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विमर्श

RSS मुख्यालय पर प्रदर्शन कर दुनियाभर में सुर्खियां बटोरने वाले वामन मेश्राम कौन हैं, क्या करने की है उनकी मंशा?

Janjwar Desk
7 Oct 2022 2:00 PM IST
RSS मुख्यालय पर प्रदर्शन कर दुनियाभर में सुर्खियां बटोरने वाले वामन मेश्राम कौन हैं, क्या करने की है उनकी मंशा?
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Waman Meshram Vs RSS : जमीनी स्तर पर आरएसएस ( RSS ) को चुनौती देने का काम न तो कांग्रेस ने और न ही वामदलों ने किया। क्षेत्रीय दलों के नेता केवल बयान देने के लिए हैं। पहली बार अगर किसी ने संघ को उसके घर में घुसकर चुनौती दी है तो वो है वामन मेश्राम ( Waman Meshram ) का संगठन बामसेफ ( BAMCEF ) और बीएमएम ( Bharat mukti Morcha )।

वामन मेश्राम बनाम RSS संघर्ष पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

Waman Meshram Vs RSS : एक दिन पहले भारत मुक्ति मोर्चा ( Bharat Mukti Morcha ) और बामसेफ ( BAMCEF ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ( Waman Meshram ) ने दुनिया की सबसे बड़ी गैर सरकारी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS headquarter ) के मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया। उन्होंने हजारों की संख्या में अपने समर्थकों के साथ न केवल आरएसएस ( RSS ) के खिलाफ प्रदर्शन किया बल्कि केंद्र सरकार से उसपर बैन लगाने की भी मांग कर संस्था के कर्ताधर्ताओं की नींद हराम कर दी है। हालांकि, नागपुर ( Nagpur ) में इजाजत न मिलने के बावजूद प्रदर्शन करने पर उन्हें हिरासत में लिया गया, लेकिन इसका भी लाभ उन्हें ही मिला। वह देश-दुनिया में सुर्खियों में छाये रहे। साथ ही विपक्षी दलों को ये भी संदेश दिया कि आरएसएस और उसकी पार्टी भाजपा से निपटने का सही तरीका क्या है।

यहां पर सवाल यह है कि वामन मेश्राम ( Waman Meshram ) कौन हैं, जिन्होंने आरएसएस ( RSS ) को उसके घर में घुसकर ललकारने का जोखिम उठाया है। इस तरीके से जमीनी स्तर पर आरएसएस को चुनौती देने का काम न तो कांग्रेस ने और न ही वामदलों ने किया। क्षेत्रीय दलों के नेता केवल बयान देने के लिए हैं। पहली बार अगर किसी ने संघ को उसके घर में घुसकर चुनौती दी है तो वो है वामन मेश्राम का संगठन बामसेफ और बीएमएम। यानि अब आरएसएस को उसी के अंदाज में चुनौती जवाब दिया जा सकता है। आरएसएस और भाजपा को काबू में करने के लिए दिल्ली तक दौड़ लगाने की जरूरत नहीं है। मेश्राम ( Waman Meshram ) के मुताबिक नागपुर कूच और जनता का साथ ही भगवा दल का इलाज है।

वामन मेश्राम की ब्राह्मणवादी सोच से आजादी की मुहिम को मीडिया ने 6 अक्टूबर को हल्के में लिया, लेकिन नागपुर में कोहराम मचते ही मुख्यधारा की मीडिया यह बताने पर मजबूर हुई कि बामसेफ और बीएमएम ( भारत मुक्ति मोर्चा ) के नेता ने कैसे तहलका मचा दिया और आरएसएस के मुख्यालय पर प्रदर्शन कर संघ के चिंतकों को चिंता में डाल दिया है।

कौन हैं वामन मेश्राम

बहुजन समाज को सही दिशा और दशा देने वाले महापुरुष कांशीराम, डीके खापर्डे और दीनाभाना जी के सहयोग से गठित बामसेफ नामक संगठन को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने वाले शख्स हैं वामन चिंधुजी मेश्राम। भारत मुक्ति मोर्चा और बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम का जन्म 1948 में महाराष्ट्र के यवतमाल जिले की दरवा तहसील में स्थित रामगांव में हुआ था। वामन मेश्राम ने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूली शिक्षा दरवा में ली थी। इसके बाद वे आगे की शिक्षा के लिए औरंगाबाद चले गए। वामन मेश्राम ने सार्वजनिक जीवन में शामिल होने पर विचार उसी समय शुरू कर दिया जब वे 1970 के दशक की शुरुआत में औरंगाबाद में बाबा साहेब अम्बेडकर कॉलेज में थे। 1975 में मेश्राम बामसेफ से जुड़े।

तो काशीराम का लेनिन बनने की राह पर अग्रसर हैं मेश्राम

कांशीराम और डीके खापर्डे साहेब के बाद बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी वामन मेश्राम ने संभाली। आज बामसेफ और भारत मुक्ति समाज को उन्होंने वैश्विक स्तर पर चर्चा में ला दिया है। काशीराम की सोच के इतर उन्होंने आरएसएस की तर्ज पर बामसेफ को गैर पंजीकृत के बदले पंजीकृत संस्था में तब्दील किया। भारत में बहुजन मूलनिवासी की मुक्ति का आंदोलन चला है। आज विदेशों तक बहुजनों आंदोलन को फैलाने का श्रेय वामन मेश्राम को ही जाता है। काशीराम की सोच को जमीन पर उतारने को लेकर मेश्राम का ये अंदाज कहीं कुछ वैसा ही तो नहीं, जैसा लेनिन ने मार्क्स के साम्यवाद के सिद्धांत में संशोध नकर बोलशेविक क्रोति के जरिए रूस में लागू कर दिखाया और फिर चीन होते हुए समाजवाद दुनियाभर में फैल गया। ये बात अलग है कि वर्तमान में साम्यवाद खुद अपनी प्रासंगिकता की संघर्ष कर रहा है। फिलहाल, मेश्राम का मूलनिवासी मुक्ति का आंदोलन का मकसद देश से विदेशियों को भगाने तक सीमित है। इसलिए किसी अन्य से तुलना करना समुचित नहीं माना जाएगा।

हल्का नहीं, गंभीर मसला है दलितों का यह आंदोलन

वामन मेश्राम ( Waman Meshram ) के चरणबद्ध आंदोलन का ही नतीजा है कि भारत मुक्ति मोर्चा 31 राज्य, 674 जिलों, 4 हजार से अधिक तहसीलों, 22 हजार से ज्यादा ब्लाक और डेढ़ लाख से ज्यादा गांवों में आंदोलन करने के लिए सक्रिय है। इस आंदोलन का पहला चरण 14 अक्टूबर को देशभर के सभी जिलों में धरना प्रदर्शन से शुरू होगा। दूसरा 22 अक्टूबर को श्रृंखलाबद्ध उपवास रखा जाएगा। तीसरे चरण में 29 अक्टूबर को देशभर में प्रदर्शन रैली का आयोजन किया जाएगा। 06 नवंबर को देशभर में आरएसएस के खिलाफ जेल भरो आंदोलन होगा। इसके लिए उनकी ओर से 11 लाख लोगों को गिरफ्तारी देने की मुहिम पर काम जारी है। वामन की तैयारी का इसी अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो क्या करने वाले हैं।

RSS से इतना नाराज क्यों हैं मेश्राम

बामसेफ ( BAMCEF ) और बीएमएम ( BMM ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मेश्राम एक आतंकवादी और संविधान विरोधी संगठन मानते हैं। उसकी गतिविधियों पर देशभर में बैन लगाना चाहते हैं। उनका दावा है कि आरएसएस के आतंकवादी होने के हजारों दस्तावेजी सबूत हमारे पास है। उनका कहना है कि यही वजह है कि हम मोदी सरकार से आरएसएस पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। उनका दावा है कि वो भारत में नये सिरे से मूलनिवासी यानि बहुजनों की आजादी के आंदोलन शुरुआत हो चुके हैं। आरएसएस के खिलाफ ऐलान-ए-जंग का बिगुल बजाकर ब्राह्मणों में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। वह दिन अब दूर नहीं जब हम ब्राह्मणवाद से आजादी लेकर रहेंगे।

EVM दुनिया की सबसे खराब चुनावी प्रथा

वामन मेश्राम ( Waman Meshram ) ने 2014 में ही ईवीएम के खिलाफ जन आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने और उनके संगठन भारत मुक्ति मोर्चा (बीएमएम) ने भारत में चुनावी प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को बंद करने की मांग करते हुए मार्च 2017 से देश भर में पांच चरणों में विरोध अभियान शुरू किया था। वह ईवीएम के उपयोग को दुनिया का सबसे खराब चुनावी प्रथा मानते हैं। इसके खिलाफ बीएमएम के लोग तब तक लड़ते रहेंगे जब तक उनका उपयोग बंद नहीं हो जाता। मेश्राम ने कहा कि उन्होंने भारत के चुनाव आयोग (ईसी) के खिलाफ एक याचिका दायर कर ईवीएम में वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) संलग्न करने के लिए कहा था, लेकिन इसमें जानबूझकर देरी की जा रही है। इसमें देरी करने से केवल दो संगठनों, राजनीतिक दलों को ही मदद मिलने वाली है। अगर हम अपने देश के लोकतंत्र को जीवित रखना चाहते हैं, तो चुनाव के लिए बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योंकि उनमें हेराफेरी नहीं की जा सकती। हमारी याचिका पर शीर्ष अदालत ने 8 अक्टूबर 2013 के अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि ईवीएम मशीनों के जरिए फिक्सिंग या हेराफेरी को रोकने के लिए उसे वीवीपैट मशीनों को जोड़ा जाना चाहिए, लेकिन दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। 2014 और 2019 के चुनाव में उनकी पार्टी ने कई सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन लगभग सभी सीटों पर जमानत हार गई। इस बारे में चुनाव आयोग का कहना है कि केंद्र सरकार वीवीपैट मशीनों को संलग्न करने के लिए धन उपलब्ध नहीं करा रही है, लेकिन चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है। इसे राष्ट्रपति के पास जाना चाहिए या एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी चाहिए थी। ईसी को परेशानी क्या है इस बात को जानने का सभी नागरिकों को अधिकार है।

इन लोगों को मेश्राम मानते हैं अम्बेडकरवादी

बामसेफ और बीएममए अध्यक्ष के मुताबिक जो लोग भारत के मूलनिवासी बहुजन समाज की छ:हजार जातियों को एक उद्देश्य, एक विचार, एक कार्यक्रम के आधार पर संगठीत कर देश में समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं भाईचारे पर आधारीत समाज का निर्माण करने के लिए प्रतिदिन प्रयास करते हैं, जो लोग अपने दबे-कुचले भाईयों को ब्राह्मणवाद की गुलामी से मुक्त करने के लिए प्रयास करते हैं, केवल वही लोग अम्बेडकरवादी हैं।

पीएम मोदी को मानते हैं नामधारी

वामन मेश्राम के आह्वान पर ही 25 मई 2022 को ओबीसी की जाति आधारित गिनती के लिए भारत बंद का आयोजन किया गया था। पीएम नरेंद्र मोदी के ओबीसी होने के दावों पर वह कहते हैं कि हमने सोचा था कि मोदी प्रधानमंत्री ओबीसी हैं तो वह जाति आधारित जनगणना की इजाजत देंगे, पर उन्होंने वैसा नहीं किया। इससे सिद्ध होता है कि मोदी के पास निर्णय लेने का पावर नहीं हैं। निर्णय लेने का अधिकार आरएसएस के पास है। अन्यथा जो प्रधानमंत्री कहता है कि मैं ओबीसी का हूं तो ओबीसी की गिनती करने का निर्णय लेने का अधिकार मोदी के ही पास है। मगर नरेंद्र मोदी फैसला नहीं कर पर रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि नरेंद्र मोदी के पास फैसला करने का अधिकार नहीं है। फैसला करने का अधिकार आरएसएस के पास है। यानि आरएसएस ने मोदी को चेहरा दिखाने वाला प्रधानमंत्री बनाया है, इसलिए मैं उन्हें कामधारी नहीं, नामधारी मानता हूं। बाबासाहेब आंबेडकर ऐसे लोगों के लिए कहते हैं नॉमिनेटेड प्राइम मिनिस्टर यानी नामधारी प्रधानमंत्री कहते थे। मोदी को आरएसएस के ब्राम्हणों ने नॉमिनेटेड किया हुआ है। बाबासाहेब आंबेडकर की भी इस बात को लेकर गांधी जी के साथ लड़ाई होती थी। बाबा साहब कहते थे हमें नॉमिनेटेड प्रतिनिधित्व नहीं चाहिए। हमें सच्चा प्रतिनिधित्व चाहिए। अगर लोकतंत्र आएगा तो लोगों को सच्चे प्रतिनिधित्व का अधिकार मिले।

गद्दारों को जानो, गद्दारों को पहचानों

वामन मेश्राम ( Waman Meshram ) राष्ट्रीय स्तर पर इस मुहिम की शुरुआत करने वाले हैं। गद्दारों को जानो गद्दारों को पहचानो के तहत देश के गद्दारों के घर के पास कार्यक्रम होगा। यह सब कानून और संविधान के दायरे में होगा। जो लोग संगठन का पैसा लेकर भागे हैं, उनका पंचपक्वान के साथ स्वागत होगा। गद्दारों का देशभर में सबूत के साथ डॉक्यूमेंट पब्लिश किया जाएगा। गद्दार किसे माना जाएगा, ये बामसेफ और बीएमएम तय करेगा। मेश्राम की इस मुहिम से साफ है कि उनका बहुजन समाज के हित में इस आंदोलन अंत ब्राह्मणवादियों के अंत से होगा, जिसे वो विदेशी मानते हैं। एक हद तक उनकी नजर में व्यवस्था को प्रभावित करने वाला बौद्धिक और नौकरशाही तबका ब्राह्मणवादी या यूं कहें कि विदेशी है। उसका मूल स्थान इंडिया नहीं है। उसे बाहर करने के बाद ही बहुजनों का भला हो सकता है।

यहां पर सवाल यह है कि क्या इस आदर्श को मेश्राम हासिल कर पाएंगे, राम राज्य का आदर्श, मार्क्स का साम्यवाद, प्लूटो का फिलॉसफर किंग, गांधी का अंत्योदय या सर्वोदय, जय प्रकाश नारायण का समग्र क्रांति के बाद का समाज और एमएन रॉय का नव मानववाद आज भी एक सपना है। ऐसा इसलिए कि आप किसी भी लोकतांत्रिक या अलोकतांत्रिक व्यवस्था से प्रभावी तबके को बाहर कैसे निकाल सकते हैं। उसे पराया कैसे मान सकते हैं। कोई भी व्यवस्था बनाने के प्रयास में इस तरह का छाया संगठन स्वत:स्फूर्त तरीके से अस्तित्व में आ जाते हैं। यह औपचारिक संगठन के रूप में अस्तित्व में कभी नहीं दिखाई देते लेकिन अनौपचारिक संगठन के रूप यह हर दौर में असरकारी साबित होते हैं।

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