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विमर्श

क्या है राजनीति से हिजाब का नाता, 82 साल पहले बैन लगाने वाला Iran अपनी ही महिलाओं की जान लेने पर क्यों है उतारू?

Janjwar Desk
20 Sep 2022 9:35 AM GMT
क्या है राजनीति से हिजाब का नाता कि 82 साल पहले बैन लगाने वाला ईरान अब उसी के लिए अपनी ही महिलाओं का लेने पर है उतारू?
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क्या है राजनीति से हिजाब का नाता कि 82 साल पहले बैन लगाने वाला ईरान अब उसी के लिए अपनी ही महिलाओं का लेने पर है उतारू?

Iran Mahsa Amini Death Row : ईरानी कानून के मुताबिक महिलाओं को सार्वजनिक तौर अपने बालों को ढंकना अनिवार्य है।


ईरान में हिजाब की राजनीति पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट


Iran Mahsa Amini Death Row : हिजाब ( Hijab ) को लेकर मुस्लिम राष्ट्रों में ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सियासी बवाल कोई नई बात नहीं है। पिछले साल दिसंबर की ही तो बात है, भारत के कर्नाटक में एक समान यूनिफार्म लागू करने के लिए कॉलेज और स्कूली छात्राओं को हिजाब ( Hijab ) न पहनकर आने को कहा गया तो कट्टरपंथी ताकतों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया। इस मसले पर आज भी सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर सुनवाई जारी है। दुसरी तरफ 82 साल पहले हिजाब पर बैन लगाने वाला मुस्लिम राष्ट्र ईरान आज अपनी ही महिलाओं की जान लेने के लिए उतारू है।

हाल ही में हिजाब ( Hijab ) न पहनने पर ईरान में महसा अमिनी की पुलिस हिरासत में हत्या के बाद बवाल मचा है। इस्लामिक देश ईरान में मुस्लिम महिलाओं ने पितृसत्तात्मक सोच से उपजे हिजाब से आजादी के लिए सड़कों पर उतरकर न केवल आवाज बुलंद की है बल्कि हिजाब को गलियों में फेंक दिया। ईरान की सड़कों से लेकर ट्विटर तक तनी हुई मुट्ठियों, से अटी पड़ी हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं सत्तार बहिश्ती को स्ट्रोक! हालेह सहाबी को स्ट्रोक! कावोस सैयद इमामी को स्ट्रोक! आखिर क्या बात हे कि इस्लामिक रिपब्लिक में पिटाई से कोई नहीं मरता!

दरअसल, ईरान ( Iran ) की मुस्लिम महिलाएं हिजाब को बंधन समझती हैं और इससे आजादी चाहती हैं। यही वजह है कि वहां पर हिजाब का जबरदस्त ( Protest against Hijab ) विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में महिलाओं के अलावा पुरुष भी ईरान के कानून के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं। कुछ वीडियो में महिलाओं को स्कार्फ और शॉल को सड़कों पर फेंकते हुए देखा जा सकता है। महिलाएं बिना हिजाब के पब्लिक ट्रांसपोर्ट और दुकानों में दिखाई दे रही हैं। वे खुले बालों में पब्लिक में घूम रही हैं। यह स्थिति उस समय है जब कुछ ही हफ्तों पहले ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने आदेश दिया था कि महिलाओं के ड्रेस कोड का हर वक्त कड़ाई से पालन होना चाहिए।

16000 से ज्यादा महिलाएं जेल में

ऐसे में अहम सवाल यह है कि ईरान में मॉरल पुलिसिंग के शिकंजे में दम तोड़ने वाली महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की लंबी लिस्ट है। 2007 में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली डॉक्टर जाहरा बानी यागूब की जेल में मौत हो गई। 2012 में ईरानी मूल के पर्यावरणविद कावूस सैयद इमामी के साथ भी ऐसा ही हुआ। 2018 में ईरान सरकार की आलोचना करने के लिए साइबर पुलिस के शिकंजे में आए ब्लॉगर सत्तार बहिश्ती को भी जान से हाथ धोना पड़ा। अनुमान है कि ईरान में हिजाब कानून के उल्लंघन के आरोप में अभी 16 हजार से ज्यादा महिलाएं जेलों में हैं। अब मॉरल पुलिसिंग की नई शिकार बनी हैं माहसा अमीनी। 16 सितंबर को उनकी मौत हो गई। ईरान की सोशल एक्टिविस्ट मसीह अलीनेजाद ने माहसा को अरेस्ट किए जाने का जो विडियो ट्वीट किया, वह ईरान के हालात बयान करने के लिए काफी है। अपने परिवार के साथ पश्चिमी ईरान के कुर्दिस्तान से तेहरान जा रही थीं। पुलिस ने उन्हें हिजाब नहीं पहनने के लिए रोका।बाद में पुलिस हिरासत में उनकी मौत हो गई। महसा की मौत की खबर फैलते ही उनके गृह नगर सक्केज सहित ईरान के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। विरोध प्रदर्शन इतना विकराल है कि ईरान में एक बार सियासी भूचाल की स्थिति है।

ईरान में हिजाब का सियासी इतिहास

इस कड़ाई और विरोध प्रदर्शन का अपना इतिहास है। ईरान के इतिहास में हिजाब का वहां की राजनीति से गहरा नाता है। 1940 के दशक का एक दौर था, जब इसी ईरान में हिजाब पहनने पर पाबंदी लगा दी गई। वह वक्त था ईरान के पहले पहलवी शाह रजा शाह का। 1936 में उन्होंने इसके लिए बाकायदा हुक्म जारी किया। रजा शाह वक्त से आगे चल रहे थे। कबीलों में बंटे ईरानी समाज को वह पश्चिमी जीवनशैली की ओर मोड़ना चाहते थे। रजा शाह के बाद गद्दी जब उनके बेटे मुहम्मद रजा पहलवी के हाथ में आई तो उन्होंने पश्चिमी जीवनशैली पर जोर और बढ़ा दिया। स्कूलों-कॉलेजों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर लड़कियों और महिलाओं की मौजूदगी बढ़ने लगी। तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ाई से लेकर बाजारों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में महिलाओं के लिए कोई पाबंदी नहीं थी।

इस दौरान अमेरिका की जी-हुजूरी में मुहम्मद रजा पहलवी कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए। दरअसल,1951 में ईरान में प्रधानमंत्री चुने गए मुहम्मद मुसद्दिक। उन्होंने ईरान की ऑयल इंडस्ट्री के नैशनालइजेशन का मन बना लिया। तब ईरान की तेल इंडस्ट्री पर ब्रिटेन का दबदबा था। ब्रिटेन को मुसद्दिक के इरादों से खासी तकलीफ हुई। इसके बाद ब्रिटेन और अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने मुसद्दिक के तख्तापलट की साजिश बुनी। मुहम्मद रजा पहलवी इस प्लान में शामिल थे। 1953 में पहली कोशिश नाकामयाब रही लेकिन कुछ ही दिनों बाद दूसरी कोशिश में मुसद्दिक को अरेस्ट कर लिया गया। ईरान की सत्ता एक बार फिर मुहम्मद रजा शाह के हाथों में आ गई जो मुसद्दिक के तख्तापलट की पहली कोशिश के बाद ईरान से भाग निकले थे।

मुसद्दिक के तख्तापलट और शाह की पश्चिमपरस्ती ने ईरान में दो खेमों को नाराज कर दिया। पश्चिमी जीवन शैली को बढ़ावा देने से ईरान की कट्टरपंथी ताकतें पहले से नाराज थीं। मुसद्दिक के तख्तापलट ने आम लोगों को भी खफा कर दिया। उस दौर में जब शाह का विरोध तेज हुआ तो ईरान में महिलाओं को एक अलग तरीका अख्तियार करते देखा गया। जिस हिजाब को पहनने पर कभी पाबंदी थी, उसी हिजाब को पहनकर महिलाओं ने शाह का विरोध किया।

इस्लामिक क्रांति 1979 : खुली हवा में सांस पर बैठाए गए पहरे

आखिरकार शाह के निजाम का खात्मा हो गया। आयतुल्ला खोमैनी की अगुवाई में ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई। इसके साथ ही उस खुली हवा पर पहरे बैठाए जाने लगे, जिसकी ईरानी महिलाओं को आदत पड़ चुकी थी। इसके खिलाफ महिला दिवस के मौके पर 8 मार्च 1979 को महिलाओं ने आवाज उठाई। तेहरान में हजारों महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया लेकिन आखिरकार 1981 में ईरान में हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। 7 साल से बड़ी हर लड़की के लिए यह नियम है। जो यह नियम नहीं मानेगा उसे दो से 12 महीनों तक की सजा हो सकती है। जुर्माना अलग से भरना होगा। इस नियम को उसी ईरान में चुनौती भी दी जाती रही है।

सोशल एक्टिविस्ट मसीह अलीनेजाद ने हिजाब लॉ के खिलाफ वाइट वेंसडे कैंपेन शुरू किया था। 2009 में ईरान छोड़ने पर मजबूर हुईं। अलीनेजाद का यह कैंपेन एक फोटो से शुरू हुआ। अलीनेजाद ने एक फोटो सोशल मीडिया पर डाली जिसमें लंदन में बिना हिजाब वाली एक ईरानी महिला के बाल लहराते दिख रहे थे। तस्वीर वायरल हो गई। पहले तो फेसबुक पर माय स्टेल्थी फ्रीडम पेज पर ईरानी महिलाओं ने अपनी ऐसी ही तस्वीरें पोस्ट करनी शुरू कीं, फिर साल 2017 में एक हैशटैग कैंपेन के जरिए महिलाओं से अपील की गई कि वे हिजाब कानून के विरोध में बुधवार को सफेद हेडस्कार्फ पहना करें। 2017 में तेहरान से एक आइकॉनिक तस्वीर सामने आई। दिसंबर का महीना था। 31 साल की विदा मुवाहिद राजधानी तेहरान में अपने सफेद हिजाब को झंडा बनाकर लहराती दिखीं। यह सब उसी इंकलाब चौक पर हुआ, जिसका नाम 1979 की इस्लामी क्रांति की याद में रखा गया था। मुवाहिद ने ठीक ही जगह चुनी थी क्योंकि राजशाही के खिलाफ हुई इस्लामी क्रांति केवल मर्दों की नहीं, सबकी आजादी हासिल करने के लिए थी। मुवाहिद को अरेस्ट कर लिया गया लेकिन उनकी तस्वीर वायरल हो गई। इंकलाब चौक महिलाओं के विरोध का ठिकाना बन गया। हिजाब विरोधी आंदोलन का दायरा 2019 तक काफी बड़ा हो गया। 2021 में इब्राहिम रईसी के राष्ट्रपति बनने के बाद राजनीतिक विरोधियों और हिजाब कानून को लेकर सख्ती भी बढ़ गई। अभी इस साल जून में सरकार ने हिजाब कानून के पालन के लिए अलग से दो संगठन बनाए थे। इनका काम खराब हिजाब वाली महिलाओं पर एक्शन लेने का है। खराब हिजाब यानी रंगीन हिजाब या कम लंबाई वाला हिजाब।

सरकार की सख्तियों के बीच इस साल 12 जुलाई को ईरानी महिलाओं ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। दरअसल 12 जुलाई को ईरान ( Iran ) सरकार हिजाब और शुद्धता के राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाती है। 1935 में जब रजा शाह ने हिजाब पहनने पर रोक लगा दी थी तो उस समय कुछ लोगों ने इसका विरोध किया था। उस विरोध की याद में ईरान सरकार हर साल 12 जुलाई को नैशनल डे ऑफ हिजाब एंड चैस्टिटी मनाती है लेकिन इस साल 12 जुलाई को महिलाएं इसके विरोध में उतर गईं। ऐसी आवाजों को कुचलने के लिए गिरफ्तारियों का सिलसिला भी जारी है। ईरान की ताजा तस्वीरें बता रही हैं कि 8 मार्च 1979 को बराबरी के हक के लिए तेहरान में जो मुट्ठियां तनी थीं उनकी विरासत यूं ही बर्बाद नहीं होने वाली है।

इस बार ईरान की महिलाएं आर या पार की मूड में है। हिजाब समर्थकों का वजूद खतरे में है, वहीं ईरान सरकार दबाव है कि वो आंदोलनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश न आये। फिर, सउदी अरब, जॉर्डन, यूएई की सरकारों द्वारा उदारवादी नीतियों को तरजीह देने से ईरान की सरकार धर्मसंकट में है। एक तरफ कट्टरपंथी हिजाब को जारी रखने चाहते हैं तो दूसरी तरफ खुली हवा में सांस लेने के समर्थक हर हाल में हिजाब को उतार फेंकना चाहते हैं। ईरान सरकार को फैसला लेना है। ताजा हालात निर्णायक मोड़ पर हैं और कुछ भी हो सकता है।

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