Nobel Peace Prize 2021 : सत्ता के खिलाफ निर्भीकता से आवाज बुलंद करने वाले 2 बहादुर पत्रकारों को नोबेल शांति पुरस्कार
फिलीपींस की पत्रकार मारिया रसा और रूसी पत्रकार दिमित्री मुराटोव ने के नाम रहा 2021 का नोबेल शांति पुरस्कार
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Nobel Peace Prize 2021, जनज्वार। इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize 2021) की घोषणा निश्चित तौर पर चौंकाने वाली है, क्योंकि इस बार दुनिया के दो निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारों (courageous and independent journalists) को यह पुरस्कार दिया गया है। इनके नाम हैं फिलीपींस की मारिया रेसा (Maria Ressa of Philippines) और रूस के दमित्री मुराटोव (Dmitry Muratov of Russia)।
फिलीपींस की 58 वर्षीय मारिया वेब न्यूज़ पोर्टल राप्प्लेर डॉट कॉम (Rappler dot com) की संस्थापक हैं और इससे पहले वे सीएनएन और एबीएस-सीबीएन के साथ काम कर चुकी हैं। सरकार के विरुद्ध लिखने के कारण उनपर फिलीपींस की सरकार द्वारा अलग-अलग मामलों में 11 मुकदमे दायर किये गए हैं, कुछ में उन्हें दोषी भी करार दिया गया है, पर वे जमानत पर जेल से बाहर हैं और निर्भीकता से पत्रकारिता कर रही हैं।
भारत की तरह ही फिलीपींस में सरकार का विरोध करने वालों को सोशल मीडिया (social media) पर सरकारी अंधभक्तों द्वारा धमकाया और प्रताड़ित किया जाता है। कुछ समय पहले मारिया के सोशल मीडिया अकाउंट पर हरेक घंटे औसतन 90 धमकी भरे मेसेज आते थे, पर मारिया इससे भी विचलित नहीं हुईं। मरिया ने पुरस्कारों की घोषणा के ठीक बाद कहा कि इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार निष्पक्ष पत्रकारों के कठिन परिश्रम को मान्यता देता है।
उनके अनुसार पत्रकारिता की मूल भावना ही तथ्यात्मक निष्पक्ष पत्रकारिता है, और बिना तथ्यों की दुनिया झूठ और बेईमानी पर टिकी होती है(A world without facts is a world without truth and without trust)। मारिया रेसा इससे पहले टाइम पत्रिका द्वारा 2018 में घोषित पर्सन ऑफ़ द ईयर (Person of the Year by Time magazine in 2018) भी रह चुकी हैं। इसी वर्ष यूनेस्को ने प्रतिष्ठित प्रेस फ्रीडम पुरस्कार (Press Freedom Award 2021 by UNESCO) फिलीपींस की निर्भीक और जुझारू पत्रकार मारिया रेसा को दिया है।
रूस के 59 वर्षीय दमित्री मुराटोव ने वर्ष 1993 से एक निष्पक्ष समाचार पत्र, नोवोया गजेटा (Novaya Gazeta), का प्रकाशन शुरू किया था और वर्ष 1995 से इसके एडिटर इन चीफ हैं। रूस में निष्पक्ष पत्रकारिता और राष्ट्रपति पुतिन की नीतियों का विरोध जानलेवा होता है, पर तमाम धमकियों और पाबंदियों के बाद भी दमित्री मुराटोव पत्रकारिता के प्रति अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुए।
पुरस्कारों के ठीक बाद रूस के कानून मंत्रालय ने दमित्री मुराटोव के साथ कुछ और पत्रकारों को विदेशी एजेंट (Foreign Agent) करार दिया – इसका मतलब है इन समाचार पत्रों पर आर्थिक पाबंदी के साथ ही अन्य बहुत सी पाबंदियां। पुरस्कार की घोषणा के ठीक बाद दमित्री मुराटोव ने कहा कि वे रूस के निष्पक्ष पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व करते रहेंगे (We will continue to represent Russian Journalism which is now being suppressed) और यह पुरस्कार उनके समाचार पत्र और रूस के उन तमाम पत्रकारों को समर्पित है जिन्हें निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पडी।
उन्होंने अनेक मारे गए पत्रकारों का नाम भी लिया, जैसे इगोर दोम्निकोव, युरी श्चेकोचिखिंन, एना स्तेपनोवना, नासत्या बबुरोवा, नताशा एस्तेमिरोवा और सत्स मर्केलोव (Igor Domnikov, Yuri Shchekochikhin, Anna Stepanovna, Nastya Baburova, Natasha Estemirova & Stas Markelov)। उन्होंने कहा कि ये सभी पत्रकार लोगों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहाल करने के प्रयासों में मारे गए।
इस वर्ष के पुरस्कार प्रजातंत्र में निष्पक्ष, स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता के महत्त्व को उजागर करते हैं तो दूसरी तरफ ऐसे पत्रकारिता दिनोदिन खतरनाक होती जा रही है। नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी की अध्यक्ष बेरिट रिस-एंडरसन (Berit Reiss-Anderson, Chairperson of Norwegian Nobel Committee) ने कहा, शासकों की तानाशाही, झूठ और युद्ध के दुष्प्रचार से स्वतंत्र, निष्पक्ष और तथ्यपरक पत्रकारिता हमें बचाती है, प्रजातंत्र को बचाती है।
मारिया रेसा और दमित्री मुराटोव ने अभिव्यक्ति की आजादी की लड़ाई निर्भीक होकर लड़ी है और ऐसी लड़ाई प्रजातंत्र को सुरक्षित रखने के साथ ही दुनिया में अमन कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बेहतर दुनिया और बिना हथियारों वाली दुनिया बिना प्रेस की आजादी के संभव ही नहीं है। बेरिट रिस-एंडरसन ने कहा कि मारिया रेसा और दमित्री मुराटोव केवल दो पत्रकारों के नाम नहीं हैं, बल्कि बल्कि उन सभी पत्रकारों के प्रतिनिधि है जो प्रजातंत्र और प्रेस की आजादी के सन्दर्भ में खतरनाक होती जा रही दुनिया में भी अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता के आदर्शों के लिए डटे हैं, अडिग खड़े हैं।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) के सेक्रेटरी जनरल के अनुसार इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार एक साथ ही गर्व और चिंता का अहसास करते हैं। गर्व इसलिए क्योंकि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए यह असाधारण सम्मान है और चिंता इसलिए क्योंकि ऐसी पत्रकारिता और पत्रकार दुनियाभर में खतरे में हैं। एक तथ्य यह भी है कि इस वर्ष शांति पुरस्कारों के लिए नामित नामों में एक नाम रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का भी था। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार जिन 180 देशों के आंकड़े उनके पास उपलब्ध हैं उनमें से 73 प्रतिशत देशों में पत्रकारिता एक गंभीर चुनौती है और खतरनाक भी।
स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारों के साथ शारीरिक प्रताड़ना, चरित्र हनन, सरकारों द्वारा प्रतिबन्ध और आर्थिक दबाव पूरी दुनिया में सामान्य हो चला है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में अब तक दुनिया में 24 पत्रकारों की ह्त्या की जा चुकी है और 350 से अधिक पत्रकारों को सरकारें विभिन्न आरोपों में जेल में बंद कर चुकी हैं।
यूनेस्को के अनुसार मारिया रेसा एक ऐसी पत्रकार हैं जिन्होंने पत्रकारिता के पैमाने को और बड़ा किया है। उन्होंने तमाम विरोध और विपत्तियाँ झेलते हुए भी अपने पेशे को झुकने नहीं दिया और ना ही शर्मसार होने दिया। हमारे देश के तथाकथित पत्रकारों को और अधिकतर जनता को मारिया और दमित्री मुराटोव के योगदान को समझना कठिन है क्योंकि यहाँ पत्रकार तो सरकारी प्रचार तंत्र हैं, जो सरकार से कीमत वसूलकर जनता को बरगलाते हैं, और जनता वही सच समझती है जो समाचार चैनल दिनभर दिखाते हैं। खोजी, निष्पक्ष, तथ्यपरक और निर्भीक पत्रकारिता तो हमारे देश से वर्षों पहले ही विलुप्त हो चुकी है, आज जिसे मीडिया कहते हैं वह केवल जनता को कुचलती शासकों की आवाज है।