कभी सरकारी कंपनी हुआ करती थी आईटीआई लिमिटेड, आज लड़ रही अस्तित्व की लड़ाई
सरकार आईटीआई को लेकर उदासीनता दिखा रही है एक तरफ जहां बीएसएनएल को सरकार ने सिर माथे पर बिठा रखा है, उस जमाने में बीएसएनएल की तूती बोलती थी, वही आईटीआई की कोई पूछ न थी.....
विवेक कुमार का विश्लेषण
टेलीफोन बनाने की एक सरकारी कंपनी हुआ करती थी- आई टी आई लिमिटेड। कंपनी आज भी है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 'थी' शब्द का प्रयोग सरकार की इसके प्रति उपेक्षा को देखकर किया गया है। सरकार ने कुल 6 आईटीआई की स्थापना की थी जिसका हेड ऑफिस बैंगलोर में था। आईटीआई अर्थात् भारतीय टेलीफोन उद्योग, केंद्र सरकार के स्वामित्व में 1948 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी। स्विचिंग, ट्रांसमिशन और दूरसंचार उपकरणों को बनाने हेतु इस कंपनी की स्थापना हुई थी। इस क्षेत्र की यह एकमात्र सरकारी कंपनी थी। सरकार की निजीकरण की नीतियों के तहत यह कंपनी सरकारी उपेक्षा का शिकार हुई। आज यह कंपनी जीएसएम मोबाइल के उपकरण, स्मार्ट एनर्जी मीटर, रक्षा क्षेत्र के कुछ उपकरण बनाती हुई सक्रिय है।
आज से बारह - तेरह सालों पहले मैं राजकीय पॉलिटेक्निक फतेहपुर का छात्र हुआ करता था। इलेक्ट्रॉनिक्स अभियन्त्रण के तृतीय वर्ष के पाठ्यक्रम में एक इंडस्ट्री विजिट करनी था। श्री अशोक पुराणिक जो हमारे विभागाध्यक्ष थे। वे इलाहाबाद के रहने वाले थे। विजिट के लिए वह हमें आईटीआई नैनी में ले गए। बहुत उत्साह था मन में कि पहली बार किसी कंपनी में जा रहे हैं। कितने बड़े क्षेत्रफल में थी! चारों ओर से घनों वृक्षों से आच्छादित बहुत ही हरे-भरे और खुशनुमा वातावरण में वह कंपनी स्थिति थी। वहां पर लैंडलाइन फोन बनने की पूरी प्रक्रिया देखी।
आईटीआई अपने पतन की ओर थी क्योंकि उसके बनाए उपकरण अत्यंत महंगी मशीनों से बने होने के कारण महंगे होते थे। सरकार अपनी कंपनी को दरकिनार कर निजी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट दे रही थी। आईटीआई कर्मचारियों के मुख पर एक प्रकार संतृप्त उदासी थी कि मानो कंपनी के दिन-ब-दिन घाटे में जाने को उन्होंने नियति समझकर समझौता कर लिया था। आईटीआई नैनी के निदेशक एक सरदार जी थे उन्होंने आईटीआई के बारे में कई सारी बातें बताईं। वे बातों बातों में अत्यंत भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा कि क्या क्या सोचा था कंपनी को लेकर कहां से कहां तक जाएंगे लेकिन अब खत्म हो रहा है। सोचा था हमारे बच्चे भी यहीं पर काम करेंगे लेकिन अब सब बेकार हो गया है।
सरकार आईटीआई को लेकर उदासीनता दिखा रही है एक तरफ जहां बीएसएनएल को सरकार ने सिर माथे पर बिठा रखा है। उस जमाने में बीएसएल की तूती बोलती थी बीएसएनएल सबसे बड़ी सरकारी कंपनी हुआ करती थी। वही आईटीआई की कोई पूछ न थी। आईटीआई कंपनी के कर्मचारियों की यह मांग थी की बीएसएनएल के साथ आईटीआई को अटैच किया जाए ताकि जब भी कोई ग्राहक बीएसएनएल का कनेक्शन ले तो उसे आईटीआई का ही टेलीफोन दिया जाए लेकिन सरकार ने निजी कंपनियों के सस्ते फोन जैसे कि बीटल इत्यादि देने शुरू कर दिये। ये तो ऐसे ही था कि गैरों पर करम और अपनों पर सितम।
आज यही सारा खेल बीएसएनएल के लिए खेला जा रहा है। आईटीआई विजिट के छह माह पहले डिप्लोमा के द्वितीय वर्ष में बीएसएनएल से समर ट्रेनिंग भी किया था। वहां एक महीने तक रोज उनकी कार्यप्रणाली देखता था। कितना रुतबा होता था तब बीएसएनएल का! आलीशान भव्य बिल्डिंग, पूर्णतया वातानुकूलित भवन जो किसी सॉफ्टवेयर कंपनी जैसा लगता था। बीएसएनएल में काम कर रहे कई सारे जे टी ओ और सीनियर इंजीनियर बैंगलोर की बड़ी बड़ी आईटी कंपनियों को छोड़कर यहां नौकरी करने आए थे। उन्हें देखकर लगता था कि कितने भाग्यशाली हैं ये काश हमें भी बीएसएनएल में ही नौकरी मिल जाती। लेकिन आज के हालात देखकर लगता है कि उन सभी को कितना पछतावा हो रहा होगा कि वो आईटी सेक्टर छोड़कर यहां क्यों आए?
बीएसएनएल की स्थापना 1 अक्टूबर 2000 को की गई। एक समय में यह देश की सबसे बड़ी टर्नओवर वाली कंपनी हुआ करती थी। आज हालात ये हैं कि बीएसएनएल के कर्मचारियों को जबरन वीआरएस लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सरकार की उपेक्षा इतनी है आज यह मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई है। चार वर्षों पहले जब 4जी स्पेक्ट्रम लांच हुआ तो सबसे पहले सरकारी कंपनी को मिलने की बजाय एक निजी कंपनी को दिया गया। उसके तीन सालों के बाद बीएसएनएल ने 4 जी सेवाएं शुरूं की। यह एक सुनियोजित ढंग से एक सरकारी कंपनी को बर्बाद करना था। बीएसएनएल का 3 जी निजी कंपनियों के 4 जी से कैसे मुकाबला कर पाता? परिणास्वरूप बीएसएनल के ग्राहक उस नई कंपनी में शिफ्ट होते गए जिसके लिए बीएसएनएल को ध्वस्त किया गया।
खुद को देशभक्त कहने वाली सरकार अगर वास्तव में देशभक्त है तो क्यों नहीं वो क्यों नहीं ऐसे प्रावधान करे कि आने वाले दिनों में जब भी 5 जी स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाए तो सबसे पहले बीएसएनएल को प्राप्त हो। सबसे बेहतर डाटा स्पीड और अपेक्षाकृत सस्ती दरों को लागू करके फिर से बीएसएनएल को बचाया जा सकता है। उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिलेगी तो वो फिर से बीएसएनएल से जुड़ेंगे। बीएसएनएल रूपी बरगद का वृक्ष सूखता जा रहा है। सरकार एक बार पानी डाल कर तो देखे यह फिर से लहलहा उठेगा।
सरकारी कंपनियां राष्ट्रीय संपत्ति होती हैं। आज बीएसएनएल के अलावा एलआईसी, बीपीसीएल,इंडियन रेलवे सभी इत्यादि में निजीकरण की शुरुआत हो चुकी है। सरकारी कंपनिया जनता को ध्यान में रखकर काम करती हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना ही नहीं होता बल्कि यह ध्यान रखना भी होता है कि आमजन को अपेक्षाकृत सस्ती और बेहतर वस्तुएं और सेवाएं मिल सकें। जबकि निजी कंपनियों का एकमात्र उद्देश्य अधिकाधिक मुनाफा कमाना होता है। सरकारी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा में निजी कंपनिय भी बेहतर सेवाएं देने को कोशिश करती हैं। जब निजीकरण से सब कुछ प्राइवेट हो जाएगा तो कहां की प्रतिस्पर्द्धा?