UP : चुनाव ड्यूटी में लगे अध्यापक की मौत, मासूम बेटा बोला पापा को ले गया कोरोना

नीरज की जांच रिपोर्ट जब तक आई तब तक उनकी हालत गंभीर हो चुकी थी। मेडिकल लीव के लिए आवेदन कर वह कानपुर अपने घर आ गए....

Update: 2021-05-05 08:19 GMT

कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार। यूपी के महत्वकांक्षी पंचायत चुनाव निपट गए हैं। इस चुनाव को भी इतिहास में दर्ज किया जाना चाहिए। वो इसलिए कि इस बार का यह पंचवर्षीय चुनाव लाशों के ढेर पर संपन्न किया जा सका है। लोग मरते रहे, चिताएं जलती लेकिन चुनाव नहीं रोके गए। इससे भी बड़ी विडंबना यह कि जनता ही सरकार बनाये और जनता ही भुगते मरे, मर भी रही।

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर लगाये गए अध्यापकों में मरने वालों की संख्या का जो आंकड़ा है वह हजार को पार कर गया है। इसमें एक नाम कानपुर के कल्याणपुर निवासी नीरज गुप्ता का नाम भी जुड़ गया है। बेसिक शिक्षा विभाग के सहायक अध्यापक नीरज की कोरोना वायरस से मौत हो गई। वह पिछले 4 दिनों से आईसीयू में वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे। चुनावी प्रशिक्षण इस अध्यापक की मौत का कारण बन गया।

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कल्याणपुर सत्यम बिहार निवासी नीरज गुप्ता बहराइच जिले के जरवल ब्लॉक स्थित हाजीपुर प्राथमिक विद्यालय में बतौर सहायक अध्यापक कार्यरत थे। पंचायत चुनाव में उनकी ड्यूटी लगा देने के बाद उन्हें मजबूरन अप्रैल 11 को प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होना पड़ा। जहां से नीरज कोरोना की चपेट में आ गए। ऐसा अध्यापक के परिवार का मानना है।

(नीरज गुप्ता)

अध्यापक के परिजनों की मानें तो उनकी चुनाव ड्यूटी पीठासीन अधिकारी के रूप में 29 अप्रैल को लगाई गई थी, क्योंकि 25 मार्च को उनकी पत्नी महिमा गुप्ता का ऑपरेशन हुआ था तथा 5 महीने के गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हुई थी। इस वजह से वे काफी परेशान चल रहे थे और पत्नी के इलाज के संबंध में फॉलोअप के लिए चुनाव की तिथि वाले दिन उनका पीजीआई में अपॉइंटमेंट था।

नीरज ने चुनाव ड्यूटी से नाम कटवाने के लिए 9 अप्रैल को सीडीओ कार्यालय में आवेदन किया। सारी औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद भी चुनाव ड्यूटी से नाम नहीं कटा तो उन्हें मजबूरन चुनावी प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेना पड़ा। जहां से वह कोरोना संक्रमित हो गए। उसके बाद से लगातार उनकी तबीयत खराब होती चली गई। लगातार कई प्रयास के बावजूद भी उन्हें जब सरकारी अस्पतालों से कोई इलाज नहीं मिल सका जिसके बाद उन्होंने प्राइवेट डॉक्टरों से अपना इलाज शुरू कराया और कोरोना की जांच कराई।

नीरज की जांच रिपोर्ट जब तक आई तब तक उनकी हालत गंभीर हो चुकी थी। मेडिकल लीव के लिए आवेदन कर वह कानपुर अपने घर आ गए। सरकारी अस्पताल में दिए गए सैंपल की जांच रिपोर्ट ना आने पर उन्होंने प्राइवेट लैब से कोरोना की जांच कराई लेकिन उससे पहले ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। इस पर प्राइवेट नर्सिंग होम के डॉक्टर की सलाह पर चेस्ट का सीटी स्कैन कराया जिसकी रिपोर्ट में 80% फेफड़ों में संक्रमण की पुष्टि हुई।

रिपोर्ट के आने पर उन्हें काफी भटकने के बाद सिविल लाइंस के न्यू लीलामणि हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां से हालत में सुधार ना होने पर उन्हें आईसीयू में बाईपैप मशीन पर और फिर वेंटिलेटर पर रखा गया। 30 अप्रैल को अचानक उनकी मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि चुनावी प्रशिक्षण उनकी मौत का कारण है। नीरज पूरे परिवार का एकमात्र सहारा थे। बुजुर्ग माता, विकलांग चाचा, पत्नी और 6 साल के एक बच्चे की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। अब इस परिवार के आगे भरण पोषण की समस्या है।

इस घटना से शिक्षक समूह काफी आक्रोश में है। कई शिक्षक संगठनों के नेताओं ने अध्यापक की की संक्रमण से मौत होने के बाद पत्नी को मृतक आश्रित कोटे से नौकरी दिये जाने और चुनाव प्रशिक्षण की वजह से कोरोना की भेंट चढ़ने पर सरकार से 50 लाख रुपये मुआवजे की मांग की है।

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