विलास पासवान व अन्य नेताओं का देश की मुख्यधारा की राजनीति में उभार हुआ था। मुलायम सिंह यादव दो बार पीएम बनते-बनते रह गए, तो लालू यादव किंग मेकर बने। नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति के बाद बिहार में 17 साल से सीएम के पद पर विराजमान हैं। वहीं शरद यादव राष्ट्रीय राजनीति में छाये रहे। कुछ समय में लिए उनका मोहभंग हुआ लेकिन एक बार फिर से वो समाजवादियों की छतरी यानि लालू यादव के साथ आ गए हैं। जनेश्वर मिश्रा, रघुवंश प्रसाद, राम विलास पासवान इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन इन लोगों ने भी देश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने का काम किया था।

जेपी के शिष्य पिछले तीन दशक से देश की राजनीति को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते आये हैं। या यूं कहें कि जमीन की राजनीति कर उसे धर्मनिरपेक्ष यानि सेक्युलर पॉलिटिक्स के दम पर अपने रंगरूप में ढालने में जुटे हैं। इस दौरान सेक्युलर राजनीति का केंद्रीय तत्व बनकर मुलायम सिंह यादव और लालू यादव उभरे लेकिन सांप्रदायिक शक्तियों को लालू यादव ने टिट फार टैट की भाषा में जवाब देते हुए, राम मंदिर निर्माण के लिए देशव्यापी राम रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवानी को लालू यादव ने समस्तीपुर में गिरफ्तार कर, उनकी मंशा पर पानी फेर दिया था। इसी के साथ उनकी सियासी यात्रा तो 2009 तक चलती रही लेकिन रथयात्रा वहीं रुक गई। यह वो दौर था जब देश में मंडल और कमंडल की राजनीति ने जोर पकड़ने लगा था।

इस बीच मुलायम सिंह यादव सेक्युलरवादियों के दमदार आवाज बने तो लालू प्रसाद यादव उनसे भी ज्यादा बेबाक, बेहिचक, और निडर धर्मनिरपेक्ष ताकत का स्तंभ बनकर देश के सियासी मंच पर उभरे और किंगमेकर बने। आरएसएस और भाजपा सहित अन्य दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ जितना आक्रामक रुख लालू यादव रहे उतना और कोई नहीं रहा। लालू यादव ने न केवल लाल कृष्ण आडवाणी के सियासी अरमानों पर पानी फेरा बल्कि 2004 में एनडीए को सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई। इसके लिए उन्होंने बिहार की राजनीति से बाहर होने के बाद केंद्र में यूपीए वन और टू के दौरान कांग्रेस का आंख मूंदकर साथ दिया था।

उसके बाद 2015 में नीतीश की डूबती नैया का सहारा देते हुए बिहारियों के डीएनए के मुद्दे पर भगवाधारियों को धोबी चाल के जरिए चित कर दिया था। अब एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल की कार्यकारिणी की तालकटोरा स्टेडियम में संपन्न बैठक में उसी तेवर में दिखाई दिए। उन्होंने सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए न केवल सेकुयलरवादियों से एकजुट होने का आह्वान किया है बल्कि आरजेडी नेताओं के जुबान पर लगाम भी लगा दिया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि नीतिगत मुद्दे पर या तो वो बोलेंगे या तेजस्वी यादव बोलेंगे। इसके अलावा और कोई नहीं बोलेगा।

भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए हो जाओ एकजुट

10 अक्टूबर को आरजेडी ( RJD ) राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन से पहले हुंकार भरते हुए साफ कर दिया कि एक बार फिर से सभी धर्मनिरपेक्ष और समाजवादियों को एकजुट होने की जरूरत है। साथ ही कहा कि देश में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का संविधान लागू करने का प्रयास हो रहा है। लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थानों को समाप्त करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। ईडी, सीबीआई, एनआईए, आईटी व अन्य केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करते हुए जिस तरह से विरोधी पार्टियों की आवाज को समाप्त करने का प्रयास जारी है। इसलिए पार्टी के नेता एकजुट हों, इधर-उधर बयान मत दीजिए। पार्टी में किसी प्रमुख विषय पर सिर्फ तेजस्वी बोलेंगे। नरेंद्र मोदी की सरकार को मूली गाजर की तरह उखाड़ फेकेंगे। भाजपा को छाप देंगे।

हमारी तातक नहीं हुई कम, जरूरत एकजुट होने की है

लालू यादव यहीं नहीं रुके। उन्होंने समाजवादियों से आह्वान किया कि देश में अघोषित इमरजेंसी जैसे हालत हैं। सांप्रदायिकता को खत्म करने और स्विस बैंक से रुपया लाकर 15-15 लाख सभी के खातों में देने वालो ने केवल अपना उल्लू सीधा किया, इसलिए सभी को एक छतरी के नीचे आने का सुझाव भी दिया। कहा कि भाजपा के राज में गलतफहमी में रहने की जरूरत नहीं है। राजद सुप्रीमो ने मंडल बनाम कमंडल का जिक्र करते हुए संकेत दिया है कि जिस तरह से हमने उस दौर में दक्षिणपंथियों को झुकाया था और आरक्षण को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था, उसी तरह से एक बार सभी को एकजुट होकर उसी ताकतों से लड़ने की जरूरत है। ताकि देश को बांटने वाली ताकतों के फन को कुचला जा सके। ऐसा ही हम धर्मनिरपेक्ष देश में सांप्रदायिक शक्तियों के मंसूबों को नाकाम कर सकते हैं।

गफलत में भाजपा, हमें तो आज भी अपनी ताकत का अहसास

लालू ( Lalu Yadav ) की बातों को धार देते हुए कहा कि तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया कि 2024 के लिए हम तैयार हैं। देश में बेरोजगारी की हालत हो गई है। नरेंद्र मोदी चाय बेचकर प्रधानमंत्री बन गए और जो युवा एमबीए कर के बैठे हैं, उन्हें चाय बेचना पड़ रहा है। इसके खिलाफ हमें जितनी लड़ाई लड़नी पड़ें, हम लड़ेंगे। उन्होंने युवाओं को भाजपा से सतर्क रहने के प्रति आगाह किया। बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के अधिवेशन से दूरी बनाए जाने को लेकर तेजस्वी ने कहा कि जगदा बाबू को हर कोई नहीं समझ सकता है। उन्हें जानने में वक्त लगेगा। भाजपा के लोग गलत आकलन करते रहें हैं। यही वजह है कि बिहार में भाजपा का यह हाल हुआ है। हां, उनकी चाल के प्रति समाजवादियों को सतर्क रहने एकजुट रहने की जरूरत है। लालू और तेजस्वी यादव ने जगदानंद सिंह की नाराजगी को भाव न देकर और श्याम रजक मनाकर साफ कर दिया है कि एमआई और दलितों को साथ लेकर हम आगे बढ़ना चाहते हैं। श्याम रजक को मनाना इसी बात का संकेत है। यानि लालू यादव समझ गए हैं कि वोट के फेर में इधर—उधर भटकने के बदले अपने पुरारे वोट बैंक को ही एकजुट करने की जरूरत है। यही वजह है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बेठक में तेजप्रताप यादव के रुख से लालू और तेजस्वी असहज हो गए थे।

राम की नहीं, जनता की कृपा पर भरोसा

छह साल पहले भी आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा था कि जेडीयू के चुनाव नहीं लड़ने से पक्का हो गया कि यूपी में फिर अखिलेश यादव की सरकार बनेगी। हालांकि, वैसा नहीं हो पाया था लेकिन उस समय नीतीश कुमार के स्टैंड को उन्होंने अच्छा स्टैंड करार दिया था। सांप्रदायिक ताकतों को यूपी से नेस्तनाबूत करने के बाद सामाजिक शक्तियां दिल्ली से भाजपा को हटाएंगी। उन्होंने भाजपा की मानसिकता को एंटी बिहारी करार दिया था। यूपी चुनाव में फिर से राम मंदिर का मुद्दा उठाए जाने पर उन्होंने कहा कि राम का नाम लेकर वोट मांगने वालों को रामजी की कृपा से ही जनता नोटिस नहीं करती है। न ही आगे करेगी।

लालू के तेवर पहले से ज्यादा सख्त

अगर हम लालू यादव के छह साल पहले की बयान को देखें और अब ताजा बयान को देखें तो एक बात साफ है कि लालू सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ पहले की तरह पूरी ताकत के साथ खड़े हैं। वह मंडल-कमंडल के दौर की तरह एक बार कमंडल को सियासी मात देना चाहते हैं। बिहार में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश को सीएम बनाने के पीछे उनकी मंशा भी यही है। ऐसा कर उन्होंने आरजेडी को टूटने से बचा लिया है। पिछले कुछ समय से उन्हें लगने लगा था कि मोदी—शाह मिलकर आरजेडी को तोड़ने में लगे हैं। ऐसे में बिहार की सत्ता में वापसी कर उन्होंने न केवल आरजेडी को सत्ता का सुरक्ष कवच दे दिया है, बल्कि अब पहले की तरह चरमपंथी व सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ उठ खड़े हैं। उनकी मंशा है कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों को फिर से केंद्रीय सत्ता में स्थापित किया जाए। ताकि देश में संविधान और लोकतंत्र दोनों को बचाना संभव हो सके।

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