Begin typing your search above and press return to search.
दुनिया

कोरोना से बदनाम चीन ने दबदबा कायम करने के लिए किया पूर्वी लद्दाख में अतिक्रमण

Janjwar Desk
13 Jun 2020 2:49 PM IST
कोरोना से बदनाम चीन ने दबदबा कायम करने के लिए किया पूर्वी लद्दाख में अतिक्रमण
x
भारतीय राजदूत का मानना है कि भारत और चीन के बीच सैनिक हाथापाई के पीछे एक कारण ये है कि इसके माध्यम से चीनी ये सन्देश देना चाहते हैं कि भारत और चीन सीमा निर्धारण की बात जल्द से जल्द आगे बढ़ाएं।

चीन में भारतीय राजदूत गौतम बम्बावाले

जनज्वार। भारत-चीन संबंधों को नए साँचे में ढालने की ज़रुरत है। इन दोनों देशों के बीच रिश्ते आज भी उसी सांचे में ढाल कर तय किये जा रहे हैं जो साँचा दिसंबर 1988 में अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन के शक्तिशाली नेता देंग शाओपिंग के साथ बातचीत में तय किया था। इस साँचे की मुख्य बात ये है कि भारत और चीन सीमा के सवाल पर आपसी बातचीत करते रहें लेकिन राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में रिश्तों का सिलसिला आगे बढ़ता रहे।

ये बातें चीन में भारत के राजदूत गौतम बम्बावाले ने रीडिफ़ डॉट कॉम की अर्चना मसीह से एक साक्षात्कार में कहीं। गौरतलब है कि बम्बावाले अप्रैल 2018 में चीन में हुए वुहान सम्मेलन के दौरान भारतीय राजदूत के रूप में वहां मौजूद थे। इस सम्मेलन में ही भारत और चीन डोकलाम तथा लद्दाख जैसी सैन्य झड़पों से बचे रहने के लिए तैयार हुए थे।

भारतीय राजदूत का मानना है कि भारत और चीन के बीच सैनिक हाथापाई या सीमा अतिक्रमण की घटनाएं भड़क उठने के पीछे एक कारण ये है कि इसके माध्यम से चीनी ये सन्देश देना चाहते हैं कि भारत और चीन सीमा निर्धारण की बात जल्द से जल्द आगे बढ़ाएं। जब तक दोनों देशों की सेनाओं को पता नहीं होगा कि सीमा रेखा कहाँ है, इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी।

अर्चना द्वारा पूछे गए सवाल, कि आपके विचार में वुहान में किये संकल्पों को दरकिनार कर वर्तमान में लद्दाख में तनातनी के पीछे क्या कारण हो सकता है, के जवाब में राजदूत बम्बावाले कहते हैं- सन 1988 से अब तक दुनिया बहुत बदल चुकी है, भारत और चीन भी बदल गए हैं। इसलिए भारत-चीन संबंधों को सुचारु रूप से चलाने के लिए नए नए नमूने और साँचे की ज़रुरत है।

वुहान में मुख्य उद्देश्य यही था कि एक नया नमूना, एक नया साँचा ढूंढा जाए। लेकिन दुर्भाग्य है कि वुहान और ममलापुरम की बैठकों के बावजूद अभी तक खोज चल ही रही है। मुझे लगता है कि यह जानने के लिए कि ऐसा क्यों हुआ, हालात सुधरने का इंतज़ार करना होगा।

अर्चना द्वारा यह पूछे जाने पर कि भारत-चीन संबंधों को चलाने वाला नया साँचा कैसा हो सकता है, बम्बावाले का कहना था कि पिछले तीस सालों में चीन की सैन्य एवं आर्थिक ताक़त बहुत बढ़ी है। निसंदेह भारत की भी बड़ी है लेकिन दोनों की ताक़त में काफी अंतर है।

इसलिए दोनों देशों को आपसी रिश्तों को चलाने के लिए एक नया साँचा खोजना ही होगा। दोनों देशों का राजनीतिक नेतृत्व ही तय करेगा कि ये साँचा कैसा होगा।

आगे अर्चना पूछती हैं- ' चीनी मीडिया कह रहा है कि भारतीय सेनाएं उन इलाक़ों में सैन्य ढांचागत निर्माण कर रहीं थीं जिन्हें चीन अपना इलाक़ा मानता है, आपको लगता है लद्दाख में चीनी आक्रमण का यह एक कारण हो सकता है ?

इसके जवाब में गौतम बम्बावाले कहते हैं- इसके कई कारण हैं जैसे -

1. भारत के हिस्से में जो सड़क-निर्माण और ढांचागत विकास हो रहा है उसको लेकर चीन चिंतित है।

2. दूसरा कारण है चीन द्वारा जैसे को तैसा वाली कहावत अपनाना। उन्होंने पूर्वी लद्दाख में वही किया है जो हमने 2017 में डोकलाम में किया था।

3. इधर चीनी सेना की आक्रामकता बढ़ी है, पहले साउथ चाइना सी, ईस्ट चाइना सी और अब भारत-चीन सीमा पर।

4. चीन भारत को इस बात के भी संकेत दे रहा है कि वो जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र-शासित प्रदेश बनाने से भी नाराज़ है।

5. चीन यह सन्देश भी देना चाह रहा है कि भारत सीमा निर्धारण करने की प्रक्रिया में और तेजी लाये। अभी ये बातचीत दोनों देशों के विशिष्ट प्रतिनिधियों के बीच चल रही है।

जब राजदूत बम्बावाले से पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि लद्दाख में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की कार्यवाही चीन द्वारा कोविड-19 से उबरने के बाद अपना दबदबा स्थापित करने की कार्यवाई का हिस्सा थी? तो उनका कहना था, ' इसमें दो राय नहीं कि कोरोना वायरस महामारी के कारण दुनिया के बड़े हिस्से में जनमत चीन के खिलाफ हो गया। भारत सहित दुनिया के बहुत से देशों में जनता की नज़र में चीन की छवि बिगड़ी है।

परिणामस्वरूप चीन की प्रतिक्रिया काफी आक्रामक हो गई जैसा कि साउथ चाइना सी और भारत-चीन सीमा पर सैन्य आक्रमण में देखा जा सकता है लेकिन मुझे लगता है कि चीनी आक्रामकता उन्हें फायदा पहुँचाने नहीं जा रही है।

अर्चना भारतीय राजदूत से पूछती हैं- ' भारत-चीन के बीच वर्तमान गतिरोध को दूर करने की ज़िम्मेदारी राजनयिकों की जगह सैन्य कमांडर्स को क्यों सौंपी गई ?

गौतम बम्बावाले कहते हैं- 'चालू प्रक्रिया की यह समझ सही नहीं है। सैन्य कमांडरों की मुलाकात से पहले दोनों देशों के विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच चर्चा हुई थी।

बातचीत कई स्तर पर चल रही है और पूर्वी लद्दाख में पैदा गतिरोध बातचीत और समझौते से ही खत्म कर पुरानी स्थिति तक पहुंचा जा सकता है।

अर्चना भारतीय राजदूत से अंतिम सवाल भारत-चीन सीमा के मसले को सुलझाने के बारे में पूछती हैं। इस अत्यंत जटिल मुद्दे को सुलझाने की क्या संभावना दिखती है ?

जवाब में चीन में भारत के राजदूत गौतम बम्बावाले कहते हैं' कुछ साल तो ज़रूर लगेंगे। सीमा तय कर देना और विवाद ख़त्म कर लेना काफी मुश्किल है। इस मामले में हमें गंभीरता पूर्वक आगे बढ़ने की ज़रुरत है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत भी सीमा के सवाल को जल्द से जल्द सुलझाना चाहता है।

(Rediff.com में प्रकाशित इस लेख का संपादित अंश)


Next Story

विविध