Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

बांग्लादेश की आजादी के लिए आंदोलन करने वालों को फिलिस्तीन का समर्थन करने में डर क्यों?

Janjwar Desk
22 May 2021 2:12 PM IST
बांग्लादेश की आजादी के लिए आंदोलन करने वालों को फिलिस्तीन का समर्थन करने में डर क्यों?
x

(फिलिस्तिन शुरू से भारत का मित्र रहा है, पर मोदी जी के शासन ने यह परंपरा खुले तौर पर बदल चुकी है)

प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र में जिस देश का समर्थन करने का दंभ भर रहे हैं, उसी के लिए देश में शांतिपूर्ण समर्थन करने वालों को जेल भेज रहे हैं...

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

कश्मीर के श्रीनगर में एक चित्रकार मुदासिर गुल रहते हैं। इजराइल द्वारा गाजा में हमले के बाद से उन्होंने झेलम नदी पर बने एक पुल के पास के एक चित्र बनाया - जिसमें एक रोटी हुई महिला थी, जिसके सर पर स्कार्फ की जगह फिलिस्तीन का झंडा था। इस चित्र पर बड़े सफ़ेद अक्षरों में लिखा था – हम फिलिस्तीनी हैं (WE ARE PALESTINE)। मुदासिर गुल अब जेल में हैं और पुलिस ने इस चित्र को मिटा दिया है।

कश्मीर में ही सरजन बरकती एक मस्जिद के मौलाना हैं, उन्होंने एक दिन नमाज के बाद लोगों से फिलिस्तिन का समर्थन करने को कहा था। सरजन बरकती अब जेल में हैं। फिलिस्तिन के समर्थन में आवाज उठाने के लिए कश्मीर में अबतक 21 लोगों को जेल भेजा गया है – 20 श्रीनगर में और 1 शोपियां में।

पुलिस के अनुसार इन लोगों ने अशांति और अराजकता फैलाने का प्रयास किया है। यह तो पुलिस ही बता सकती है कि रोती महिला के चित्र से अशांति कैसे फ़ैल सकती है। इनमें से किसी को भी अपने काम करने के समय पर पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया, बल्कि आधी रात के बाद घर से गिरफ्तार किया गया है।

हमारे प्रधानमंत्री के इजराइल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू से घनिष्ट रिश्ते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के दौर में इजराइल से अनेक समझौते किये गए हैं और सामरिक समझौते भी किये गए हैं। इसके बाद भी बढ़ाते अंतर्राष्ट्रीय दबाव को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र में अस्पष्ट शब्दों में ही सही, पर भारत ने फिलिस्तीन का समर्थन किया।

दूसरी तरफ हमारे प्रधानमंत्री जी जब 26 मार्च को बांग्लादेश की आजादी के स्वर्ण जयन्ती समारोह में गए थे तब बड़े जोरशोर से एक खुलासा किया था, "तब मैं बीस-बैस साल का रहा होऊंगा, मैंने भी दिल्ली में अपने अन्य साथियों के साथ पूर्वी पाकिस्तान में किये जा रहे दमनचक्र और आजादी के लिए प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। यह धरना-प्रदर्शन का मेरा शुरुआती दौर था। इस प्रदर्शन के कारण मुझे जेल भी जाना पड़ा था"। मीडिया इस वक्तव्य को अनेक दिनों तक भुनाता रहा था, और प्रधानमंत्री जी को दमन और अन्याय के खिलाफत का मसीहा साबित करता रहा था।

अब जब मोदी जी प्रधानमंत्री हैं और संयुक्त राष्ट्र में जिस देश का समर्थन करने का दंभ भर रहे हैं, उसी देश के शांतिपूर्ण समर्थन करने वालों को जेल भेज रहे हैं। कश्मीर के पत्रकारों को तो बोलने की आजादी भी नहीं है, और मेनस्ट्रीम मीडिया तो प्रधानमंत्री जी का एचएमवी (हिज मास्टर्स वौइस्) है इसलिए कभी कोई प्रश्न पूछेगा नहीं। आखिर, एक आंसू बहाती महिला के चित्र से कौन सी क़ानून-व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है, या फिर माहौल खराब हो जाता है।


फिलिस्तिन शुरू से भारत का मित्र रहा है, पर मोदी जी के शासन ने यह परंपरा खुले तौर पर बदल चुकी है। संयुक्त राष्ट्र में समस्या यह थी कि अमेरिका इस समय हमले का जिम्मेदार इजराइल को मान रहा है, इसलिए नहीं चाहते हुए भी अस्पष्ट ही सही पर फिलिस्तिन का साथ देना भारत की मजबूरी थी।

इजराइल के युद्ध छेड़ने से पहले कुछ तथ्यों को जानना भी जरूरी है। पिछले 2 वर्षों से इजराइल में सत्ता के लिए दौड़ चल रही है। इस बीच चार बार चुनाव कराये गए पर कोई भी सरकार बनाने में असमर्थ रहा है। इस बीच प्रधानमंत्री नेतान्याहू पर भ्रष्टाचार के अनेक संगीन आरोप लगाए गए है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार जब तक किसी को बहुमत नहीं मिलता नेतान्याहू प्रधानमंत्री बने रहेंगें।

प्रधानमंत्री पद से चिपके रहना नेतान्याहू की मजबूरी भी है, क्योंकि इसी कुर्सी के कारण वे अबतक भ्रष्टाचार के आरोप साबित होने के बाद भी जेल में नहीं भेजे गए हैं। कुछ महीनों के भीतर फिर से चुनाव कराये जाने हैं। जिस तरह अपने देश में चुनाव जीतने के लिए कभी राम मंदिर, कभी पाकिस्तान पर हमला, कभी गलवान वैली की झड़प या फिर तमाम सरकारी जांच एजेंसियों का विपक्ष पर हमला कराये जाते हैं, यही मन्त्र दुनियाभर में दक्षिणपंथी और तथाकथित सत्तालोभी शासकों द्वाया आजमाया जाता है।

इजराइल द्वारा हमले की शुरुआत से कुछ दिन पहले ही विपक्षी नेता येर लपिद ने दावा किया था कि उनकी अनेक विपक्षी दलों से बात हो चुकी है और वे जल्दी ही सरकार बना लेंगें। इन दलों में अरब पार्टी भी शामिल थी, और यदि ऐसा होता तो इजराइल में पहली बार अरब पार्टी की सत्ता में भागीदारी होती। जाहिर है येर लपिद का यह दावा नेतान्याहू के लिए खतरे की घंटी था।

जाहिर है, येर लपिद को कोई भी मौका नहीं देने के लिए नेतान्याहू को यहूदियों में छद्म राष्ट्रवाद जगाना था, इसीलिए इजराइल ने इतने बड़े पैमाने पर गाजा में हमले किये हैं। येर लपिद ने इस पूरी घटना के बाद कहा है कि पूरी दुनिया को यह समझाना चाहिए कि आग तभी क्यों लगती है, जब नेतान्याहू को इसकी जरूरत होती है, या फिर फायदा पहुँचाना होता है।

अनेक जानकार अब खुल कर कहने लगे हैं कि इन हमलों से नेतान्याहू को राजनैतिक फायदा पहुंचेगा और अब कुछ और दक्षिणपंथी पार्टियां उनके भ्रष्टाचार को भूलकर उन्हें सहयोग देना शुरू कर देंगीं। जाहिर है नेतान्याहू अगले चुनाव परचा में पहले से अधिक आत्मविश्वास से उतरेंगें और राष्ट्रवाद का नया पाठ पढ़ायेंगें।

इजराइल के अन्दर भी गृहयुद्ध जैसे हालत हैं और यहूदी और अरब अब बिलकुल अलग और विरोधी खेमे में हैं। इस ध्रुवीकरण का फायदा भी नेतान्याहू को ही मिलेगा, जैसा भारत में बीजेपी को मुस्लिमों के विरुद्ध जहर उगलने पर मिलता है।

Next Story

विविध