फिलीपींस की निर्भीक पत्रकार मारिया रेसा को प्रेस फ्रीडम पुरस्कार, सरकार के खिलाफ लिखने के लिए दर्ज हैं 11 मुकदमे
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। इस वर्ष यूनेस्को ने प्रतिष्ठित प्रेस फ्रीडम पुरस्कार फिलीपींस की निर्भीक और जुझारू पत्रकार मारिया रेसा को दिया है। मारिया वेब न्यूज़ पोर्टल राप्प्लेर डॉट कॉम की संस्थापक हैं और इससे पहले वे सीएनएन और एबीएस-सीबीएन के साथ काम कर चुकी हैं। सरकार के विरुद्ध लिखने के कारण उन पर फिलीपींस की सरकार द्वारा अलग-अलग मामलों में 11 मुकदमे दायर किये गए हैं, कुछ में उन्हें दोषी भी करार दिया गया है, पर वे जमानत पर जेल से बाहर हैं और निर्भीकता से पत्रकारिता कर रही हैं।
भारत की तरह ही फिलीपींस में सरकार का विरोध करने वालों को सोशल मीडिया पर सरकारी अंधभक्तों द्वारा धमकाया और प्रताड़ित किया जाता है। कुछ समय पहले मारिया के सोशल मीडिया अकाउंट पर हरेक घंटे औसतन 90 धमकी भरे मेसेज आते थे, पर मारिया इससे भी विचलित नहीं हुईं। मारिया रेसा इससे पहले टाइम पत्रिका द्वारा 2018 में घोषित पर्सन ऑफ़ द ईयर भी रह चुकी हैं।
पिछले वर्ष मनीला की अदालत ने मारिया रेसा और इसके रिसर्च राइटर रेनाल्डो संतोस को वर्ष 2012 में प्रकाशित एक आर्टिकल के लिए दोषी ठहराते हुए 6 वर्ष के कारावास की सजा सुना दी। इस लेख में एक प्रतिष्ठित व्यापारी और हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के बीच सांठगांठ को उजागर किया था। फिलीपींस के राष्ट्रपति अनेक बार इस न्यूज़ पोर्टल के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं, इसे फेक न्यूज़ साईट करार चुके हैं, इसपर टैक्स के घोटाले के आरोप लगाए गए और लाइसेंस के नवीनीकरण के दौरान भी परेशान किया गया।
हालांकि ये पत्रकार अभी बेल पर बाहर हैं और सर्वोच्च अदालत में अपील का मौका दिया गया है, पर यूरोपीय देशों के पत्रकार संगठन और कुछ सरकारें भी इस मामले को लेकर फिलीपींस सरकार की मुखर आलोचना कर रहे हैं। इन पत्रकारों को साइबर कानूनों के तहत दण्डित किया गया है, और सबसे आश्चर्यजनक यह है कि जब इस मुकदमे को सरकार की तरफ से दायर किया गया था, यानी वर्ष 2012 में फिलीपींस में कोई भी साइबर क़ानून था ही नहीं। मुक़दमा दायर करने के चार महीने बाद देश में पहला साइबर क़ानून बनाया गया था।
यूनाइटेड किंगडम एंड आयरलैंड नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के अनुसार इस मुकदमे में बेशर्मी से सरकार द्वारा तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया था, और सरकार के दबाव में न्यायाधीश ने उन्ही लचर आरोपों को सही माना। यह पूरा मामला एक सत्तालोभी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने के लिए दण्डित करने का है। यूनाइटेड किंगडम के प्रेस की स्वतंत्रता के विशेष प्रतिनिधि अमल क्लूनी, जो इन पत्रकारों के एक वकील भी थे, ने फैसले के बाद कहा कि इससे अधिक बेशर्मी वाला कोई फैसला आ ही नहीं सकता था, और इसका असर केवल फिलीपींस पर ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के देशों के पत्रकारों पर होगा।
यूनेस्को के अनुसार मारिया रेसा एक ऐसी पत्रकार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता के पैमाने को और बड़ा किया है। उन्होंने तमाम विरोध और विपत्तियाँ झेलते हुए भी अपने पेशे को झुकने नहीं दिया और न ही शर्मसार होने दिया। हमारे देश के पत्रकारों को और अधिकतर जनता को मारिया के योगदान को समझाना कठिन है, क्योंकि यहाँ पत्रकार तो सरकारी दलाल हैं, जो सरकार से कीमत वसूलकर जनता को बरगलाते हैं, और जनता वही सच समझती है जो समाचार चैनल दिनभर दिखाते हैं।
पत्रकारिता की मिसाल कायम करने वाली एक और पत्रकार हैं, लौरा इटालियानो। ये कुछ दिनों पहले तक अमेरिका के न्यूयॉर्क पोस्ट नामक समाचारपत्र में कार्यरत थीं। इनसे हाल में ही इनके प्रबंधन ने, जो रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक हैं, एक गलत तथ्यों वाले लेख लिखने को कहा। उन्होंने लेख लिखा, यह लेख प्रकाशित भी हुआ, पर बाद में उन्हें लगा कि यह गलत तथ्यों वाला लेख उन्हें पेशे के मौलिक सिद्धांतों के विपरीत है और फिर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। यह लेख अमेरिका में शरणार्थी बच्चों और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से सम्बंधित था। इस लेख में बताया गया था कि अमेरिका में शरणार्थी बच्चों को एक वेलकम किट डी जाती है, जिसमें कमला हैरिस की पुस्तक भी शामिल है। दरअसल इसका मकसद एक सनसनी फैलाना था कि कमला हैरिस के पुस्तकों की सरकारी खरीद की जा रही है।
इस लेख को रिपब्लिकन समर्थित मीडिया ने खूब उछाला, जबकि वास्तविकता एकदम इसके विपरीत है। यह सच है की कमला हैरिस ने 2019 में बच्चों के लिए एक पुस्तक प्रकाशित कराई थी, Superheroes are Everywhere। पर उनकी पुस्तक को किसी सरकारी संस्था ने नहीं खरीदा है। दक्षिण कैलिफ़ोर्निया के लॉन्गबीच पर शरणार्थी बच्चों का एक कैम्प है, जहां बच्चों के मनोरंजन के लिए स्थानीय निवासियों से पुस्तकों और खिलौनों के मदद की अपील की गयी थी।
वहीं पर किसी स्थानीय निवासी ने अनेक पुस्तकें दान में दी थी, जिसमें से एक पुस्तक कमला हैरिस की भी थी। अमेरिका में शरणार्थी बच्चों के जितने भी कैम्प हैं, उनमें से लॉन्गबीच पर ही इस पुस्तक की एक प्रति मौजूद है, पर रिपब्लिकन्स लगातार इसे मुद्दा बनाते रहे हैं। लौरा इटालियानो के लेख के बाद वाइट हाउस की प्रेसब्रीफिंग में भी यह मुद्दा उठ चुका है।
लौरा इटालियानो को अपने ही पेशे से बेईमानी करने के बाद जब मस्तिष्क कचोटने लगा तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया, पर क्या हमारे देश के पत्रकारों का कभी जमीर जागेगा? इतना भी तय है की जिस दिन अपने देश के पत्रकारों ने अपने पेशे से इमानदारी शुरू कर दी, उस दिन से सरकार की उल्टी गिनती भी शुरू हो जायेगी।