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विमर्श

ईसा पूर्व 6000 वर्ष जितना पुराना है पैरों में पहने जाने वाले जूतों का इतिहास, पढ़िए जूते पर कवितायें

Janjwar Desk
18 July 2021 8:11 AM GMT
ईसा पूर्व 6000 वर्ष जितना पुराना है पैरों में पहने जाने वाले जूतों का इतिहास, पढ़िए जूते पर कवितायें
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(हिंदी साहित्य में जूते एक विषय के तौर पर लगभग उपेक्षित ही रहे हैं, अलबत्ता कभी-कभी कवि-सम्मेलनों में कविताओं से परेशान श्रोता जूतों का अस्त्र-शस्त्र की तरह इस्तेमाल करते हैं)

हमारे देश का मूर्तिशिल्प बहुत उन्नत है, फिर भी इनसे जूते गायब रहते हैं। गुजरात के मोढेरा में सूर्य मंदिर, जो ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया था, में मंदिर के बाहर सूर्य के पैरों में घुटने की ऊंचाई के जूतों को दिखाया गया है....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। पैरों में पहने जाने वाले जूतों का इतिहास ईसा पूर्व 6000 वर्ष जितना पुराना है। पहले जूते केवल अमीरों के पैर में होते थे, पर अब ये सबके पैरों में दिखते हैं। हालांकि जूते, आज भी सामाजिक और आर्थिक विषमता का सबसे सामान्य पैमाना है। बहुत प्रचलित और आवश्यक होने के बाद भी जूते कला के विभिन्न अंगों में लगभग उपेक्षित रहे।

राजकपूर की वर्ष 1955 की फिल्म श्री 420 में शैलेन्द्र का लिखा, शंकर जयकिशन का संगीतबद्ध और मुकेश का गाया गाना, "मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी" आज भी बहुत लोकप्रिय है और कला के क्षेत्र में जूते के उपयोग को याद दिलाता है।

हमारे देश का मूर्तिशिल्प बहुत उन्नत है, फिर भी इनसे जूते गायब रहते हैं। गुजरात के मोढेरा में सूर्य मंदिर, जो ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया था, में मंदिर के बाहर सूर्य के पैरों में घुटने की ऊंचाई के जूतों को दिखाया गया है।

हिंदी साहित्य में जूते एक विषय के तौर पर लगभग उपेक्षित ही रहे हैं, अलबत्ता कभी-कभी कवि-सम्मेलनों में कविताओं से परेशान श्रोता जूतों का अस्त्र-शस्त्र की तरह इस्तेमाल करते हैं, और कवियों पर जूते फैकते हैं। कभी-कभी राजनीति में भी नेताओं पर जूते फेंके जाते हैं। बहुत सारी जगहों और सभाओं में जूते पहन कर जाने पर पाबंदी होती है, ऐसे में अकेले, हताश जूते अपने मालिक से अलग बेतरतीब बिखरे होते हैं। ऐसे ही विषय पर प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह की एक कविता है, जूते।

जूते

सभा उठ गई, रह गए जूते

सूने हाल में दो चकित उदास

धूल भरे जूते, मुँहबाए जूते

जिनका वारिस कोई नहीं था


चौकीदार आया, उसने देखा जूतों को

फिर वह देर तक खड़ा रहा

मुँहबाए जूतों के सामने, सोचता रहा--

कितना अजीब है कि वक्ता चले गए

और सारी बहस के अंत में

रह गए जूते

उस सूने हाल में

जहाँ कहने को अब कुछ नहीं था

कितना कुछ कितना कुछ

कह गए जूते

प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना ने भी जूते की यात्राओं और जीवन पर एक छोटी, पर मार्मिक कविता लिखी है, जिसका शीर्षक है जूते.

जूते

जिन्होंने ख़ुद नहीं की अपनी यात्राएँ

दूसरों की यात्रा के साधन ही बने रहे

एक जूते का जीवन जिया जिन्होंने

यात्रा के बाद

उन्हें छोड़ दिया गया घर के बाहर।

कहा जाता है कि पिता के जूते जब संतान के पैरों में ठीक आने लगें, तब संतान पिता की मित्र बन जाती है, और उसकी जिम्मेदारियों को निभाने लगती है. हिंदी के प्रसिद्ध कवि नील कमल की एक गंभीर कविता इसी विषय पर है, शीर्षक है, पिता के जूते।

पिता के जूते

कठिन वह एक डगर

और नमक पड़ा जले पर

इस तरह तय किया सफ़र


हमने पिता के जूतों में

इतिहास की धूल और

चुभते कई शूल, समय के,

चलते हुए साथ-साथ इस यात्रा में


आसान नहीं होतीं यात्राएँ

ऐसे जूतों में कि जिनके तलवों से

चिपके होते हैं अगणित अदृश्य पथ

और कील-कंकड़ कितने ही

आसान नहीं होता

पिता के जूतों में

अपनी राह बना लेना

पहुँचना किसी नई मंज़िल

उलटी राह चलते हैं पाँव

इन जूतों में और खो जाते हैं,

इतिहास के किसी खोह में


बच के आएगा,

इतिहास के इस खोह से, वही बच्चा,

जो उतार फेंकेगा पाँवों से, पिता के जूते

अपने लिए ढूँढ़ेगा, अपनी माप के जूते

चलेगा वह आगे की ओर

बनायेगा खुद अपनी राह

और तय करेगा मंज़िल

अपने जूतों में

बड़े काम की होती है

पिता की वह चिट्ठी

आगाह करती हुई कि बेटा,

मत डालना पाँव मेरे जूतों में

ढूँढ़ना अपने नम्बर वाला जूता

बनाना अपनी राह ख़ुद ही,

बहुत बड़ी है पृथ्वी

दस दिशाएँ पृथ्वी पर

और दस नम्बर जूतों के

प्रसिद्ध लेखक, कवि और पत्रकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का सबसे चर्चित काव्य संग्रह है, खूंटी पर टंगे लोग. इस काव्य संग्रह में किसी के सामान्य दिनचर्या से हरेक विषय मसलन जूते, मोज़े, दस्ताने इत्यादि पर छोटी पर गम्भीर सोच वाली कवितायें हैं। प्रस्तुत है, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता, जूते।

जूते

मेरा जूता

जगह जगह से फट गया है

धरती चुभ रही है

मैं रुक गया हूँ

जूते से पूछता हूँ,

"आगे क्यों नहीं चलते?"

जूता पलट कर जवाब देता है,

"मैं अब भी तैयार हूँ

यदि तुम चलो"

मैं चुप रह जाता हूँ

कैसे कहूँ कि मैं भी

जगह जगह से फट गया हूँ

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