Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

Tribals In India : आदिवासियों की आत्मनिर्भरता को हिकारत की नजरों से देखती है सरकार, चंद कंपनियों के फायदे के लिए करोड़ों लोगों को नुकसान

Janjwar Desk
18 Feb 2022 5:55 PM IST
Tribals In India : आदिवासियों की आत्मनिर्भरता को हिकारत की नजरों से देखती है सरकार, चंद कंपनियों के फायदे के लिए करोड़ों लोगों को नुकसान
x

आदिवासियों की आत्मनिर्भरता को हिकारत की नजरों से देखती है सरकार, चंद कंपनियों के फायदे के लिए करोड़ों लोगों को नुकसान

Tribals In India : आज भारत से सबसे ज्यादा संख्या में अर्धसैनिक कहाँ हैं। वह आदिवासी इलाकों में है। वह वहाँ क्या करने गये हैं ? क्या आदिवासी की सुरक्षा करने के लिए ? नहीं, बल्कि चंद पूंजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए अपने ही देशवासियों को मारने और डराने गये हैं....

हिमांशु कुमार का विश्लेषण

Tribals In India : केन्द्रीय भारत के आदिवासी (Adiwasi) की अर्थव्यवस्था कुछ ऐसी है। वह बरसात में खरीफ में धान की फसल लेता है। साथ में रागी, कोदो, कुटकी, मक्का और बरसाती सब्जियां लगाता है। नवम्बर तक फसल कटने के बाद वह अपने गाय बैल को आज़ाद छोड़ देता है। इसके बाद सारे खेत पूरे समाज के हो जाते हैं। यह आज़ाद पशु खाली पड़े खेतों नजदीक की पहाड़ियों में चरते रहते हैं।

इसके अलावा आदिवासी बकरी, सूअर मुर्गी पालता है। आस पास से उसे महुआ के फूल और टोरा इमली और तेंदू पत्ता से आमदनी हो जाती है। आदिवासी को अचानक पैसे की जरुरत हो तो मुर्गा बेच लेता है। थोड़े ज्यादा पैसे ज़रुरत हो तो बकरा बेच कर काम चल जाता है। खेत की मेड डालनी हो या खेत मरम्मत करना हो तो वह आस पास के लोगों एक सूअर या गाय का मांस बाँट कर अपना काम करवा सकता है।

लेकिन सरकार आदिवासी की इस आर्थिक आत्मनिर्भरता को हिकारत की नज़र से देखती है। सरकार (Government) कहती है आदिवासी तो बहुत पिछड़ा हुआ है। वह गरीब है। हम उसका विकास करेंगे। सरकार आदिवासी इलाके के विकास का एक ही तरीका जानती है। सरकार कहती है कि हम यहाँ के पहाड़ और नदी जंगल एक कम्पनी को दे देते हैं। वह कम्पनी इस पिछड़े इलाके का विकास करेगी।

कम्पनी आकर पहले जंगल काटती है। फिर बड़ी बड़ी मशीनें लगा कर ज़मीन के नीचे से कोयला लोहा अलमुनियम या हीरे खोदती है। उस इलाके में जो नदी होती है उस नदी में पहले ज़मीन से निकाला हुआ खनिज धोया जाता है। जिससे नदी बर्बाद हो जाती है। खोदने वाली मशीनों और ढुलाई करने वाले बड़े बड़े डम्पर से उड़ने वाली धुल से खेत बर्बाद हो जाते हैं। इन कम्पनियों में काम करने के लिए बाहर से हजारों लोगों को लाया जाता है। उस इलाके में वेश्यावृत्ति, नशा झुग्गी झोंपड़ियाँ गुंडागर्दी शुरू हो जाती है।

कुछ साल में उस इलाके को पूरी तरह बर्बाद करने के बाद कंपनी वहाँ से चल देती है। वहाँ बचता है बड़े बड़े गड्ढे , बर्बाद हो चुके जंगल के अवशेष, नशे में डूबी हुई पीढ़ी और अपराध।

इस विकास के माडल का फायदा कम्पनियों के चंद मालिकों को होता है लेकिन इसका नुकसान करोड़ों लोगों को होता है। इस तरह के विकास के और भी कई नुकसानदायक पहलु हैं। जैसे जो जंगल काटा जाएगा उसकी वजह से आक्सीजन कम मिलेगी तो सिर्फ आदिवासी की आक्सीजन कम नहीं होगी। वह शहर में बैठे मिडिल क्लास की भी कम होगी। इसी के साथ साथ जो खनिज निकाल कर कम्पनी मुनाफा कमा रही है वह खनिज उस कम्पनी ने तो बनाये नहीं हैं। वह खनिज तो अरबों साल में ज़मीन के नीचे तैयार हुए हैं। अब दुबारा तो वह फिर से बनेंगे नहीं। यह खनिज आने वाली पीढ़ियों के लिए तो बचे ही नहीं। कम्पनी ने तो बेच कर मुनाफा कमाया और भाग गई। तो आने वाली पीढ़ियों का हिस्सा कम्पनी का कोई मालिक अदानी अम्बानी बेच कर ऐश करे और आने वाली पीढियां बिना उस खनिज के रह जाएँ यह कौन सी अक्लमंदी हुई।

इसी के साथ साथ इन कंपनियों को खनन का ठेका मिलता है बदले में यह कम्पनियां सरकार को रायल्टी देती हैं। लेकिन खनिज का तो अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य है। कम्पनियां वह तो सरकार को देती ही नहीं। पांच हज़ार का माल पचास रूपये रायल्टी देकर हड़प जाती है। इस मिली भगत से ही नेताओं और अधिकारियों और पुलिस के के स्विस बैंक के खाते भरते हैं।

इस तरह का विकास संविधान विरोधी भी है। संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांत में लिखा है कि राज्य का कर्तव्य होगा कि वह नागरिकों के बीच समानता बढाने की दिशा में काम करेगे। लेकिन जब सरकार लाखों लोगों की ज़मीन छीन कर उन्हें बेघर बेज़मीन और गरीब बना कर एक अमीर पूंजीपति को देती है तो सरकार असमानता बढ़ा रही है। यह तो संविधान विरोधी तरीका हुआ।

इस सब का विरोध होता है। आदिवासी विरोध करते हैं। सरकार पुलिस और अर्ध सैनिक बल भेज कर इन इलाकों पर कब्ज़ा करती है। पुलिस और सुरक्षा बल इन आदिवासियों की हत्या करते हैं। निर्दोषों को जेल में डालते हैं। औरतों से बलात्कार करते हैं। आदिवासियों के घरों में आग लगाते हैं। भयानक मानवाधिकारों का हनन करते हैं।

जब मानवाधिकार कार्यकर्ता वकील सामाजिक कार्यकर्ता इस सब का विरोध करते हैं तो सरकार इन लोगों को जेल में डाल देती है। आज भी अनेकों सामजिक कार्यकर्ता जेलों में पड़े हुए हैं। सोनी सोरी और लिंग कोडोपी के प्राइवेट पार्ट्स में पत्थर भरे गये और मिर्च से भरे डंडे डाले गये थे।

आज भारत से सबसे ज्यादा संख्या में अर्धसैनिक कहाँ हैं। वह आदिवासी इलाकों में है। वह वहाँ क्या करने गये हैं ? क्या आदिवासी की सुरक्षा करने के लिए ? नहीं, बल्कि चंद पूंजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए अपने ही देशवासियों को मारने और डराने गये हैं। सिपाही भी गरीब का बच्चा है। दोनों तरफ गरीब है। मरने वाला भी मारने वाला भी। लेकिन इसका फायदा उठाने वाला अमीर पूंजीपति है। उसकी जेब में सुरक्षा बल भी है, सरकार भी है कोर्ट भी है।

छत्तीसगढ़ में सन 2005 में भाजपा सरकार ने साढ़े छह सौ गाँव में आग लगाई थी। हजारों निर्दोष आदिवासी जेलों में ठूंसे गये। हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किये गये लेकिन आज तक अदालत ने किसी आदिवासी को न्याय नही दिया।

यह विकास का माडल ना सिर्फ आदिवासी का नुकसान करेगा बल्कि यह आपकी अदालतों को खा जाएगा आपके न्याय तंत्र को नष्ट कर देगा। यह आपके संविधान को बेकाम कर देगा। यह कानून को बेअसर कर देगा। इस लुटेरे विकास के माडल के रहते आप वह सब कुछ नष्ट कर देंगे जिसे पाने के लिए आपने यह देश बनाया था और जिस न्याय और शांति के समाज की आप कल्पना करते हैं। इस लुटेरे विकास के माडल के रहते आपके बच्चों को भ्रष्ट और क्रूर पुलिस बेईमान बिके हुए नेता और बिकी हुए अदालतें मिलेंगी।

कोई भी देश अपना वर्तमान और भविष्य खुद ही बनाता है। हम जिस रास्ते चलेंगे वही मंजिल हमें मिलेगी।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध